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आम आदमी पार्टी की सफलता पंजाब में उसके प्रदर्शन पर ही निर्भर
नीरज कौशल का कॉलम:
आम आदमी पार्टी ने पंजाब के स्थापित नेताओं को झाड़ू से बुहार दिया है। पंजाब के लोग बदलाव के लिए बेचैन थे। महज दो दशक पहले वह देश का सबसे समृद्ध राज्य हुआ करता था, लेकिन आज 19वें स्थान पर है। बहरहाल, 'आप' जीत तो गई, लेकिन क्या वह पंजाब की आर्थिक बदहाली पर रोक भी लगा सकेगी? पार्टी का घोषणा-पत्र एक मिली-जुली तस्वीर सामने रखता है।
यह सब्सिडियों के वादे से भरा है, जिससे वास्तव में राज्य की वित्तीय दशा और बिगड़ जाएगी। 'आप' ने यह भी वादा किया है कि वह शराब के अवैध धंधे और अवैध खनन का खात्मा करेगी और निजी ट्रांसपोर्टरों की लगाम कसेगी। पंजाब के लोग तो इसका स्वागत ही करेंगे। इससे पार्टी कुछ संसाधन जुटा सकती है, ताकि अपने वादों को पूरा कर सके और विकास कार्यों के लिए भी कुछ पैसा बचा सके।
'आप' दिल्ली में साफ-सुथरे तरीके से प्रशासन चलाने की प्रतिष्ठा के दम पर पंजाब में आई है। कांग्रेस सरकार विगत पांच वर्षों में अपने वित्तीय लक्ष्यों का 81 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा संकलित करने में नाकाम रही थी। अगर 'आप' उतना ही करने में सफल रही तो अपने कुछ वादों को पूरा कर सकेगी। कांग्रेस विरासत में 2.7 लाख करोड़ का राजकोषीय घाटा पीछे छोड़कर गई है।
2017 में जब वह सत्ता में आई थी, तब भाजपा-अकाली दल गठबंधन 1.3 लाख करोड़ का राजकोषीय घाटा छोड़ गया था। ऐसे में विकास कार्यों के लिए राजस्व ही नहीं बच पाया है। पंजाब में यह हालत है कि राजस्व के हर सौ रुपयों में से 40 रुपए कर्जों को चुकाने में चले जाते हैं। 2019-20 में पंजाब के राजस्व का 85 प्रतिशत हिस्सा तीन ही मदों में खर्च हुआ था- राज्य कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और ब्याज के भुगतान।
इसके बाद किसी और पर खर्च करने की स्थिति ही कहां बची? केजरीवाल ने दो वादे किए हैं- हर महिला को प्रतिमाह 1000 रुपए की मदद और हर घर को 300 यूनिट्स की मुफ्त बिजली। ये दोनों वादे ही राज्य के सरकारी खजाने में हर साल 25 हजार करोड़ रुपए की सेंध लगाने वाले हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने सम्पत्ति कर हटाने का भी वादा कर डाला है।
फिर 16 हजार मोहल्ला क्लिनिक खोलने और शिक्षा में निवेश करने की गुंजाइश ही कहां रहेगी? क्या सरकार कृषि-आय पर कर लगाएगी? वास्तव में पंजाब की आर्थिक-बदहाली का मुख्य कारण ही उसकी कृषि पर निर्भरता है। इस राज्य की जीडीपी का 29 प्रतिशत हिस्सा कृषि पर आधारित है, जो कि राष्ट्रीय औसत से 10 प्रतिशत अधिक है। पंजाबी युवकों के ड्रीमलैंड कनाडा तक में यह 7 प्रतिशत ही है और अमेरिका में इससे भी कम है।
जहां दुनिया ज्यादा से ज्यादा उद्योग और सेवा क्षेत्र की ओर बढ़ रही है, वहीं पंजाब अभी भी कृषि क्षेत्र पर ही आश्रित है। उसने तो उद्योगों की कीमत पर अपनी खेती-बाड़ी को आगे बढ़ाया है। राज्य की अर्थव्यवस्था सब्सिडियों पर चलती है। मैं हाल ही में पंजाब गई थी। वहां किसानों और कॉलेज के युवा छात्रों से बात करने पर पाया कि वे मानते हैं सरकार का मुख्य काम सब्सिडी देना है।
उन्होंने बार-बार कहा कि सरकार अगर चाहती है कि किसान फसलों के चक्र में बदलाव करें तो उन्हें दूसरी फसलों के लिए भी सब्सिडी देना होगी। उनकी बात में कुछ दम तो था, लेकिन ऐसी प्रणाली में कुछ गड़बड़ है जो बिना सब्सिडी के नहीं चल सकती। किसानों को मुफ्त पानी, बिजली, कम दाम पर खाद मिलती है और उनकी उपज एमएसपी पर टिकी होती है।
राज्य में गेहूं और चावल दो सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाने वाली फसलें हैं, क्योंकि सरकार इन्हें एमएसपी पर खरीदने की गारंटी देती है। कुछ छात्रों ने तो यहां तक बताया कि अनाज का व्यापार यहां जोरों पर है। लोग यूपी से सस्ते दामों पर गेहूं-चावल खरीदते हैं, क्योंकि वहां एमएसपी की गारंटी नहीं और फिर इसे पंजाब लाकर एफसीआई के गोदामों को एमएसपी पर बेचते हैं। 'आप' ने 42 फीसदी जनादेश के साथ जीत हासिल की है, इससे उसे राज्य में बदलाव लाने के लिए जरूरी राजनीतिक ताकत मिल गई है।
पर पार्टी ने राज्य में निवेशों को आकृष्ट करने के लिए कोई विजन साझा नहीं किया है। पिछले दो दशकों में एक के बाद एक उद्योग पंजाब से बाहर चले गए हैं, जहां जमीन की कीमतें अपेक्षाकृत रूप से कम हैं और श्रमिक भी सस्ते हैं। इज ऑफ डुइंग बिजनेस में पंजाब 19वें क्रम पर है।
राष्ट्रीय राजनीति में 'आप' की सफलता पंजाब में उसके प्रदर्शन पर टिकी होगी। पंजाबी युवा एक बेहतर भविष्य की चाह में आज अपना राज्य और यहां तक कि देश भी छोड़ रहे हैं। 'आप' की सफलता इससे भी तय होगी कि वह युवाओं के पलायन को रोकने में कहां तक कामयाब होती है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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