सम्पादकीय

आम आदमी पार्टी ने 2017 की हार से पहले सबक सीखा फिर पंजाब का किला फतह किया

Rani Sahu
11 March 2022 2:28 PM GMT
आम आदमी पार्टी ने 2017 की हार से पहले सबक सीखा फिर पंजाब का किला फतह किया
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एक राष्ट्रीय पार्टी का रूप अख्तियार करते हुए आम आदमी पार्टी (AAP) पंजाब (Punjab) में सरकार बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है

पल्लवी रेब्बाप्रागदा

एक राष्ट्रीय पार्टी का रूप अख्तियार करते हुए आम आदमी पार्टी (AAP) पंजाब (Punjab) में सरकार बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है. लेकिन ऐसा नहीं है कि अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) आज राष्ट्रीय नेता बने हैं. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के पंडालों से एक नेता के रूप में उनका उदय हुआ जो एक बिगड़ी हुई व्यवस्था के बीच आशा की किरण की तरह आया और राष्ट्रीय प्रतीक बन गया. पंजाब का मत दिल्ली मॉडल पर एक जनमत संग्रह है जिसे उनके नेतृत्व ने सक्षम बनाया.
सत्ताधारी पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत है जिसके पास हर कदम पर पैसे की कोई कमी नहीं होती. उसके पास समर्थकों की बड़ी संख्या के साथ हेलीकॉप्टर और चकाचौंध करने वाली रंगीन लाइट भी होती हैं जिनके साये में वो प्रचार करती हैं.
यह भगवा ब्रिगेड के लिए एक त्योहार से कम नहीं होता.
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के एक विश्लेषण से साफ हुआ कि वित्त वर्ष 2019-2020 के दौरान सात राष्ट्रीय और 44 क्षेत्रीय दलों की कुल घोषित संपत्ति क्रमशः 6,988.57 करोड़ रुपये और 2,129.38 करोड़ रुपये थी. इनमें राष्ट्रीय दलों के बीच 4,847.78 करोड़ रुपये (69.37 प्रतिशत) के साथ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सबसे ज्यादा संपत्ति की घोषणा की. इसके बाद बहुजन समाज पार्टी (BSP) का नंबर आता है जिसने 698.33 करोड़ रुपये (9.99 प्रतिशत) की संपत्ति घोषित की, वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने 588.16 करोड़ रुपये (8.42 प्रतिशत) की संपत्ति घोषित की.
आम आदमी पार्टी का अभियान दिल्ली मॉडल की उप्लब्धियों पर आधारित रहा. इसके प्रमुख चुनाव अभियान गीत 'इक मौका' का उदाहरण ले, जो कि स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी और बिजली पर केंद्रित है. गाने में 'मोटोरन दा पानी सिद्धा जाउंगा खार नू' जैसी लाइनें थीं जिसका हिन्दी में मतलब होता है सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए मोटरों वाले पंप से पानी खेतों तक पहुंचाया जाएगा. दूसरी लाइन 'खेती वाली बिजली भी चौबीस घंटे लाउंगे' कहती है कि आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार खेती के लिए चौबीसों घंटे बिजली उप्लब्ध कराएगी.
आइए एक बार हम कांग्रेस की अंदरूनी कलह और अकाली दल के भ्रष्टाचार को किनारे कर दें और तथ्यों पर जोर दें. भूजल के मामले में पंजाब के 138 ब्लॉकों में से 109 पहले ही अति शोषित क्षेत्र में गिने जाते हैं जिसका मतलब है कि भूजल की निकासी यहां पर 100 फीसदी से अधिक है. इसके साथ ही सिंघु बॉर्डर पर साल भरे चले किसान आंदोलन ने पंजाबियों को न केवल दिल्ली मॉडल बल्कि आम आदमी पार्टी के नेताओं की मददगार छवि से भी दो-चार कराया. यह विश्वास पर आधारित एक बंधन का धीमी गति के साथ निर्माण जैसा रहा.
बड़ी मोटर लगाने पर किसानों ने 17,500 करोड़ रुपये खर्च कर दिए
उस राज्य के लिए यह थोड़ा हास्यास्पद है जिसने हरित क्रांति की शुरुआत की और जिसकी मिट्टी की उर्वरता को लेकर कवियों ने गीत बनाए और गाए हैं. 1984 में पंजाब में 2.44 मिलियन एकड़ फीट (MAF) भूजल मौजूद था जो कि तीन दशकों की अवधि में घटकर माइनस 11.63 MAF हो गया है. शुरुआत में केवल पांच जिलों में ज्यादा भूजल का दोहन किया गया, मगर 2013 तक इसमें पंद्रह जिले शामिल हो गए.
