सम्पादकीय

आने वाले चुनाव दलों के लिए चिंतन का विषय

Rani Sahu
9 Nov 2021 6:59 PM GMT
आने वाले चुनाव दलों के लिए चिंतन का विषय
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हिमाचल में हाल ही में हुए उपचुनावों के नतीजों से एक बात तो तय हो गई है

हिमाचल में हाल ही में हुए उपचुनावों के नतीजों से एक बात तो तय हो गई है कि आने वाले 2022 के चुनाव प्रदेश में भाजपा के लिए इतने आसान नहीं होंगे। हिमाचल और राजस्थान केवल दो राज्य हैं जहां हर पांच साल के बाद सरकार बदलती है। लोगों को उम्मीद थी कि 2022 में शायद भारतीय जनता पार्टी फिर से हिमाचल में सरकार बना लेगी, क्योंकि प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बहुत ईमानदार और कर्मठ माने जाते हैं। लेकिन उपचुनावों के नतीजों ने इस उम्मीद पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं। उपचुनाव के नतीजे आने वाले बड़े चुनाव का रुझान किस तरफ होगा, यह नहीं दर्शाते, लेकिन ऊंट किस करवट बैठ सकता है, इसकी तरफ हल्का सा इशारा ज़रूर करते हैं। हिमाचल में लगभग अगले साल इन्हीं दिनों चुनाव होंगे, या हो सकता है इससे पहले भी हो जाएं। उपचुनाव में विधानसभा की तीन और लोकसभा की एक सीट पर जिस तरह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, वह उसके लिए चिंता और चिंतन का विषय हो गया है। उधर कांग्रेस पार्टी ने एक शीर्ष नेतृत्व न होने के बावजूद आसान जीत हासिल की। राजा वीरभद्र सिंह के स्वर्गवास के बाद पार्टी की दिशा और दशा को ठीक रखना शायद मुश्किल था, लेकिन उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह और बेटे विक्रमादित्य सिंह ने प्रदेश के दूसरे कांग्रेसी नेताओं के साथ मिलकर न केवल सहानुभूति के वोट अर्जित किए, बल्कि मतदाताओं का विश्वास भी हासिल किया। मंडी लोकसभा क्षेत्र में 12 लाख के करीब मतदाता हैं और 17 विधानसभा क्षेत्र हैं। लोगों का मानना है कि कुल्लू, मनाली तथा लाहुल-स्पीति से भारतीय जनता पार्टी को कम वोट मिले, जबकि इस क्षेत्र के विधायक तस्वीरों में मुख्यमंत्री के आसपास ही देखे जाते हैं। कांग्रेस ने इन इलाकों में अच्छी खासी बढ़त हासिल की। केंद्र की राजनीति में भले ही हिमाचल अहम भूमिका अदा न करता हो, लेकिन राजनीतिक सजगता के लिए खूब जाना जाता है। हिमाचल में विधानसभा की मात्र 68 सीटें हैं, जबकि लोकसभा की केवल 4 सीटें। हिमाचल के अगर चुनाव इतिहास को देखा जाए तो प्रदेश में पहली बार चुनाव 1952 में हुए थे। तब से लेकर अब तक 13वीं विधानसभा का कार्यकाल चल रहा है। 13वीं विधानसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने फिर से कांग्रेस को हरा कर प्रदेश में सरकार बनाई, लेकिन इस बार प्रदेश में सिराज (सेराज) से जीत कर आए भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता जयराम ठाकुर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, जो भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के बहुत करीबी माने जाते हैं।

राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता, लेकिन उम्मीदवारों का चयन करने से पहले उनकी लोकप्रियता या जमीनी पकड़ और निष्ठा का पता लगाना ज़रूरी होता है। विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के लिए यह काम इतना मुश्किल नहीं है। फतेहपुर, अर्की तथा जुब्बल-कोटखाई में यह सब देखने को मिला, जबकि कांग्रेस पार्टी ने बहुत सूझबूझ के साथ उम्मीदवार मैदान में उतारे और जीतोड़ मेहनत कर उन्हें जीत तक ले गए। प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री, जिनकी छवि बहुत साफ है, उन्होंने भी पूरा समय दिया, लेकिन शायद उन्हें अपने दूसरे वरिष्ठ नेताओं का भी सहयोग लेना चाहिए था। उनके चापलूस सहयोगी शायद उनका ज्यादा साथ नहीं दे पाए। लोकसभा उपचुनाव की बात करें तो प्रतिभा सिंह ने और उनके बेटे विक्रमादित्य ने कांग्रेस के दूसरे नेताओं के साथ मिलकर न केवल लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी से छीन ली, बल्कि विधानसभा की तीन सीटों को भी छीन लिया। कांग्रेस पार्टी में हिमाचल प्रदेश में राजा वीरभद्र सिंह के स्वर्गवास के बाद, शीर्ष नेतृत्व में लगा था एक खालीपन आ गया है। लेकिन प्रदेश के बाकी नेताओं ने जिस तरह से इस चुनाव में ईमानदारी और लग्न से काम किया, उसके परिणाम उपचुनावों के नतीजों में सामने आ गए। एक बात जो गौर करने योग्य है, पिछले चुनावों में युवा नेता विक्रमादित्य सिंह को बहुत हल्के में लिया जा रहा था, लेकिन उपचुनाव में उनके भाषण और जीत के बाद मंडी में की गई प्रेस वार्ता में जितने संयम और सूझबूझ से उन्होंने प्रश्नों के उत्तर दिए, उससे एक बात जाहिर हो गई कि उनमें पिछले एक साल में परिपक्वता आ गई है। अगर वह इसी लग्न से आगे बढ़ते रहे तो आने वाले समय में लोकप्रिय हो सकते हैं, अपने पिता की तरह।
वर्तमान सरकार पूरे देश की तरह कोविड-19 से जूझी है और विजयी भी रही है, टीकाकरण में भी सबसे आगे है। देश-प्रदेश के लिए यह दौर बहुत कठिनता से परिपूर्ण था। आने वाला समय इतना आसान नहीं है, आर्थिक दृष्टि से भी। इस उपचुनाव से दो-तीन बातें सामने आई हैं जो सभी राजनीतिक दलों को शायद समझने की ज़रूरत है। आपसी कलह से किसी का फायदा नहीं होता। प्रदेश की जनता आप को चुनती है ताकि उनके अधिकारों, सुख और अच्छे जीवन यापन के लिए निरंतर प्रयास किए जाएं। जहां आप से ज़रा सी चूक हुई, मतदाता यह ठान लेगा कि अगली बार आपको बदलना है। मैंने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान तीनों राज्यों (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल) में जाकर जमीनी स्तर पर मतदाताओं से बात की थी। मतदाता को अपनी सुरक्षा, बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा, पीने का शुद्ध जल, रोजगार और समय-समय पर सरकार द्वारा लागू योजनाओं को सही ढंग से लागू किया जाना ही चाहिए, उसके सिवाय ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। हां, जो वादे आप पूरे न कर सकें, उन्हें कभी न करें। मतदाता सब याद रखता है। मतदाताओं के सुख-दुःख में शामिल होना एक अच्छे नेता के गुणों में शामिल होना चाहिए। तत्काल स्वार्थ की भावना से पार्टी छोड़ने या शामिल होने वाले नेताओं पर थोड़ा संयम और सूझबूझ से काम लेना चाहिए। पार्टी की साफ-सुथरी छवि के लिए यह जरूरी होता है। हिमाचल में उपचुनाव के नतीजों से एक चीज साफ हो गई कि लोगों के सार्वजनिक हितों का ख्याल रखने और विकास की गति को बरकरार रखने वाला ही अगली विधानसभा में चुन कर आएगा, पार्टी कोई भी हो।
रमेश पठानिया
स्वतंत्र लेखक
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