सम्पादकीय

सौ रेटों की एक बात

Gulabi
27 Oct 2021 4:12 AM GMT
सौ रेटों की एक बात
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हालांकि जोखू के पास सेकेंड हैंड साइकिल के सिवाय पर्सनल व्हीकल के नाम पर और कुछ नहीं

हालांकि जोखू के पास सेकेंड हैंड साइकिल के सिवाय पर्सनल व्हीकल के नाम पर और कुछ नहीं। हां! कभी कभार कोई गाड़ी वाला अपनी गाड़ी में बिठा उसे अपने घर काम करने जरूर ले जाता है। उसे मधुमेह है। खानदानी। इसलिए चीनी भी नहीं खाता। ऐसा उसकी जिंदगी में कुछ नहीं जिसके महंगे या सस्ते होने से उसकी जेब पर कोई खास फर्क पड़े। पर बावजूद इस सबके पता नहीं उसे पिछले कुछ दिनों से रात को सोने के बाद सपनों में अजीब-अजीब से बंदे रूपी देवता सपने में दिखाई देते हैं, उसे सांत्वना देते हुए, उसे समझाते हुए। सपनों में बंदों की इसी देखा देखी में उसे कल कभी आगे न पीछे देखे डीजल पेट्रोल देव दिखाई दिए। उस वक्त वह पता नहीं क्यों सपने में पकड़ो! पकड़ो! पेट्रोल! पेट्रोल! चिल्ला रहा था इतनी तेजी से कि जितना वे भी नहीं चिल्ला रहे जिनकी खाली टंकियों वाली गाडि़यों से आजकल पेट्रोल चोरने वाला गिरोह घर-घर सक्रिय है। उसे सपने में लग रहा था ज्यों कोई उसकी साइकिल के टायर के बदले उसमें लगी टंकी से पेट्रोल चुरा रहा हो। उसकी बेहूदी आवाज सुन पुलिस के बदले डीजल पेट्रोल देवता ने दर्शन दिए तो जोखू सपने में ही चौंका। 'क्या बात है जोखू? दिन को तो चौक चौक चिल्लाते ही रहते हो पर अब सोए सोए भी चैन नहीं?' 'आप कौन महाराज!' जोखू ने सपने में ही हाथ टांग सब जोड़ते कहा तो डीजल पेट्रोल देवता अपनी इंट्रो देते बोले, 'मैं इस देश का इकलौता डीजल पेट्रोल देव हूं।' 'डीजल पेट्रोल देवता जी महाराज की जय! महाराज!


कोई मेरी साइकिल से पेट्रोल चुरा रहा था।' 'हे सेकेंड हैंड साइकिलधारी जीव! साइकिल में भी कोई पेट्रोल पड़ता है क्या? साइकिल होने के बाद भी सपने में तू आखिर पेट्रोल! पेट्रोल! क्यों चिल्लाता रहता है? चीनी! चीनी! चिल्लाता रहता है? जबकि न तेरा संबंध पेट्रोल से है न पुश्तैनी मधुमेह की बीमारी के चलते चीनी से। ये क्या मजाक बना रखा है आखिर तूने? इतना तो वे भी पेट्रोल! पेट्रोल! डीजल! डीजल! नहीं चिल्ला रहे जिनके पास अपनी गाडि़यां हैं।' 'प्रभु! तो मेरी पीड़ा छोडि़ए। मुझसे उनकी पेट्रोल डीजलीय पीड़ा नहीं सही जा रही। प्रभु! वह जीव ही क्या जो दूसरों के दुखों में दुखी न हो।' 'तो पैदल चलो न! कौन कहता है फिर भी गाड़ी ही चलाओ। आदमी के टांगें किसलिए लगाई गई हैं? इसलिए नहीं कि दो कदम भी कहीं जाना हो तो स्कूटर को किक मारी और आगे हो लिए। टांगें हैं तो यार दो कदम पैदल भी चल लिया करो ताकि टांगों को भी अपने होने का अहसास हो।


पर अब तुम चिल्लाने वालों को कौन समझाए कि पैदल चलने के कितने आर्थिक और स्वास्थीय लाभ हैं।' 'मैं कुछ समझा नहीं प्रभु!' जोखू ने हाथ जोड़े जिज्ञासावश पूछा तो डीजल पेट्रोल देव उसकी जिज्ञासा शांत करते बोले, 'देखो जोखू! असल में ये देश बौरा गया है। नहीं समझता कि गाड़ी में चलने से ज्यादा लाभ पैदल चलने में है। गाड़ी में चलने से कदम कदम पर चालान होने की परेशानी, न हुआ तो चालान होने के डर की परेशानी। ऊपर से सड़क के गड्ढे! बाप रे बाप! पता ही नहीं चलता कहां से गाड़ी निकालें। जगह जगह जाम! पैदल जहां दस मिनट में पहुंचा जा सकता है, वहां गाड़ी में आधा घंटा लग जाता है। तो हुआ न बीस मिनट का सीधा नुकसान! इसको राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ा जाए तो?' 'जी डीजल पेट्रोल देवा!' जोखू सपने में भी हक्का बक्का। 'और पैदल चलो तो…न कहीं दुर्घटना होने का खतरा न कहीं किसी को ठोकने किसी से ठुकने का डर! चालान का तो डर ही नहीं। मजे ही मजे। गुनगुनाते जहां मन करे चलो पचासियों बीमारियों से मुक्ति पाते। जब बीमार नहीं होंगे तो अस्पताल के डॉक्टर से भी छुट्टी। जितने की दवाएं खाते हो यार! उतना का दूध पिओ। घी खाओ, है कि नहीं? पर यहां समझता ही कौन है? मर गए सबको समझाते समझाते पर लगता है देश में एक भी जैसे समझदार नहीं। इसलिए जोखू! रोने से जो मुक्ति पानी है तो गाड़ी त्यागो! पैदल चलो। स्कूटर त्यागो! पैदल चलो। पेट्रोल त्यागो! पैदल चलो। डीजल त्यागो! पैदल चलो। डीजल पेट्रोल त्याग में वह परमानंद है जो पेट्रोल डीजल चिल्लाने में नहीं', कह जोखू के सपने से डीजल पेट्रोल देव एकाएक अंतरध्यान हुए तो जोखू ने मत पूछो अपने को तब कितना लाइट लाइट फील किया।

अशोक गौतम


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