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न्यायालय, सरकार, राजनीतिक दलों और सामजिक संगठनों से अपेक्षा की जाती है कि वे समाज को प्रगति की दिशा में ले जाएंगे। सामाजिक कुरीतियों से संघर्ष इस आम अपेक्षा का सामान्य हिस्सा है। लेकिन जब ऐसा ना हो, तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई समाज अपने पतनशील दौर में है। इस बात की एक ताजा मिसाल राजस्थान में देखने को मिली है। राज्य के दौसा में अपनी पसंद के लड़के के साथ रह रही लड़की की उसके पिता ने ही हत्या कर दी। हाई कोर्ट ने पुलिस को दोनों प्रेमियों को सुरक्षा देने का आदेश दिया था। लेकिन आरोप है कि पुलिस की लापरवाही के कारण लड़की की जान चली गई। हमारे समाज में मर्जी से रिश्ते को लेकर हमेशा से प्रतिरोध रहा है। लेकिन आजादी के बाद लागू हुए आधुनिक संविधान के तहत लोगों को ऐसा करने का वैधानिक हक मिला। इस हक की रक्षा करना सरकार और उसकी मशनरी का कर्त्तव्य है।