सम्पादकीय

केवल दो-तिहाई मत ही पर्याप्त नहीं होगा

Rani Sahu
1 July 2022 6:05 PM GMT
केवल दो-तिहाई मत ही पर्याप्त नहीं होगा
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मैं सदन को यह याद दिलाना चाहता हूं कि संविधान को संशोधित करने के विषय में अन्य संविधानों में क्या-क्या उपबंध हैं

बी आर आंबेडकर,

मैं सदन को यह याद दिलाना चाहता हूं कि संविधान को संशोधित करने के विषय में अन्य संविधानों में क्या-क्या उपबंध हैं। कनाडा के संविधान में... संशोधन का कोई उपबन्ध नहीं है।... आयरिश संविधान... में एक उपबन्ध है कि दोनों सदन सामान्य बहुमत से आयरिश संविधान के किसी भाग को बदल सकते हैं या उसका निरसन कर सकते हैं, पर शर्त यह है कि सदनों का विनिश्चय जनता के समक्ष पेश हो तथा जनता का बहुमत उसका अनुमोदन कर दे।... स्विट्जरलैंड में संविधान के संशोधन का विधेयक विधान-मंडल द्वारा पारित हो जाने मात्र से लागू नहीं हो सकता।...मैंने ये उद्धरण यह सिद्ध करने के दिए हैं कि मैंने जिन देशों का अध्ययन किया है, उनमें कहीं यह उपबन्ध नहीं है कि संविधान का संशोधन केवल बहुमत से हो सकता है।...
हम अपने संविधान के संशोधन के विषय में क्या करना चाहते हैं? इस संविधान के विविध अनुच्छेदों को तीन श्रेणियों में विभाजित करना चाहते हैं। एक श्रेणी में वे अनुच्छेद आते हैं, जिनका संशोधन संसद सादे बहुमत से कर सकती है। ...राज्यों के संविधानों के विषय में, संविधान के मसौदे में यह रखा गया है कि भाग 2 के राज्यों के संविधान की रचना और उनमें रूपभेद का काम संसद केवल बहुमत से कर सकती है। ...यह कहना कि समस्त संविधान में बहुमत से परिवर्तन करने की शक्ति संसद को होनी चाहिए, बहुत ऊंचा आदेश है, जिसे...स्वीकार नहीं कर सकते। ...हमने क्या किया है? संविधान के अनुच्छेदों को तीन श्रेणियों में विभाजित कर दिया है। पहली श्रेणी में वे अनुच्छेद हैं, जिन्हें संसद केवल बहुमत से संशोधित कर सकती है। दूसरी श्रेणी में वे संशोधन हैं, जिनके लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। यदि भावी संसद किसी ऐसे अनुच्छेद का संशोधन करना चाहे, जो भाग 3 में या अनुच्छेद 304 में उल्लिखित नहीं है, तो...दो-तिहाई बहुमत प्राप्त कर संशोधन कर सकते हैं। ...हमने कुछ अनुच्छेदों को तीसरी श्रेणी में रखा है, जिसमें संशोधन प्रणाली कुछ भिन्न है या दोहरी है। उसके लिए दो-तिहाई बहुमत के अतिरिक्त राज्यों द्वारा अनुमोदन आवश्यक है।...
हमने विधायी प्राधिकार को विभाजित किया है; हमने कार्यपालिका प्राधिकार को भी विभाजित कर दिया है तथा हमने प्रशासन-प्राधिकार को भी विभाजित कर दिया है। ...संविधान के इन अनुच्छेदों को भी, जो कि प्रांतों की प्रशासनीय, विधायी तथा वित्तीय और कार्यपालिका संबंधी शक्तियों आदि से सम्बद्ध है, दो-तिहाई बहुमत से बदलने की शक्ति केंद्र की संसद को दे दी जाए और प्रांतों या राज्यों को उसमें बोलने का हक न हो, यह कहना तो मेरे विचार में संविधान के मूलाधिकारों को ही समाप्त करना है।... कोई संदेह नहीं हो सकता कि उच्चतम न्यायालय ऐसा न्यायालय है, जिसमें केंद्र और प्रांतों को भी अथवा इस देश के प्रत्येक नागरिक को दिलचस्पी है, अतएव यह भी ऐसा मामला है, जिसे केवल दो-तिहाई मत से संशोधित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।...
संविधान को, उसके प्रत्येक अनुच्छेद को केवल बहुमत से बदलना संभव होना चाहिए... इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूं। संविधान एक आधारभूत लेख्य होता है। इसी लेख्य द्वारा राज्यों के तीनों अंगों कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा विधानमंडल की शक्तियों तथा स्थिति की परिभाषा की जाती है...। संविधान का उद्देश्य केवल राज्य के अंगों का निर्माण ही नहीं है, वरन् उनके प्राधिकार को सीमित करना भी है, क्योंकि यदि उन अंगों के प्राधिकार पर कोई सीमा नहीं लगाई जाएगी, तो पूर्ण अत्याचार और दमन हो सकेगा। विधान-मंडल को कोई भी विधि बनाने की स्वतन्त्रता होगी; कार्यपालिका को कोई भी विनिश्चय करने की स्वतन्त्रता होगी, तथा उच्चतम न्यायालय को विधि का कोई भी निर्वचन करने की स्वतन्त्रता होगी। यह बात मेरी समझ में नहीं आती कि संविधान का संशोधन केवल बहुमत से करने का अधिकार दिया जाए।
...आधुनिक संविधान के दो ही आधार हो सकते हैं। एक आधार यह है कि संसदीय शासन पद्धति हो। दूसरा आधार यह है कि निरंकुश या तानाशाही शासन पद्धति हो।...हमारा संविधान तानाशाही पर आधारित न हो तथा ऐसा संविधान हो, जिसमें संसदीय लोकतंत्र हो, जहां सरकार की सदा परीक्षा होती रहे, अर्थात वह जनता के प्रति उतरदायी रहे, न्यायपालिका के प्रति उत्तरदायी रहे।
सोर्स- Hindustan Opinion Column


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