सम्पादकीय

आमिर खान की फिल्म 'लाल सिंह चड्‌ढा' भारतीय 'फॉरेस्ट गंप' है

Rani Sahu
26 Aug 2021 6:54 PM GMT
आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्‌ढा भारतीय फॉरेस्ट गंप है
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महामारी के प्रभावों को झेलते हुए भी लोग अपना काम करते रहे। इसी तरह फिल्मकार भी फिल्मों के लिए पटकथाएं बनाते रहे

जयप्रकाश चौकसे। महामारी के प्रभावों को झेलते हुए भी लोग अपना काम करते रहे। इसी तरह फिल्मकार भी फिल्मों के लिए पटकथाएं बनाते रहे। आदित्य चोपड़ा, सलमान खान और कटरीना कैफ अभिनीत 'टाइगर भाग-3' की तैयारी कर रहे हैं। आमिर और करीना ने दिल्ली में 'लाल सिंह चड्ढा' की शूटिंग की है। आमिर खान की फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' फिल्मकार रॉबर्ट ज़ेमेकिस की फिल्म 'फॉरेस्ट गंप' से प्रेरित प्रयास है।

गौरतलब है कि कुछ लोग किसी शारीरिक कमी के साथ जन्म लेते हैं। इन्हें अंग्रेजी भाषा में चिल्ड्रन ऑफ ए लेसर गॉड कहा जाता है। इस कमतरी के बावजूद मनुष्य अपने साहस और नेक नीयत से अवाम की भलाई के काम करता है। विपरीत हालात से जूझते हुए अपने व्यक्तित्व में छुपे हुए हुनर को खोजकर मनुष्य जीवन में सार्थकता पाता है।
हर व्यक्ति एक विराट संभावना है। कोयले की खदान में ही हीरे मिलते हैं। हीरा, जिस खदान में होता है, उसी के आस-पास की चीजों से अपना रंग-रूप लेता है, ठीक वैसे ही जैसे शिशु पर अपने वंश और परिवेश का प्रभाव पड़ता है, परंतु इन तमाम प्रभावों के बावजूद हर व्यक्ति का अपना निजी भी बहुत कुछ होता है।
फॉरेस्ट गंप भी एक कमतरी के साथ जन्मा है। वह मंदबुद्धि है और कुछ बैसाखीनुमा सहारे की मदद से चलता है। प्राय: इस तरह के व्यक्ति का उसके साथी ही मखौल उड़ाते हैं। हम कितने निर्मम हैं कि कमतरियों के आधार पर व्यक्ति को संबोधित करते हैं और उनपर हंसते हैं। हकलाने का मखौल उड़ाने को लेकर रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म 'हिचकी' बनी है। एक अपाहिज व्यक्ति अपने दृष्टिहीन मित्र को राह दिखाता है।
इस विषय पर बनी ताराचंद बड़जात्या की फिल्म 'दोस्ती' खूब पसंद की गई थी। बहरहाल, मखौल उड़ाने वाले हुल्लड़बाजों से दूर जाने के लिए फॉरेस्ट गंप भागते हुए ही जान पाता है कि वह बहुत तेज गति से दौड़ सकता है। संकट मनुष्य को मजबूत बनाते हैं। 'फॉरेस्ट गंप' ऐसा पात्र रचा गया है, जो अपने साहसिक कार्यों के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा प्रशंसा पाता है। इससे प्रेरित शाहरुख खान अभिनीत फिल्म भी बनी है परंतु वह पसंद नहीं की गई। बहरहाल, गहरी संवेदनशीलता से ही ऐसी फिल्में बनाई जा सकती हैं।
गंप का पात्र सुपरमैन या स्पाइडर मैन नहीं है परंतु वह आम आदमी होते हुए भी अपने जन्म की सतह से ऊपर उठकर भलाई के काम कर सकता है। यह चार्ली चैपलिन से भी अलग है। चैपलिन तो आम आदमी है, उसके पास कोई चमत्कार दिखाने की क्षमता नहीं है परंतु उसकी मानवीय करुणा लाजवाब है। फॉरेस्ट गंप सीमित दायरे में ही अवतारवादी अवधारणा का पात्र नजर आने लगता है।
वह वॉशिंगटन से वियतनाम तक मैराथन दौड़ सकता है। गौरतलब है कि महामारी की पीड़ा पर फिल्में नहीं बन रही हैं, क्योंकि कोई भी फिल्मकार भरते हुए जख्मों से छेड़छाड़ नहीं करता। समय, मरहम लगा रहा है। कौन जाने कब समय दर्द देता है, कब दवा देता है? समय के निरंतर घूमते हुए चक्र के हम छोटे से कलपुर्जे मात्र हैं, कुछ मूर्ख समझते हैं कि वे इस चक्र को चला रहे हैं।
यह टी.एस इलियट की एक पंक्ति का अनुवाद मात्र है और अनुवाद में कभी-कभी कुछ छूट भी जाता है। बहरहाल, करीना कपूर ने एक किताब लिखी है, जिसमें वे गर्भवती महिलाओं को सलाह दे रही हैं कि गर्भ के नवें माह में कुछ कसरत की जा सकती है।
बाजार में इस विषय पर बहुत सी किताबें उपलब्ध हैं। गोया की वर्तमान में सितारे की लिखी हुई किताब उसके प्रशंसक खरीद लेते हैं। क्या अजब दौर है कि किताब का लेखक सितारा नहीं माना जाता है, परंतु सितारा लेखक हो सकता है! सितारा, चेकबुक से अधिक अपनी लिखी किताब पर हस्ताक्षर करता है।


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