सम्पादकीय

आपबीती: ब्लू टिक मिलते ही फंस गया, 'वसूली भाई' ने टशन वालों को दिया झटका

Neha Dani
2 Nov 2022 1:47 AM GMT
आपबीती: ब्लू टिक मिलते ही फंस गया, वसूली भाई ने टशन वालों को दिया झटका
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जो दे पाएंगे वही पत्रकार कहलाएंगे जैसी स्थिति भी नहीं दिखाई देती।
आप तो वरिष्ठ पत्रकार हैं, आपका ट्विटर हैंडल वेरिफाईड क्यों नहीं है? बहुत ही सामान्य सवाल जिसे मैं बहुत दिनों तक सुनता आया। हमारी टीम के जूनियर साथियों ने फटाफट अपने ट्विटर हैंडल वैरिफाईड करवा लिए। किसी के 50 फॉलोअर किसी के 10 भी नहीं। नीला टीका लगाए कई ऐसे पत्रकार जिनके बारे में कभी सुना नहीं वो भी ट्विटर पर करतब दिखाते रहे। जिसे ये टीका मिला वही चौड़ा हो गया। बिना टीके वालों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा।
ऐसा लगा आधार कार्ड हो न हो नीला टीका होना चाहिए। बिना इसके समाज में कोई सम्मान ही नहीं। खैर हमारे साथियों को लज्जा आई और आनन-फानन में हमारे वेरिफिकेशन के लिए टीम जुट गई। दो दिन में ये काम हो भी गया। फिर सिर मुंडाते ओले पड़े ऐसा लगा 'वसूली भाई' (मस्क भैया) हमारा ही इंतजार कर रहे थे। भारतीय मुद्रा में 1600 प्रति माह का शुल्क वसूलने की सुगबुगाहट शुरू हो गई। हांलाकि अभी बस भय बैठाया है और पुष्टि नहीं हुई लेकिन ऐसा लगा जैसे नीले टीके की सत्ता पर ही सवाल गहरा गया।
कोई नीले टीके वाला कुछ ट्वीट कर दे तो महत्वपूर्ण हो जाता है। ट्विटर ने वेरिफाईड जो कर रखा है। मस्क को ऐसा लगता है बहुत दिनों से इससे खुन्नस थी। वेरिफाईड अकांउट के नाम पर कितनों की दुकान भी सज गई। टीवी मीडिया में भी वेरिफाईड चेहरों को बैठाने का चलन चल पड़ा। ऐसा नहीं कि सबके सब फर्जी हैं, कई तो ऐसे भी हैं जो पहले से मुख्य धारा के मीडिया में सक्रिय थे और फिर ट्विटर ने उन्हें नए पंख दे दिए।
पत्रकारों की 'पहचान' का मुद्दा
पहले पत्रकार अपनी खबरों के लिए जाने जाते थे लेकिन अब अपने फॉलोअर्स की वजह से जाने जाते हैं। कई नए-नए रंगरूट अपने नीले टीके पर इतराते हैं तो कई सचमुच के बड़े पत्रकार आज भी इस सम्मान से अछूते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो इस दांव पेंच को जानते हैं और इस खेल में पड़ते ही नहीं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी दी। सामान्य लोगों को भी पत्रकार बनने का मौका दिया लेकिन है तो निजी व्यवसायिक संस्थान ही। अंततः अपने व्यवसायिक हितों को साधना ही उनका परम कर्तव्य है। एलन मस्क तो खाटी व्यवसायी हैं, वो जानते हैं कि इस नीले टीके की बाजार में कितनी मारा मारी है, लिहाजा इसका व्यवसायिक फायदा तो उठाएंगे ही। खैर ये कोई नई बात नहीं है कि पहले फ्री की आदत लगाओ फिर धीरे से असली एजेंडा सामने रखो। 1600 प्रति माह उन लोगों के लिए तो कोई बड़ी बात नहीं जो ट्विटर के जरिए अपने धंधे को आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन पत्रकार (असली वालों) के लिए ये जरा टेढ़ी-खीर हो जाएगी।
हमें भी बधाईयां मिलीं। ऐसा लगा पीएचडी के बाद यही एक उपलब्धि रह गई थी। ट्विटर पर वेरिफाईड हो गए, अब गंगा नहा लें। हांलाकि मैंने पहले भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ये बात लिखी थी लेकिन तब 'वेरिफाईड' कहां था। लोगों को ये भी लगा इसको नीला टीका मिला नहीं इसलिए खुन्नस निकाल रहा है। अब बात तब लिख रहा हूं जब कथित रूप से वेरिफाईड हूं।
ये सचमुच में एक मायाजाल है। आभासी दुनिया के इस सम्मान में उलझना मतलब सोशल मीडिया चलाने वालों के हाथों की कठपुतली बनना है। आप क्या डालें, कौन सी पोस्ट चले, जैसी सारी बातों पर पूरा नियंत्रण इन संस्थाओं का है। अब किसकी बात सुनें और कौन महत्वपूर्ण है, इसकी कमान भी इन लोगों ने इस वेरिफिकेशन के धंधे से मजबूत कर ली है। 1600 रु. हर महीने के हम तो नहीं दे पाएंगे। जो दे पाएंगे वही पत्रकार कहलाएंगे जैसी स्थिति भी नहीं दिखाई देती।

सोर्स: अमर उजाला

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