सम्पादकीय

हादसे के कारखाने

Subhi
27 Dec 2021 2:11 AM GMT
हादसे के कारखाने
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मुजफ्फरपुर के एक कारखाने में हुए भयावह हादसे ने एक बार फिर औद्योगिक सुरक्षा के मानकों को प्रश्नांकित किया है। इस कारखाने में नूडल्स और दूसरे डिब्बाबंद नाश्ते का उत्पादन होता था।

मुजफ्फरपुर के एक कारखाने में हुए भयावह हादसे ने एक बार फिर औद्योगिक सुरक्षा के मानकों को प्रश्नांकित किया है। इस कारखाने में नूडल्स और दूसरे डिब्बाबंद नाश्ते का उत्पादन होता था। रविवार की सुबह कारखाने का बायलर फट गया, जिसमें छह लोगों के मारे जाने की खबर है। बताया जा रहा है कि जिस समय बायलर फटा, उस वक्त करीब पच्चीस मजदूर उस हिस्से में काम कर रहे थे। ज्यादातर मजदूर दिहाड़ी पर काम करने वाले थे। हादसा इतना भयावह था कि धमाके का असर तीन से चार किलोमीटर दूर तक महसूस किया गया।

कारखाने के परखच्चे उड़ गए और आसपास के कारखाने भी क्षतिग्रस्त हो गए। इस तरह इस हादसे में घायल मजदूरों की स्थिति का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। कारखानों में इस तरह के हादसे जब-तब सुनने-देखने को मिलते रहते हैं। कहीं गैस रिसाव की वजह से, तो कहीं आग लगने की वजह से मजदूरों की जान चली जाती है। सरकारें ऐसे हादसों पर कुछ देर को चिंता जता, मुआवजे और जांच की घोषणा कर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेती हैं। ताजा घटना में भी बिहार सरकार ने मृतकों के लिए चार-चार लाख रुपए मुआवजे की घोषणा कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है। मगर यह सवाल फिर भी अनुत्तरित है कि इस तरह के हादसे रोकने के लिए सरकारें कब गंभीरता दिखाएंगी या कोई व्यावहारिक नीति बन पाएगी।
हमारे देश में औद्योगिक हादसों को लेकर कोई कड़ा कानून नहीं है। इसलिए जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं, तो मरने वालों के परिजनों को मुआवजा वगैरह देकर या समझा-बुझा कर शांत कर दिया जाता है। दूसरे देशों में ऐसी घटनाओं पर कड़े दंड और भारी जुर्माने का प्रावधान है। इसलिए वे सुरक्षा संबंधी तमाम पहलुओं पर खासे सतर्क देखे जाते हैं। अपने यहां अव्वल तो बहुत सारे कारखाने बिना लाइसेंस के, प्रशासन से साठगांठ करके चलाए जाते हैं। जिनके पास लाइसेंस होता भी है, वे पर्यावरण प्रदूषण, अग्निशमन, मजदूरों की सुरक्षा और मशीनों आदि के तकनीकी पक्षों को ठीक रखने के मामले में लापरवाह ही देखे जाते हैं। इनमें से ज्यादातर में अप्रशिक्षित और दिहाड़ी मजदूरों से काम लिया जाता है। मुजफ्फरपुर के जिस कारखाने में हादसा हुआ उसमें भी ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर ही काम करते बताए जा रहे हैं। मशीनें चलाने के लिए अप्रशिक्षित मजदूरों को रखने का मतलब है, खतरे को न्योता देना। मगर ढेर सारे कारखाने इसलिए नियमित मजदूर रखने से बचते हैं, ताकि औद्योगिक नियम-कायदों की जवाबदेही से बच सकें।
आर्थिक विकास के लिए औद्योगिक विस्तार की जरूरत है। छोटे, मझोले और सूक्ष्म कारखाने हमारे यहां लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं। सरकारें इसीलिए इन्हें बढ़ावा देती हैं कि उनसे बहुत सारे लोगों को रोजगार मिल सकेगा और राजस्व की उगाही हो सकेगी। मगर इस आधार पर कारखानों को लोगों की जान से खेलने की छूट नहीं दी जा सकती। मुजफ्फरपुर के जिस कारखाने का बायलर फटा, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि वह पुराना पड़ या रखरखाव के अभाव में खतरनाक रूप ले चुका होगा। फिर अप्रशिक्षित मजदूरों के हवाले करके उसे और खतरनाक बना दिया गया होगा। अखिर इसकी जांच और जवाबदेही तय करने की जिम्मेदारी किसकी है। अगर इसके लिए जिम्मेदार महकमा अपनी आंख मूंदे बैठा रहा, तो क्या उस पर इस हादसे में मरने वालों की हत्या का दोष नहीं बनता। मगर सरकारें ऐसे कड़े नियम-कायदे बनाने को भला कहां तैयार हैं।

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