सम्पादकीय

दाखिले की मुश्किलें: छात्रों को इस बार अपनी पसंद के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना कठिन होगा

Gulabi
20 Sep 2021 6:35 AM GMT
दाखिले की मुश्किलें: छात्रों को इस बार अपनी पसंद के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना कठिन होगा
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पिछले दो सत्र स्कूली छात्रों के लिए बेहद कठिन रहे हैं

पिछले दो सत्र स्कूली छात्रों के लिए बेहद कठिन रहे हैं। शैक्षिक सत्र 2019-20 सीबीएसई के 12वीं के छात्रों के लिए फिर भी उतना भ्रमित करने वाला नहीं था, जितना कि 2020-21 का सत्र रहा। पिछला पूरा साल देश कोविड से जूझता रहा, जिस कारण स्कूल बंद रहे और छात्रों को तनाव से जूझना पड़ा। तिस पर बदतर यह कि एकाधिक कारणों से 12वीं के रिजल्ट में विलंब से आशंकाएं बनी रहीं। इसके बावजूद 12वीं का रिजल्ट घोषित होते ही कई रिकॉर्ड बन गए। इस साल पहली बार 12वीं कक्षा के 99 फीसदी छात्र पास हुए। जबकि वर्ष 2019 में 83 फीसदी और 2020 में 90 प्रतिशत छात्र बारहवीं में उत्तीर्ण हुए थे।


इस साल 99 प्रतिशत छात्रों के पास होने का कारण यह है कि 12वीं की परीक्षा न होने के कारण छात्रों के 10वीं, 11वीं और 12वीं के स्कूल के ग्रेड के अनुसार 12वीं का रिजल्ट तैयार किया गया। इस साल 12वीं में कुल 13,04, 561 छात्र थे, जिनमें से 12,96,318 छात्र उत्तीर्ण हुए, जबकि 0.67 फीसदी छात्र पास नहीं कर पाए। छात्रों की इस संख्या में स्कूल बोर्डों से उत्तीर्ण हुए 12वीं के 1.3 करोड़ छात्रों को भी जोड़ना होगा, जो कॉलेजों में प्रवेश के लिए तैयार हैं। उत्तीर्ण हुए छात्रों की रिकॉर्ड संख्या और सभी विषयों में मिले ऊंचे अंकों को देखते हुए इस साल कॉलेज में दाखिला बहुत कठिन होगा।

