सम्पादकीय

आधार कार्ड और मतदाता कार्ड

Subhi
21 Dec 2021 2:12 AM GMT
आधार कार्ड और मतदाता कार्ड
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लोकसभा ने आज आधार कार्ड से मतदाता कार्ड को जोड़ने वाला विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस विधेयक को चुनाव सुधार विधेयक कहा जा रहा है। क्योंकि मामला चुनाव आयोग के संवैधानिक अधिकारों को लेकर भी खड़ा किया जा रहा है।

लोकसभा ने आज आधार कार्ड से मतदाता कार्ड को जोड़ने वाला विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस विधेयक को चुनाव सुधार विधेयक कहा जा रहा है। क्योंकि मामला चुनाव आयोग के संवैधानिक अधिकारों को लेकर भी खड़ा किया जा रहा है। सबसे पहले हमें भारत के लोकतन्त्र की आधारशिला के बारे में सोचना चाहिए और इस धरातल पर चुनाव आयोग की संवैधानिक हैसियत का भी जायजा लेना चाहिए। हमारे संविधान निर्माताओं ने यह ऐसी स्वतन्त्र संस्था खड़ी की थी जिसके कन्धे पर समूचे लोकतन्त्र की इमारत को उठाने का भार था। यह जिम्मेदारी इसलिए बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि चुनाव आयोग ही भविष्य में भारत की राजनैतिक दलीय व्यवस्था की शासन प्रणाली का संरक्षक बनने जा रहा था।भारत के प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के एक वोट का अधिकार देकर उसके मतदान को पूर्णतः गुप्त रखने का उसे वचन निभाना था इस प्रक्रिया में जनता के बहुमत से चुने हुए प्रत्याशियों को सम्बन्धित चुने हुए सदन में जाकर बैठने के अधिकार से अधिकृत करना था। विधानसभाओं से लेकर लोकसभा व राज्यसभा के सदस्यों के चुनाव को पूरी पारदर्शिता, निष्पक्षता व स्वतन्त्रता के साथ कराने की जिम्मेदारी समेत इसे भारत के राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का चुनाव भी सम्पन्न कराना था। (हालांकि बाद में राज्यसभा चुनावों के नियमों में परिवर्तन किया गया और इसे गुप्त मतदान के दायरे से बाहर लाया गया)। अतः आम भारतीय की नजर में ही नहीं बल्कि विश्व के सभी लोकतान्त्रिक देशों में भारत के चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा और उसके द्वारा लागू की गई चुनाव प्रणाली एक मिसाल के तौर पर समझी गई जिससे इसकी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा बनी। इस सन्दर्भ में हमें इतना ही विचार करना है कि आधार कार्ड व मतदाता कार्ड में मूलभूत अन्तर क्या है। आधार कार्ड का लक्ष्य भारत में निवास करने वाले लोगों को मौलिक नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए था विशेष कर सरकार द्वारा संचालित जन कल्याण योजनाओं को सभी लाभार्थियों को पहुंचाने के लिए। इसीलिए आधार कार्ड पर यह लिखा होता है कि यह केवल निवासी होने का प्रमाणपत्र है, भारत की नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है। जबकि चुनाव आयोग केवल भारत के नागरिकों को ही वोट डालने का अधिकार देता है।मगर सवाल यह है कि चुनाव आयोग भारतीयों की नागरिकता किस प्रकार तय करता है। इस काम में विभिन्न राज्य सरकारें उसकी मदद करती हैं और नागरिक पंजीकरण के ग्राम पंचायत स्तर से लेकर शहरी निकायों के स्तर तक के आंकड़े उपलब्ध कराती हैं। जबकि आधार कार्ड के लिए यह प्रक्रिया नहीं अपनायी जाती है। अब यह भी सुनिश्चित किया जाए कि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक हुए बिना भी केवल स्थायी निवासी होने पर मतदान में हिस्सा ले सकता है या नहीं। इसी वजह से इस प्रावधान को वैकल्पिक बनाया गया है। अर्थात यदि कोई नागरिक अपने आधार कार्ड से मतदाता कार्ड को जोड़ना चाहे तो जोड़ सकता है। दरअसल चुनाव आयोग की तरफ से भी यह सुझाव आया था कि आधार कार्ड व मतदाता कार्ड को जोड़ कर मतदाता सूची से जुड़ी जटिलताओं को कम किया जा सकता है। ये जटिलताएं और भी कम हो सकती हैं यदि हम राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण की कोई सर्वमान्य विधि निकाल लें। उस स्थिति में पुनः चुनाव आयोग के अधिकार आड़े आयेंगे क्योंकि आयोग जिस नागरिक को एक बार भारत का नागरिक मान चुका है उसे तब तक खारिज नहीं किया जा सकता जब तक कि वह व्यक्ति स्वयं ही अपनी नागरिकता खारिज करने की घोषणा न करे परन्तु यह भी व्यावहारिकता में देखने में आता है कि हर मतदान के समय मतदाता सूचियों में रद्दोबदल हो जाता है, खास कर बहुत से मतदाताओं के नाम ही मतदाता सूची से गायब हो जाते हैं।संपादकीय :केरल की खूनी सियासतअफगानिस्तान पर दिल्ली संवादपंजाबः नये गठजोड़ व पार्टियांफिटनेस के दम पर मिस यूनिवर्स खिताबभारत-फ्रांस संबंधों में मजबूतीयूपी में विकास परियोजनाएंआधार कार्ड से मतदाता कार्ड को जोड़ने पर यह परेशानी खत्म हो सकती है क्योंकि आधार कार्ड से जुड़े मतदाता कार्ड का रिकार्ड चुनाव आयोग जब चाहे तब देख सकता है। निश्चित रूप से भारत के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन करने का अधिकार भारत की संसद को है और उसने पहले भी कई बार ऐसा किया है परन्तु वर्तमान प्रक्रिया को चुनाव सुधार कहना भी उचित नहीं है, यह मात्र मतदाता सूची का मामला है जिसका चुनाव प्रणाली में फैले आधारभूत भ्रष्टाचार और धन के प्रभाव से कोई लेना-देना नहीं है। चुनाव सुधारों के लिए हमें जमीनी बदलाव करने होंगे जिससे चुनावों में सुचिता आये और राजनैतिक दलों की मानसिकता भी बदले। मगर यह काम चुनाव आयोग नहीं कर सकता क्योंकि उसका संवैधानिक अधिकार स्वतन्त्र व निष्पक्ष और निर्भीक चुनाव कराना है। इसके लिए राजनैतिक दलों को ही पहल करनी होगी। लोकसभा में पारित होने के बाद अब यह विधेयक राज्यसभा में जायेगा और इस सदन का जो माहौल चल रहा है उसे देखते हुए अन्दाजा लगाया जा सकता है कि वहां भी यह आसानी से पारित हो जायेगा |

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