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रवीश कुमार आज दूध क्रांति के जनक मिल्कमैन वर्गीज कुरियन की सौवीं जयंती है. आज संविधान दिवस भी है. आज किसान आंदोलन का एक साल पूरा हुआ है. कानून वापसी के लिए शुरू हुआ यह आंदोलन किसानों को किसान बना गया. बहुत मुमकिन है कि यह पहचान जल्दी ही चुनावी राजनीति में हिन्दू, मुसलमान, अपनी-अपनी जाति अपने-अपने खाप और अलग-अलग संगठनों और उनके नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई में बिखर जाएगी. लेकिन इस एक साल के दौरान किसानों ने उस पहचान को जी भरकर जिया है, जिसे किसान कहते हैं. जो पहचान बेहद रस्मी और उबाऊ हो गई थी कि ये हमारे अन्नदाता हैं, विधाता हैं. किसानों ने देख लिया कि सत्ता उन्हें जरूरत के हिसाब से अन्नदाता कहती है और जब जरूरत होती है, उसी अन्नदाता को आतंकवादी भी कहती है. एक ऐसे दौर में जब आंदोलनों का मजाक उड़ाया जाने लगा था, आपको याद नहीं होगा लेकिन याद दिला दे रहा हूं,