सम्पादकीय

एक ठोस कूटनीतिक पहल

Gulabi
15 Oct 2020 3:28 AM GMT
एक ठोस कूटनीतिक पहल
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भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला और थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवने एक साथ म्यांमार पहुंचे।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गुजरे हफ्ते ये अहम बात हुई कि भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला और थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवने एक साथ म्यांमार पहुंचे। भारतीय विदेश नीति और कूटनीति में ऐसा अवसर कभी-कभार ही आता है, जब सेना और विदेश सेवा के शीर्ष अधिकारी साथ साथ दिखें। इसलिए यह साफ है कि अचानक भारत ने एक बड़ी कूटनीतिक पहल की है। जाहिर है, दोनों अधिकारियों का कोरोना महामारी के बीच हुआ म्यांमार दौरा यूं ही नहीं था। ये भी गौरतलब है कि इस यात्रा से पहले विदेश सचिव शृंगला सिर्फ बांग्लादेश की यात्रा पर गए थे। उस वक्त भी यात्रा के पीछे खास कूटनीतिक मकसद थे। दो दिन की अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान शृंगला-नरवने आंग सान सू ची, सीनियर जनरल मिन आंग-लाइ और कई मंत्रियों और अधिकारियों से मिले। अनुमान है कि भारत म्यांमार के बीच सैन्य और सामरिक सहयोग को बढ़ाने पर बातचीत हुई।

विशेषज्ञों की राय में सुरक्षा, आतंकवाद और अलगाववाद से लड़ने में भारत के लिहाज से म्यांमार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। भारत की सीमा से सटे इलाकों में 2015 की "हाट पर्सूट" की कार्रवाई हो या अलगाववादियों का प्रत्यर्पण, म्यांमार ने एक भरोसेमंद और मददगार पड़ोसी की भूमिका निभाई है। इसकी एक झलक मई 2020 में भी देखने को मिली, जब म्यांमार के अधिकारियों ने 22 उत्तरपूर्वी अलगाववादियों को भारत को प्रत्यर्पित कर दिया। फिर नगालैंड में एनएससीएन के साथ शांति समझौते में हो रही देरी, अन्य नगा अलगाववादी धड़ों और उल्फा की गतिविधियों के मद्देनजर भी यह यात्रा महत्वपूर्ण मानी गई है। हाल ही में एनएससीएन ने भारत सरकार से कहा है कि बातचीत की जगह थाईलैंड के अलावा किसी और तीसरे देश में हो। चीन के म्यांमार में बढ़ते निवेश को लेकर भी भारत की चिंताएं बढ़ी हैं। खास तौर पर ऊर्जा के क्षेत्र में चीन ने काफी निवेश किया है। दूसरी तरफ म्यांमार भारत की नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट का हिस्सा भले रहा है, लेकिन म्यांमार को अभी भी भारत की कूटनीति में उतना महत्त्व नहीं मिला, जितना उसे मिलना चाहिए। इसका लाभ चीन ने उठाया है। उसने म्यांमार के साथ अपने रिश्ते प्रगाढ़ किए हैं, और उसे अपनी बेल्ट एंड रोड जैसी योजनाओं में हिस्सा बना लिया है। इससे उस क्षेत्र में भारत के लिए चुनौती बढ़ी है। अच्छी बात है कि अब आखिरकार भारत ने हालात सुधारने की पहल की है।



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