आम आदमी पार्टी सरकार के अथक प्रयासों से दिल्ली के पल्ला क्षेत्र में भूजल स्तर में दो मीटर की वृद्धि हुई है. सरकार ने 600 जलाशयों और झीलों के साथ भूजल स्तर को और बेहतर बनाने के लिए पुरानी नहरों का कायाकल्प कर दिया. इस तरह के आंकड़े आमतौर पर राजनीतिक गलियारों में खो जाते हैं मगर आम आदमी पार्टी ने ये सुनिश्चित किया कि इस तरह की बातें चुनाव प्रचार के दौरान सामने आएं. हमें यह याद रखना चाहिए कि किसी कृषि प्रधान राज्य में मतदाता को अपने खेत की उपज की परवाह होती है.
जब कैप्टन अमरिन्दर सिंह मुख्यमंत्री थे उस वक्त सब्सिडी के दौरान 5 अश्वशक्ति (हॉर्सपावर) का मोटर खेतों में पानी निकालने के लिए पर्याप्त होता था. मगर पिछले कुछ साल में किसान 25 हॉर्सपावर से 35 हॉर्सपावर के बीच की मोटरों का इस्तेमाल करने लगे हैं क्योंकि भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है. कृषि विभाग के एक अनुमान से पता चलता है कि बोरवेल को गहरा करने और बड़ी मोटर लगाने पर किसानों ने 17,500 करोड़ रुपये खर्च कर दिए.
बिजली क्षेत्र से भ्रष्टाचार दूर कर दिया गया है
यहां विशेषज्ञों की यह राय ठीक है कि भूजल के इस बेतरतीब इस्तेमाल के लिए ट्यूबवेलों को मिलने वाली मुफ्त बिजली जिम्मेदार है. इसके अलावा मुफ्त बिजली के कारण किसान न तो अलग-अलग के फसल उगाते हैं न ही कम पानी में पैदावार देने वाली फसलों को आजमाते हैं. इसकी तुलना दिल्ली की बिजली सब्सिडी से की जा सकती है जहां विवेक का इस्तेमाल कर बिजली क्षेत्र से भ्रष्टाचार दूर कर दिया गया है और दिल्ली सरकार की ऊर्जा कंपनी ट्रांसको के पास अब पैसों की कमी भी नहीं है. आम आदमी पार्टी के मॉडल में कुछ मुफ्त नहीं दिया जाता बल्कि राज्य के ऊर्जा क्षेत्र को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाता है ताकि वो खुद सब्सिडी दे सकें.
दिल्ली के बिजली विभाग ने यह सुनिश्चित किया है कि डिस्कॉम द्वारा एकत्र किए गए बकाया का 80 प्रतिशत होल्डिंग कंपनी के बजाय दिल्ली के स्टेट ट्रांसमिशन यूटिलिटी (STU) – दिल्ली ट्रांसको लिमिटेड – को दिया जाए. इससे राज्य अर्थिक रूप से मजबूत होता है और बकाया डिस्कॉम से डीटीएल को स्तानांतरित किए जाने से ट्रांसमिशन के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाया जाता है.
न्यायपालिका, सीएजी ऑडिट, डीईआरसी में विधायकों के सामने मीटिंग और सरकार के पास निवदेन की सुविधा से डिस्कॉम को जनता के प्रति जवाबदेह बनाया गया. नतीजा यह हुआ कि दिल्ली देश में अकेला राज्य हो गया जहां बगैर बिजली बिल बढ़ाए पांच साल से चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति की जा रही है. बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच राजनीतिक बयानबाजी में इस तरह के कदम के पीछे का अर्थशास्त्र खो जाता है.
टीवी बहसों में मान और केजरीवाल
अकाली दल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी पार्टियों के झूठे वादों और अक्षमताओं से थक चुके किसानों के लिए पानी और बिजली चिंता के प्रमुख विषय हैं. इसके अलावा आम आदमी पार्टी के पंजाब में थोक भाव में सीटें लाने के पांच बड़े कारण हैं. पहला तो ये कि पिछली बार की तरह इस बार आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच किसी तरह की अंदरूनी कलह नहीं थी. 2017 में फतेहगढ़ साहिब से AAP सांसद हरिंदर खालसा, पटियाला से सांसद धर्मवीर गांधी, ढाका से एचएस फूलका और संगरूर से भगवंत मान के अलावा फरीदकोट से साधु सिंह जैसे अलग-अलग तरह के नेता मौजूद थे.
