सम्पादकीय

जल स्रोतों के संरक्षण को अपनाएं सही तकनीक

Rani Sahu
5 Oct 2022 6:45 PM GMT
जल स्रोतों के संरक्षण को अपनाएं सही तकनीक
x
जल ही जीवन है। यह बात भला कौन नहीं जानता? ये जीवन की निरंतरता, पर्यावरण संतुलन और मानव जीवन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। जल का कोई विकल्प नहीं है। पीने का स्वच्छ जल दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है जबकि इसकी मांग दिन प्रतिदिन बढ़़ती जा रही है। धरती का तापमान बढऩे के कारण व पर्यावरण का असंतुलन होने से जल की उपलब्धता वर्तमान व भविष्य के लिए बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। जल की जरूरत तथा महत्त्व को देखते हुए भारत सरकार तथा प्रदेश सरकार द्वारा बड़े स्तर पर जल संरक्षण व संचय का 'जल शक्ति अभियान' चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत पारंपरिक जल स्त्रोतों के संरक्षण पर बल दिया जा रहा है। यद्यपि पारंपरिक जल स्त्रोतों के संरक्षण पर पहले से पंचायतों व कुछ सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा काम किया जा रहा है, परंतु सही तकनीक न अपनाने के कारण इसके उचित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। जल स्त्रोतों की दुर्दशा व उनमें उपलब्ध प्रदूषित पानी का हाल हमारे सामने है। ऐसा कोई विरला ही स्त्रोत बचा है जिसे सुरक्षित व उचित सुरक्षित कहा जा सके। जब से सरकार द्वारा हर गांव के लिए पाइपों द्वारा पानी पहुंचाया है, लोगों की निर्भरता नल के पानी पर हद से ज्यादा बढ़ चुकी है। इस कारण लोगों ने पारंपरिक स्त्रोतों को भुला ही दिया है। धीरे-2 इन स्त्रोतों में पानी कम आने लगा है और पानी की गुणवत्ता में भी लगातार गिरावट आई है।
अब इन स्त्रोतों के पुनर्निर्माण के लिए विशेष प्रयत्न करने की आवश्यकता है। परंतु इन सभी प्रयासों के परिणाम तभी सकारात्मक होंगे, यदि इनका जीर्णोद्धार सही तकनीक से किया जाए। इस विषय पर काम कर रहे समूहों तथा सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों में पारंपरिक जल स्त्रोतों के उचित रखरखाव की तकनीकी जानकारी का अभाव अकसर देखा गया है तथा यह आम धारणा है कि बहुत ज्यादा पैसा व श्रम लगाने पर भी स्थिति ज्यों की त्यों रहती है। इसी उद्देश्य के दृष्टिगत यहां पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख पारंपरिक स्त्रोतों, जैसे बावड़ी, तालाब व कुओं के जीर्णोद्धार व संवर्धन की तकनीक पर चर्चा करने का प्रयास किया गया है ताकि इन स्त्रोतों का उचित संरक्षण किया जा सके, जिससे इनमें पानी की उपलब्धता व गुणवत्ता में बढ़ोतरी हो सके। बावड़ी हिमाचल प्रदेश का एक मुख्य पेयजल स्त्रोत है। इसको नौण, बोड़ी, बांए भी कहा जाता है। प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां एक या दो बावडिय़ा न हो। बावड़ी एक तरह का चश्मा ही होता है। यह अलग-अलग रूपों में बनी होती है। इसमें पानी कम मात्रा में फैले हुए तल से रिसता है तथा इसमें पानी सतह पर इक_ा होता रहता है। बावडिय़ां अकसर सीढ़ीनुमा टैंक की तरह होती हैं। जब यह पूरी भरी रहती हैं तो पानी ऊपर से ही निकल जाता है, लेकिन जब गर्मियों में पानी की कमी होती है तो लोग सीढिय़ां अंदर उतर कर पानी भरते हैं। आज ज्यादातर बावडिय़ां सूख चुकी हैं। जिनमें थोड़ा बहुत पानी बचा भी है, वे बुरी तरह से प्रदूषित हैं। गंदगी से भरी यह बांवडियां आवारा पशुओं के नहाने का स्थान बनी हुई हंै।
