सम्पादकीय

एक कहानी पानी की: निर्मल जल की धार और स्मृतियों में बहता पानी

Gulabi
27 March 2021 2:29 PM GMT
एक कहानी पानी की: निर्मल जल की धार और स्मृतियों में बहता पानी
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पानी: निर्मल जल की धार

निर्मल जल का सौंदर्य बड़ी चीज़ है। जल की ज़रूरत हमें गले की प्यास बुझाने के लिए तो होती ही है, आंखों को तृप्त करने के लिए भी होती है। सागर का जल हम पीते नहीं हैं, पर कब हम उसके किनारे इसलिए नहीं गए कि उसका जल-दृश्य हमें ताजा कर देगा। उसकी उमड़ती, उठती लहरें हों, तट पर पछाड़ खातीं, फेन छोड़ती, लौट जातीं, फिर आती या मंथर गति वाली-सब मोहित करती है। हां, जल और आकाश ही हैं, जो सौंदर्य के अनुपम भंडार हैं।

जरूरी नहीं कि आंखों को तृप्ति देने के लिए हमें एक बड़ी-जल राशि ही चाहिए। गर्मियों के दिनों में जब पेड़-पौधों को पानी से सिंचाई करने के बाद उनपर कोई जल भी छिड़क देता है, तो पत्तों पर बैठी वे जल-बूंदें मोती सरीखी ही तो लगती हैं। फसल की सिंचाई का पानी भी कितना मोहित करता है, और कितने ही सौंदर्य-चित्र बिंब उसमें से निकलते चले जाते हैं: त्रिलोचन जी की ये कविता पंक्तियां, उच्चारित करते ही क्यों हम एक शीतल सौंदर्य से भर उठते है
"दोनों मिलकर दो प्रानी/दे रहे खेत में पानी।"
हां, अपूर्व लगती हैं। जल से जुड़ी हुई छवियां—चिड़िया जब किसी जल-पात्र से अपने को भिगोकर फुर्र करते हुए उड़ती है। जब किसी जल-राशि पर झुकी हुई कोई डाल, हवा से लहरा-लहरा कर जल का स्पर्श करती है, या जब उसके 'ठहरे'हुए रूप का प्रतिबिंब जल पर पड़ता है, या जब पानी पर चंद्रमा उतर आता है—हम कितना प्रफुल्लित हो उठते हैं। 'सद्यस्नाता' के गुण कवियों ने यों ही नहीं गाए हैं।

कालिदास ने लिखा है: "क्षीरोदवेलेव सफेन पुंजा पर्याप्त चन्द्रेव शरतत्रियामा।/नवं नव क्षौम निवासिनी सा भूमो वभौ दर्पणमादधाना।।"

[पार्वती ने, एक तो गौरी, दूसरे नहाकर खौर कर आई, फिर धवल रेशमी वस्त्र पहने और फिर नया (किसी ने जिसमें अपका मुंह न देखा हो ऐसा) दर्पण हाथ में लिया, लगा कि क्षीर समुद्र में ज्वार आ गया है, फेन धवलतर हो गया है, जैसे शरद् की निखरती हुई पूनो में चंद्रमा समा नहीं पा रहा है।] और सुमित्रानंदन पंत की 'नौका विहार'कविता की ये पंक्तियां भी देखिए :

"शांत, स्निग्ध, ज्योत्स्ना उज्ज्वल!/
अपलक अनंत, नीरव भूतल!/
सैकत शय्या पर ढुग्ध धवल, तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल,/
लेटी है श्रांत, कलान्त, निश्चल!/
तापस बाला गंगा निर्मल, शशि मुख से दीपित मृदु करतल,/
लहरे उर पर कोमल कुंतल!"
हां, निर्मल जल-राशि मन में कई तरह की कल्पनाएं जगा सकती है। सौंदर्य-मर्म को पहचानने का, उसे अधिकाधिक पाने का, एक नया उपक्रम कर सकती है। कवियों का ही क्यों, किसी सहृदय का भी तो मन, जल देखकर चंचल हो उठता है। किसी जल-राशि को देखकर कई तरह की छवियां उसके भी मन में उमड़ने-घुमड़ने लगती हैं।

जल-सौंदर्य की छवियां चित्रकला में भी खूब उभरी हैं। इंप्रेसनिस्ट कलाकारों ने आंकी हैं वे। मोने का 'वॉटर लिलीज'चित्र अत्यंत चर्चित हुआ है। यह तो एक ही उदाहरण हुआ हमारे अपने मिनियेचर चित्रों में राधा-कृष्ण के प्रसंग से जब-जब जमुना का रूप वर्णन हुआ है, तो उसे अपूर्व ही तो माना गया है। और संगीत की दुनिया का वाद्य यंत्र-'जल तरंग'धातु (कांस्य) के पात्रों में जल भर कर डंडी की मदद से, जिससे सुमधुर तरंगित ध्वनियां उठाई जाती हैं। वात्स्यायन के कामसूत्र में इसका उल्लेख है। और अष्टछाप के कवियों के यहां भी जिसे स्थान मिला है।

'संगीतसार'के अनुसार जल भरे 22 पात्रों (कटोरों) का जल तरंग ही 'पूर्ण'जलतरंग है। आधुनिक काल में भी यह बिल्कुल खो नहीं गया है। हां, जब जलभरे कटोरों के ऊपर से गुजारी जाती है एक डंडी, तो जो संगीत-लहरियां उठती हैं, वे मुग्धकारी ही तो होती हैं। यों भी जल से जुड़कर कई चीजें सचमुच सौंदर्यमयी हो उठती हैं। सूखी रेत पर खड़ी हुई नाव उतनी सुंदर नहीं लगती, जितनी कि पानी पर बहती हुई नाव।

पानी में जब सूर्य-चंद्र की रश्मियां उतरती हैं तो भी जल-सौंदर्य देखते ही बनता है। और वे मेघ, जो जल का संदेश लिए हुए आसमान में घिर आते हैं, वे भी तो जल-आशय के कारण ही अधिक सुंदर लगते हैं। वे मेघ, जो गरजने के साथ बरसते भी हैं। सबकी अपनी-अपनी जल-संमृतियां हैं। रघुवीर सहाय की कितनी सुंदर कविता है-'पानी के संस्मरण'।

वर्षा में जब पानी की बौछारें आती हैं, तो तन-मन दोनों ही तरंगित होते हैं। और फुहारें, वे कहीं से भी उठ रही हों, भली लगती हैं। उद्यान के बीच या किसी रिहायशी परिसर में भी 'फौव्वारे'हों, यह बात सोची-विचारी जाती है। कई वास्तुशिल्पी तो किसी भवन की रचना के वक़्त, किसी जल कुंड की, छोटे-से ही सही जलाशय की, या पानी की पतली-सी 'धारा' की ,बात भी अवश्य सोचते हैं। और जयपुर का वह जल-महल, पुराने जमाने का, जिसके किनारे कई बार सैर की है, जल-सौंदर्य को सराहते हुए!

हां, अनगिनत हैं जल-स्रोत के, जल के संदर्भ,--एक सौंदर्य की तलाश के ही तो!
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णएक कहानी पानी की: निर्मल जल की धार और स्मृतियों में बहता पानी
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