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झारखंड की सबसे पुरानी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा अभी सत्ता में है
Nitesh Ojha
by Lagatar News
झारखंड की सबसे पुरानी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा अभी सत्ता में है. झारखंड आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली झामुमो को सत्ता पाने के लिए काफी लंबे संघर्ष का सामना करना पड़ा. वैसे तो पार्टी को बनाने में तीन महत्वपूर्ण शख्सियतों: विनोद बिहारी महतो, ए.के.राय और शिबू सोरेन का योगदान था, लेकिन पहली दो शख्सियतों के निधन के बाद शिबू सोरेन ने ही झामुमो को एक अलग दिशा देने का काम किया. संघर्षों के कई दौर के बाद शिबू सोरेन की लड़ाई रंग लायी. न केवल झारखंड राज्य का गठन हुआ, बल्कि किसी राज्य गठन के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाली राजनीतिक पार्टी की लिस्ट में भी झामुमो शामिल भी हो गया. हालांकि इस लड़ाई में गुरु जी शिबू सोरेन को कई राजनीतिक और पारिवारिक मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा. राजनीतिक जीवन में पहली बार गुरु जी का अभिमन्यु वध हुआ. पारिवारिक समस्याओं में सबसे बड़ी घटना बेटे दुर्गा सोरेन का निधन होना साबित हुआ. इसी कठिनाई भरी जिंदगी के बीच शिबू सोरेन के दूसरे बेटे हेमंत सोरेन के हाथों में सत्ता की बागडोर आयी. नतीजा हुआ कि झामुमो और सशक्त रूप में उभरा. पार्टी बनने के बाद पहली बार झामुमो के 30 विधायक विधानसभा और 2 सांसद राज्यसभा तक पहुंचे.
झारखंड आंदोलन की शुरुआत हम 4 फरवरी 1973 से मान सकते हैं, जब प्रसिद्ध मार्क्सवादी चिंतक व राजनीतिक संत कामरेड एके राय, झारखंड आंदोलन के नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर शिबू सोरेन ने धनबाद के ऐतिहासिक गोल्फ ग्राउंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था. इसके बाद सभी जिलों में अलग-अलग दिनों में झामुमो का गठन हुआ था. इससे पहले स्व. विनोद बिहारी महतो ने डुमरी में शिवाजी समाज (कुर्मी समाज के उत्थान के लिए), शिबू सोरेन ने 1970 ई. में सोनोत संथाल समाज की स्थापना की थी. लेकिन ये संगठन सीमित स्तर पर कार्य कर रहे थे. झामुमो गठन बाद बिनोद बिहारी महतो इसके पहले अध्यक्ष बने और शिबू सोरेन महासचिव. गोल्फ ग्राउंड से इस तिकड़ी ने आंदोलन की रूपरेखा तय की. यह रूपरेखा ऐसी थी कि धनबाद के सड़कों पर नारा गूंजता था, 'लाल हरे झंडे की मैत्री जिंदाबाद'. इनके नेतृतव में ऐसा बिगुल फूंका कि इसका समापन 15 नवंबर 2000 को अलग झारखंड राज्य के निर्माण के साथ ही हुआ.
1972 से लेकर 1982 तक झामुमो झोले पर चलती रही. झोला शब्द इसलिए, क्योंकि इस समय तक पार्टी का कोई संविधान नहीं था. पार्टी का पहला संविधान 1982 में बना. इसे बनाने में ए.के.राय ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. वैसे तो 40 साल में सविधान में काफी बदलाव हुआ, लेकिन पहले संविधान की मूल प्रस्तावना यह थी कि वाम जनवादी विचारों पर आधारित यह संगठन झारखंड और देश के तमाम शोषित, पीड़ित समाज के लोगों के हक और अधिकार की लड़ाई लड़ेगा.
1982 से पहले तक गैर आदिवासी बिनोद बिहारी महतो और आदिवासी नेता शिबू सोरेन के नेतृत्व में शुरू झारखंड आंदोलन में गैर आदिवासियों का समर्थन मिल रहा था, इसके बावजूद यह आंदोलन बहुत तेजी नहीं पकड़ रहा था. झामुमो चुनावों में हिस्सा लेता था, लेकिन उसे चुनावों में मामूली सफलता ही मिलती थी. 1980 में शिबू सोरेन पहली बार दुमका से सांसद चुने गए. इसी वर्ष बिहार विधानसभा के लिए हुए चुनाव में पार्टी ने संताल परगना क्षेत्र की 18 में से 9 सीटें जीतकर पहली बार अपने मजबूत राजनीतिक वजूद का अहसास कराया.
1982 के बाद जब झामुमो का लोगों के प्रति जनाधार बढ़ रहा था, तभी पार्टी को एक बड़ा नुकसान झेलना पड़ा. 18 दिसंबर 1991 को बिनोद बिहारी महतो का निधन हो गया. शिबू सोरेन पहली बार 1991 में पार्टी के अध्यक्ष चुने गये. इस समय तक झारखंड की दो मुख्य पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ही थी. झामुमो झारखंड की राजनीति में हाशिए पर ही था. हालांकि इसी समय से झामुमो की राजनीतिक पहचान भी बननी शुरू हुई. जब 1991 में जनता दल और झामुमो का गठबंधन झारखंड आंदोलन के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ. उस गठबंधन का ही कमाल था कि पहली बार झामुमो के 6 सांसद लोकसभा में दिख पड़े. लोकसभा चुनाव में झामुमो को उतनी बड़ी सफलता न तो कभी पहले मिली थी और न ही बाद में कभी मिली. इसके पहले तो झामुमो अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर आर्थिक नाकेबंदी जैसे क्रियाकलापों में ज्यादा सक्रिय रहता था.
1992 के बाद झामुमो की भूमिका राजनीतिक तौर पर भी काफी बढ़ने लगी. राजनीतिक मजबूती के लिए ही झारखंड मुक्ति मोर्चा की युवा और छात्र शाखा झारखंड छात्र युवा मोर्चा (झाछायुमो) का गठन 16 अक्टूबर 1991 को रांची में एक सम्मेलन में किया गया. छात्र संगठन के गठन ने झामुमो की अलग झारखंड राज्य आंदोलन की मांग को मजबूती दी. दोनों के मजबूत संघर्ष का असर यह हुआ कि राज्य एवं केन्द्र सरकार को समस्या के तत्काल समाधान के लिए झारखंड प्रशासी परिषद की योजना को स्वीकृति देनी पड़ी. अतः केन्द्र सरकार की मध्यस्थता से एक समझौता हुआ. केन्द्र सरकार, राज्य सरकार एवं झारखंड मुक्ति मोर्चा के त्रिपक्षीय समझौते के फलस्वरूप 9 अगस्त, 1995 को झारखंड एरिया ऑटोनॉमस काउंसिल (जैक) का गठन हुआ. शिबू सोरेन इसके अध्यक्ष और सूरज मंडल उपाध्यक्ष बनाये गये. जैक के अंतर्गत बिहार के तत्कालीन 18 जिले शामिल थे. आगे इतने ही जिले झारखंड राज्य में शामिल करके इस राज्य का गठन किया गया. हालांकि जैक की भूमिका काफी सीमित रखी गयी. इससे अलग राज्य का आंदोलन चलता रहा. जिसकी परिणति 2000 में अलग झारखंड राज्य निर्माण के रूप में हुई.
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Rani Sahu
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