इनके गंदे होने के कई कारण हैं जैसे गंदे बर्तन से पानी भरना, जूतों समेत बावड़ी के अंदर जाना, बावड़ी के पास गंदे कपड़े, बर्तन व पशुओं का नहलाना तथा पानी पिलाना, बावड़ी के इर्द-गिर्द ही मल त्याग करना, बावड़ी की नियमित सफाई व ब्लीचिंग न होना। गंदा पानी फिर से अंदर चला जाना बावड़ी के पानी को दूषित करता है। बावड़ी को हमेशा ढक कर रखें। ढकने के लिए एक छत बनाना ज़रूरी है। यह छत आरसीसी, पत्थर, लोहे की चादर से बनाई जा सकती है। इससे बावड़ी में बारिश का पानी, धूल, मिट्टी, पत्ते, गोबर, बीट एवं झाडिय़ां आदि नहीं गिरेंगी। बावड़ी की नियमित सफाई होती रहे। इसी तरह तालाब वर्षा जल संरक्षण का बहुत ही सरल तथा प्राचीन पारंपरिक स्त्रोत है। हमें तालाब अकसर सभी गांवों के आस-पास मिल जाएंगे। तालाबों में संरक्षित जल का उपयोग पशुओं व कृषि की ज़रूरतों के लिए किया जाता रहा है, यद्यपि पानी की कमी वाली जगह में इसके पानी को पेयजल उपयोग के लिए भी अपनाया जा सकता है। वर्तमान में तालाबों की हालत दयनीय है। अधिकतर तालाब सूख गए हैं तथा इसकी ज़मीन का अन्य कार्य के लिए प्रयोग किया जा रहा है। यदि कहीं बचे भी हैं तो उनमें गाद भरी रहती है तथा जल भंडारण क्षमता बहुत ही कम बची है। पानी भी प्रदूषित रहता है। तालाब भूजल संरक्षण का भी बहुत कारगर साधन है जहां से पानी धीरे-धीरे भूमिगत स्त्रोतों को सर्वधित करता है। तालाबों के रखरखाव व नए तालाब बनाने में निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
तालाब की सफाई प्रतिवर्ष बरसात से पहले की जानी चाहिए ताकि जल भंडारण क्षमता का पूर्ण उपयोग किया जा सके। जल ग्रहण क्षेत्र से पानी इक_ा करने की नालियों की भी पूर्ण सफाई तथा मरम्मत अवश्य की जानी चाहिए। तालाब के भर जाने से अतिरिक्त पानी की सुरक्षित निकासी की संरचना को बनाना भी अति आवश्यक है। तालाब अकसर अचानक भर जाने से किनारे को काटकर टूटता है जिससे जल भंडारण की क्षमता कम हो जाती है। निकासी पक्की सीमेंट रोड़ी या ईंट-पत्थरों को चिनाई करके उचित क्षमता की नाली बनाकर की जानी चाहिए। यह नाली तालाब से सुरक्षित दूरी तक बनानी चाहिए। इसी तरह कुंआ पेयजल का बहुत उपयोगी पारंपरिक स्त्रोत है। यह अकसर मैदानी क्षेत्र में विशेष प्रकार की भूमि की संरचना में बनाए जाते हैं जहां 3-15 मीटर तक रेतीली जमीन होती है तथा उनके नीचे चट्टान या चिकनी मिट्टी की परत हेाती है। जमीन पर 2 से 5 मीटर का गड्ढा करने तथा उसकी दीवारों को पत्थर तथा ईंटों से चिनाई करने में अच्छी रेतीली मिट्टी में संरक्षित पानी कुएं में इकट्ठा होता है।
कुएं के पानी की गुणवत्ता अच्छी होती है। इसलिए इसे अकसर पेयजल के लिए प्रयोग किया जाता है। पुराने कुओं के रख-रखाव व नए कुओं को बनाने के लिए कुएं की ऊपरी दीवारें 2 से 2.50 मीटर में सीमेंट का पलस्तर करें ताकि आसपास से गंदा पानी अंदर न जाए। दीवारों को ज़़मीन से करीब 60 सेंटीमीटर ऊपर तक बनाएं। कुएं के चारों ओर ज़मीन पर 1.0 मीटर चौड़ा पक्का फर्श बनाएं ताकि गंदा पानी अंदर जाने से रोका जा सके। पानी निकालने के लिए एक ही बर्तन का उपयोग करें जिसकी समय-समय पर सफाई की जानी चाहिए। कुएं के आस-पास गंदा पानी इक_ा न होने दें। कुएं से कम से कम 30 से 50 मीटर की दूरी तक कोई भी शौच का गड्ढा न बनाया जाए। कुएं को उचित छत से ढकें ताकि धूल मिट्टी व पशु पक्षियों द्वारा पानी को प्रदूषित करने से बचाया जा सके। कुएं की बरसात में हर सप्ताह व अन्य समय 15 दिन में क्लोरिशन करें। इस तरह जल स्रोतों को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।
जोगिंद्र सिंह चौहान
मुख्य अभियंता, जल शक्ति
By: divyahimachal
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story