इनमें से दो हरिंदर खालसा और धर्मवीर गांधी ने आम आदमी पार्टी के पूर्व संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर ने अकाली-बीजेपी से लोगों के मोह भंग को महसूस कर लिया था और बड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के साथ आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया. स्थानीय नेतृत्व में स्पष्टता की कमी को देख कर सभी खुद को बड़े पद के उम्मीदवार की तरह देखने लगे थे. उनकी तुलना में शांत नेता एचएस फुल्का और साधु सिंह ने पार्टी में अपनी संभावनाओं को खराब देख कर पार्टी छोड़ दी. दिलचस्प बात यह है कि इनकी ज्यादातर सीटें भगवंत मान के संगरूर के पास हैं. इस बार पार्टी संगरूर से लोकसभा सांसद भगवंत मान के चेहरे पर ही टिकी रही जिन्होंने संसद से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की लौ जलाए रखी. उन्हें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया और टीवी बहसों में मान और केजरीवाल ये सुनिश्चित करते थे कि पंजाब में सबसे प्रमुख सिख चेहरे को ही मुख्यमंत्री पद के लिए आम आदमी पार्टी की पसंद बनाए रखा जाएगा.
पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत का एक और कारण हताशा में बने गठबंधनों का न होना है. क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू की आवाज-ए-पंजाब से अलग होकर लुधियाना से निर्दलीय विधायक बलविंदर सिंह बैंस और लोक इंसाफ पार्टी के सिमरजीत सिंह बैंस आम आदमी पार्टी के साथ आ गए थे. सिमरजीत बैंस के खिलाफ कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन से लेकर मारपीट और डकैती, धमकी देने, हत्या के प्रयास और बलात्कार तक कई मामले दर्ज हैं. मगर सिमरजीत और उनके समर्थक बेफिक्र नजर आए. आम आदमी पार्टी के खुलवंत सिंह सिद्धू आत्म नगर से चुनाव जीत गए हैं.
पंजाब में जो हुआ वह वैसा ही है जैसा 2015 में दिल्ली में हुआ था
तीसरा कारण यह है कि पार्टी ने अपने स्थानीय प्रचारकों को चतुराई से चुना. 2017 में राज्यसभा सांसद संजय सिंह और दुर्गेश पाठक को पंजाब में पर्यवेक्षक के रूप में तैनात किया गया था. दोनों पूर्वांचल के चेहरे होने के कारण स्थानीय लोग उनके साथ हिलमिल नहीं सके. उन्हें लगा कि सुल्तानपुर और संत कबीर नगर के नेता एक ऐसे राज्य में प्रचार कर रहे हैं जहां सिख चेहरा पेश नहीं किया गया, इसके बावजूद कि यहां मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पंजाब के मुख्यमंत्री बनने की अफवाह भी जोर पकड़ रही थी.
इस बार एक पंजाबी 'दिल्ली दा मुंडा' पंजाबी भाषी राजिंदर नगर से विधायक राघव चड्ढा को पंजाब भेजा गया. चड्ढा अभियान और कैडर को एक साथ रखने में कामयाब रहे और एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभरने वाले दल में अपने स्थान को भी ऊंचा किया. उनके साथ दिल्ली के विधायक जरनैल सिंह भी मौजूद रहे और पूरे समय जमीनी काम करते दिखे. अंत में विश्वसनीय और शिक्षित नेताओं के चयन से बड़ा फर्क पड़ा. रोपड़ से 37 साल के आरटीआई कार्यकर्ता दिनेश चड्ढा को टिकट दिया गया. हरजोत सिंह बैंस आनंदपुर साहिब से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार बनाए गए. वे 18 साल की उम्र से पंजाब में युवाओं के आंदोलनों का नेतृत्व करते आ रहे थे. सभ्य समाज से अच्छे लोगों को राजनीति में साथ लाना एक ऐसी प्रथा है जिस पर आम आदमी पार्टी गर्व करती है. इसी तरह इंग्लैंड में शिक्षित एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर गुरिंदर गैरी बिरिंग को अमलोह से मैदान में उतारा गया. तीनों ने ही बेहतरीन प्रदर्शन किया.
मार्च 2022 में पंजाब में जो हुआ वह वैसा ही है जैसा 2015 में दिल्ली में हुआ था. उस वक्त शीला दीक्षित बीमार थीं और आलाकमान के आशीर्वाद से एक अक्षम अजय माकन को उनकी जगह लेने के लिए लाया गया. वे बीजेपी के डॉ हर्षवर्धन से खुद को बचाने की कोशिश कर रहे थे मगर एक तीसरी आम आदमी पार्टी ने किला फतह कर लिया. अरविंद केजरीवाल के शासन के मॉडल पर पंजाब के लोगों की कड़ी नजर रही है और लोगों ने देखा है कि इससे दिल्ली में लोगों तक राहत पहुंच रही है. तिमारपुर के मौजूदा विधायक दिलीप पांडे ने कहा कि पंजाब की जीत एक तरह से केजरीवाल सरकार के विकास मॉडल की स्वीकृति है. आम आदमी पार्टी के शासन मॉडल और खुद में बदलाव नहीं लाने वाली मौजूदा राजनीतिक दलों से लोगों का मोहभंग आने वाले दशकों में भारतीय राजनीति की रूपरेखा तय करेगी.
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