चूंकि परीक्षा में छात्र अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और ऊंचे अंक पाने वाले छात्रों की संख्या इस बार भी बहुत अधिक है, इस कारण छात्रों को इस बार अपनी पसंद के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना कठिन होगा। उदाहरण के लिए, दिल्ली विश्वविद्यालय में इस समय 65,000 सीटें ही हैं, और अब हर साल यहां के कॉलेजों में औसत कट-ऑफ 85 से 100 फीसदी के बीच होता है। ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि 12वीं कक्षा में 95 प्रतिशत पाने वाले कुल 70,000 में से 5,000 छात्रों को जब दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा, तब उन्हें कैसी निराशा होगी। हालांकि बहुत से लोगों का मानना है कि 99 फीसदी छात्रों के पास होने के बावजूद कोविड की पृष्ठभूमि के कारण इस बार कॉलेज में छात्रों के दाखिले की भीड़ तुलनात्मक रूप से कम होगी, इस कारण ऊंचे कट-ऑफ की ज्यादा चिंता नहीं है।
लेकिन सिर्फ यही नहीं कि 90 फीसदी और उससे अधिक अंक पाने वाले अनेक छात्रों को उनके पसंदीदा कॉलेजों में दाखिला नहीं मिलेगा, बल्कि ऐसे छात्रों की संख्या भी बहुत होगी, कम अंक पाने के कारण उच्च शिक्षा का जिनका सपना पूरा नहीं हो सकेगा। बेशक अनेक छात्र निजी विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने में सफल होंगे। लेकिन निजी विश्वविद्यालयों की फीस चूंकि बहुत अधिक होती है, लिहाजा अनेक परिवारों के लिए अपने बच्चों को वहां दाखिला दिलवा पाना संभव नहीं होगा। चूंकि पिछले साल कोविड महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के चलते अनेक परिवारों ने नौकरियां खोई हैं, इस कारण अनेक छात्र आर्थिक परेशानियों को देखते हुए कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाएंगे।
इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे पेशेवर कोर्सेज में विलंब से दाखिला होने के कारण छात्रों के प्लेसमेंट पर भी दबाव पड़ा है, साथ ही, विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षित प्रोफेशनलों की आपूर्ति शृंखला पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा है। उदाहरण के लिए, मेडिकल की इंट्रेंस (प्रवेश) परीक्षा में विलंब होने का असर छात्रों के पास होकर निकलने, पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) कोर्स में उनके दाखिला होने और फिर पास होने पर पड़ेगा। नतीजतन कार्य बल को प्रशिक्षित श्रेष्ठ प्रतिभाओं के अभाव तथा प्रशिक्षित प्रतिभाओं की कमी की दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। वास्तविकता यह है कि ज्यादातर जूनियर डॉक्टरों के पास पिछले एक साल से मरीजों की देखभाल और इलाज करने का कोई अनुभव ही नहीं है। और पिछले एक साल के दौरान कुछ जूनियर डॉक्टरों को जिन मरीजों के इलाज करने का अवसर मिला है, उनमें से भी ज्यादातर कोविड के मरीज ही थे। ऐसे में, पास करके निकलने वाले डॉक्टरों की गुणवत्ता का मामला भी हमारी चिंता का कारण है।
मैंने पहले भी इस बारे में कहा है, और आज फिर यह दोहरा रहा हूं कि कॉलेज और विश्वविद्यालयी शिक्षा में व्यावहारिक अनुभव शामिल करने का यही उचित अवसर है। ऐसे पाठ्यक्रमों में दाखिला लेना छात्रों के लिए बेहद उपयोगी होगा, जो न केवल उन्हें हुनरमंद बनाए, बल्कि जो रोजगार के बाजार को देखते हुए उनके लिए उपयोगी भी हो। पिछले अनेक वर्षों से उद्योग क्षेत्र के अनेक दिग्गजों ने विश्वविद्यालयों से निकलने वाले छात्रों की खराब गुणवत्ता को रेखांकित किया है। ऐसे में, प्रतिभाशाली छात्रों को तो कार्य क्षेत्र में अच्छे अनुभव हासिल होते हैं, लेकिन मध्यम और औसत से कम प्रतिभा वाले छात्रों को अपने जीवन और कार्यक्षेत्र में भीषण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
आज के इस दौर में औसत से थोड़े ऊपर और औसत से नीचे की प्रतिभा वाले छात्रों की दुर्दशा की कल्पना करें-12वीं की परीक्षा में मिले ऊंचे अंकों के आधार पर इन दो श्रेणियों के छात्रों में अंतर निर्धारित कर पाना बेहद कठिन है। वास्तविकता यह है कि इस बार 12वीं में पास हुए अनेक छात्र यह बखूबी जानते हैं कि अगर परीक्षा हुई होती, तो वे शर्तिया परीक्षा में पास नहीं कर पाते।
चूंकि अब कॉलेजों में दाखिला शुरू होंगे, ऐसे में, आर्थिक संसाधनों से संपन्न छात्र जहां कॉलेजों में प्रवेश पाने में सफल होंगे, वहीं आर्थिक परेशानियों वाले छात्रों की उच्च शिक्षा का सपना धरा रह जाएगा। अच्छे कॉलेजों में दाखिला पाने में विफल रहने वाले अनेक छात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए निजी विश्वविद्यालयों का रुख करेंगे, जहां न केवल पढ़ाई महंगी है, बल्कि वहां से शिक्षा प्राप्त करना भी कई बार उज्ज्वल भविष्य की गारंटी नहीं होता।
कुल मिलाकर, उत्तीर्ण छात्रों के बढ़े आंकड़े और ऊंचे कट-ऑफ के कारण इस बार कॉलेजों में दाखिला चुनौती भरा होगा। अगर 12वीं की परीक्षा में इसी तरह अंक दिए जाते रहे, तो शिक्षा की गुणवत्ता बड़ी खाई और विभाजन पैदा करेगी, नतीजतन समाज के अनेक समूहों के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा असंभव हो जाएगी।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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