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- संस्कृति की परिचायक
किसी भी राष्ट्र की उन्नति की परिचायक है वहां की मातृभाषा। भाषा कहने को तो विचारों के आदान-प्रदान का साधन मात्र है, परंतु इससे बहुत से साध्यों को भी साधा जा सकता है। हिंदी हमारे संस्कारों से जुड़ी है, इसलिए यह मात्र भाषा ही नहीं मातृभाषा है। हिंदी हम भारतवासियों की मां के समान है, इसलिए मातृभाषा कहलाती है। गर्व से स्वीकारते हैं कि हम हिंदी भाषी हैं। अनेकता में एकता का स्वर हिंदी के माध्यम से गूंजता है। जीवन में भाषा का सबसे अधिक महत्व होता है। एक भाषा ही हममें संस्कारो का विकास करती है। इसी कारण सभी देशों की अपनी एक मूल भाषा होती है, जिसका सम्मान करना देशवासियों का कत्र्तव्य है। माना कि भाषा भावनाओं को व्यक्त करने का एक साधन मात्र है, लेकिन इस साधन में वह बल है जो दुनिया को बदल सकता है। विभिन्नताओं के बीच एक भाषा ही है जो एकता का आधार बनती है और हम सभी को इस एकता के साधन का सम्मान करना चाहिए। हिंदी हमारी मातृभाषा है जिसे सम्मान देना हमारा कत्र्तव्य है। 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा होने का गौरव प्राप्त हुआ था। उसके बाद सन् 1953 से हर वर्ष 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी भारत में सबसे अधिक 65 फीसदी लोगो द्वारा बोली व समझी जाती है। 30 फीसदी लोग अन्य भाषाओं को समझते व बोलते हैं, जबकि 5 फीसदी लोग अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं। वर्तमान समय में कोरोना महामारी के दौरान हिंदी साहित्य सृजन में कोई रुकावट नहीं आई, बल्कि ऑनलाइन हिंदी साहित्य के रूप में हिंदी ने अपने नए स्वरूप को भी विकसित किया है।