सम्पादकीय

हंगामे से हासिल

Rani Sahu
11 Aug 2021 7:02 PM GMT
हंगामे से हासिल
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संसद सत्र का तय समय से पहले स्थगित हो जाना न केवल अफसोस, बल्कि चिंता की भी बात है

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान । संसद सत्र का तय समय से पहले स्थगित हो जाना न केवल अफसोस, बल्कि चिंता की भी बात है। लोकसभा की बैठक बुधवार को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई, तो इसके लिए संसद में पैदा गतिरोध को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा। पेगासस जासूसी मामला, तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग सहित अन्य कुछ मुद्दों पर विपक्षी दलों के हंगामे और सत्ता पक्ष के हठ के कारण पूरे सत्र में सदन का कामकाज प्रभावित हुआ है और सिर्फ 22 प्रतिशत काम ही हो सका। आम लोगों के मन में यह सवाल वाजिब ही उठेगा कि क्या हमने सांसदों को केवल 22 प्रतिशत काम के लिए भेजा है? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद का यह व्यवहार क्या प्रशंसनीय है? भारतीय लोकतंत्र की तारीफ करने वाले बहुत लोग मिलेंगे, पर क्या ऐसी ही तारीफ भारतीय संसद की भी हो सकती है? लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने पर बताया कि 17वीं लोकसभा की छठी बैठक 19 जुलाई, 2021 को शुरू हुई थी और इस दौरान हुई 17 बैठकों में 21 घंटे 14 मिनट ही कामकाज हुआ। उन्होंने माना कि सदन में कामकाज अपेक्षा मुताबिक नहीं रहा, तो उपाय क्या है, कौन करेगा?

राज्यसभा में भी कमाबेश ऐसी ही स्थिति रही। यह उच्च सदन है और इससे ज्यादा गंभीरता की उम्मीद की जाती है, लेकिन जब ऐसे सदन के सभापति कार्यवाही का अपमान देखकर भावुक हो जाएं, तो फिर निराशा जताने के अलावा क्या रह जाता है? कृषि कानूनों और पेगासस जासूसी विवाद इत्यादि पर राज्यसभा की कार्यवाही भी लगातार बाधित होती रही है। यह कैसे भुलाया जाए कि कृषि कानूनों का विरोध करते हुए कुछ सांसद सदन की मेज पर बैठ गए और कुछ सदस्य मेज पर चढ़ गए? इस पर सभापति ने कहा कि राज्यसभा की सारी पवित्रता खत्म हो गई। उन्होंने कहा कि सदन में हंगामा करने वाले विपक्षी सांसदों को कार्रवाई का सामना करना होगा, लेकिन अब यह कैसे और कब होगा? सदन में विरोध जताना सही है, लेकिन मेज पर चढ़ जाना, मेज पर चढ़कर आसन की ओर रूल बुक फेंक देना कहां की परंपरा है? तो क्या अब समय आ गया है कि हम संसद के कामकाज को लेकर भावुक हो जाएं और आंसू बहाएं? अगर हम ऐसा करेंगे, तो दुनिया को क्या संदेश देंगे?
यह सोचना बहुत जरूरी है कि जब हम सदन में अच्छा माहौल नहीं बना सकते, तो देश में कैसे गरिमा बनाए रखेंगे? क्या भारतीय लोकतंत्र में व्यवहार का एक स्तर नहीं होना चाहिए? हंगामा करने वाले और हंगामे से लाभ उठाने वाले हर नेता को अपने गिरेबान में झांकना होगा। लोकतंत्र में सड़़क पर और चुनावी मैदानों में तो संघर्ष शोभा देता है, लेकिन जब ऐसा ही राजनीतिक संघर्ष सदन में आ जाए, तो सदन का महत्व कम हो जाता है। अभी पिछले सत्रों में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति बनने लगी थी, लेकिन इस मानसून सत्र ने बेहद निराश किया है। बेशक, कोरोना पर एक व्यापक बहस होनी चाहिए थी, देश की तमाम उन कमियों पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए थी, जिन्होंने कोरोना की दूसरी लहर के समय देश को रुला दिया, लेकिन हम चूक गए। अब देश के लोग यही उम्मीद करेंगे कि अगली बार जब सांसद बैठें, तो दिल से महसूस करें कि देश को कहां-कहां दर्द है।


Rani Sahu

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