सम्पादकीय

एक जोखिम भरा प्रयोग

Gulabi
30 Sep 2021 5:54 AM GMT
एक जोखिम भरा प्रयोग
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जोखिम भरा प्रयोग

मुमकिन है कि कांग्रेस इस निष्कर्ष पर हो कि इस मुद्दे पर भाजपा-संघ जितना ध्रुवीकरण कर सकते थे, वे कर चुके हैं। उससे कांग्रेस और पूरे विपक्ष को जितना नुकसान हो सकता था, वह हो चुका है। इसलिए अब कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा चेहरों का पार्टी में आना फायदे की बात होगी। kanhaiya kumar jignesh mevani


जोखिम दोनों पक्षों ने उठाया है। कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को जिस हाई प्रोफाइल ढंग से अपनी पार्टी में शामिल किया, उसमें एक जोखिम यह है कि भाजपा के प्रचार तंत्र को यह फैलाने का मौका मिलेगा कि कांग्रेस अब 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' की पार्टी हो गई है। हालांकि ऐसा नहीं है कि पहले ऐसा प्रचार नहीं किया गया, लेकिन अब जिस युवा नेता को उस गैंग के चेहरे के रूप में प्रचारित किया गया था, वह औपचारिक रूप से कांग्रेस का नेता बन गया है। मुमकिन है कि कांग्रेस इस निष्कर्ष पर हो कि इस मुद्दे पर भाजपा-संघ जितना ध्रुवीकरण कर सकते थे, वे कर चुके हैं। उससे कांग्रेस और पूरे विपक्ष को जितना नुकसान हो सकता था, वह हो चुका है। इसलिए अब कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा चेहरों का पार्टी में आना फायदे की बात होगी। लाभ यह होगा कि पार्टी को अपने बूते पर उभरे दो प्रतिभाशाली नेता मिलेंगे।

मगर जोखिम यह है कि उससे पार्टी के अंदर के समीकरण और अस्थिर होंगे, जो पहले से भी बेहतर स्थिति में नहीं हैँ। अगर इस अस्थिरता के क्रम में पार्टी का ओल्ड गार्ड पलटवार करने में सफल रहा, तो फिर मुमकिन है कि कन्हैया और जिग्नेश के लिए पार्टी में कुछ करने की जगह ही ना बचे। वहां उनके लिए घुटन का माहौल बन जाए। संकेत हैं कि कांग्रेस में आने के पहले उन दोनों नेताओं ने इस संभावित लाभ-हानि का आकलन किया है। बहरहाल, जोखिम उठाते हुए जो दांव दोनों पक्षों ने लगाया है, वह अगर सही पड़ा, तो उससे कांग्रेस में एक नई ऊर्जा आ सकती है। उससे आगे और भी उन युवाओं के पार्टी में आने का रास्ता खुल सकता है, जो किसी का बेटा-बेटी होने के नाते नहीं, बल्कि अपने स्वाभाविक राजनीतिक स्वभाव के कारण सार्वजनिक जीवन में आए हैं या आना चाहते हैँ। कांग्रेस फिलहाल एक बिखरती हुई पार्टी दिखती है। नेतृत्व का कोई केंद्रीय ढांचा ना उभर पाने का परिणाम है कि पार्टी में जितने लोग आते हैं, उससे ज्यादा उसे छोड़ कर जाते रहे हैं। ये समस्या सिर्फ तभी खत्म हो सकती है, जब राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष बनें और पार्टी में उन्हें काम करने का फ्री हैंड मिले। कन्हैया और जिग्नेश का आना इस दिशा में प्रगति का एक धुंधला संकेत है। इसकी कितनी स्पष्ट सूरत उभरती है, उससे ही ये तय होगा कि ताजा दांव सफल होगा या नहीं।

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