सम्पादकीय

A Journey of Hope and Belief: चिकित्सक से केंद्रीय मंत्री तक की यात्रा, डा. सीपी ठाकुर का राजनीतिक सफर

Triveni
6 Jun 2021 5:04 AM GMT
A Journey of Hope and Belief: चिकित्सक से केंद्रीय मंत्री तक की यात्रा, डा. सीपी ठाकुर का राजनीतिक सफर
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ठीक 47 साल पहले आज के दिन देशभर में उस संपूर्ण क्रांति की ही चर्चा थी, जिससे उपजे विमर्श ने देश की राजनीति को एक नई दिशा प्रदान की। पांच जून, 1974 को जब जेपी यानी जयप्रकाश नारायण ने पटना में संपूर्ण क्रांति की शुरुआत की थी, उस समय डा. सीपी ठाकुर पटना में ही थे,

मनीष पांडेय | ठीक 47 साल पहले आज के दिन देशभर में उस संपूर्ण क्रांति की ही चर्चा थी, जिससे उपजे विमर्श ने देश की राजनीति को एक नई दिशा प्रदान की। पांच जून, 1974 को जब जेपी यानी जयप्रकाश नारायण ने पटना में संपूर्ण क्रांति की शुरुआत की थी, उस समय डा. सीपी ठाकुर पटना में ही थे, लिहाजा उन्हें इसे काफी नजदीक से देखने-समझने का मौका मिला। केंद्र की वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे डा. सीपी ठाकुर आज भले ही सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन एक सामान्य ग्रामीण परिवार में पैदा होने के बाद से चिकित्सक से राजनेता बनने के दौरान उनके जीवन में अनेक ऐसे मोड़ आए, जिन्हें इस किताब के जरिए जानना बेहद रोचक है। लंदन से उच्च चिकित्सा शिक्षा हासिल करने के बाद वर्ष 1974 तक डा. सीपी ठाकुर पटना में लोकप्रिय चिकित्सक के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे और उस समय के वरिष्ठ राजनेता जेपी के निजी चिकित्सक की भूमिका भी उन्होंने कई वर्षों तक निभाई। कालाजार के क्षेत्र में उनके अग्रणी शोध ने उन्हें दुनियाभर में पहचान दिलाई। चिकित्सा सेवा में उनके व्यापक योगदान के कारण वर्ष 1982 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।

यह जानना बेहद दिलचस्प है कि जेपी के माध्यम से उस दौर के तमाम समाजवादी नेताओं से अच्छे संबंध होने के बावजूद सक्रिय राजनीति में शामिल होने के लिए उन्होंने कांग्रेस को ही क्यों चुना? यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने कांग्रेस को नहीं चुना, बल्कि कांग्रेस ने उनको चुना। दरअसल, वर्ष 1984 में लोकसभा चुनाव से कुछ समय पूर्व राजीव गांधी ने उन्हें पटना से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए फोन किया था। वे यह चुनाव जीतने में भी कामयाब रहे।
इंदिरा और राजीव गांधी से उनके बेहतर संबंध थे। इंदिरा गांधी जब उनसे कोई फीडबैक लेतीं तो बिना लाग-लपेट के वे अपनी समझ से पैदा सच्चाई बयां करने से चूकते नहीं थे। वर्ष 1977 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पटना एयरपोर्ट पर इसी फीडबैक के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी से स्पष्ट कहा था, 'मेरे पास असम से अफगानिस्तान तक के मरीज आते हैं। बिहार के तो हर कोने से आते हैं। मेरा आकलन है कि बिहार में आपकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिलेगी।'
22 अध्यायों में लिखी गई इस पुस्तक में डा. सीपी ठाकुर ने अपने आरंभिक ग्रामीण रहन-सहन समेत अपनी शिक्षा व पेशे का तो समग्रता में जिक्र किया ही है, अपने राजनीतिक जीवन के उन तमाम तथ्यों को भी उकेरा है, जिनके बारे में शायद लोगों को बहुत अधिक जानकारी नहीं है। पुस्तक से यह समझ पैदा होती है कि सक्रिय राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने कैसे की। राष्ट्रवाद के प्रति बढ़ते झुकाव के बीच कैसे वे मोहन भागवत की वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक विचार प्रक्रिया से प्रभावित हुए। बाद में वे भारतीय जनता पार्टी में न केवल शामिल हुए, बल्कि सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का एक लंबा सफर तय किया।
बिहार में लालू यादव के कार्यकाल को जंगलराज के तौर पर जाना जाता है, जिस दौरान चुनावों में धांधली को सामान्य घटना के रूप में समझा जाने लगा था। चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी व कदाचार रहित बनाने के लिए तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को भले इसका श्रेय दिया जाता है, लेकिन इस कार्य में डा. सीपी ठाकुर की भी उल्लेखनीय भूमिका रही है, जिसे पुस्तक के माध्यम से बेहतर तरीके से जाना जा सकता है। बतौर केंद्रीय मंत्री दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मेडिकल कालेज की शुरुआत भी इनकी एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर है। इस पुस्तक में ऐसी अनेक घटनाओं का जिक्र है, जिनके माध्यम से उनके समग्र व्यक्तित्व का सहज आकलन किया जा सकता है।
पुस्तक : आशा और विश्वास : एक यात्रा
लेखक : डा. सीपी ठाकुर
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य : 400 रुपये


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