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- कृषि कानून के विरोध...
कृषि कानून विरोधी आंदोलन के सौ दिन बाद भी यदि नतीजा ढाक के तीन पात वाला है तो किसान नेताओं के अड़ियलपन के कारण। इन नेताओं की ओर से अपने आंदोलन की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए चक्का जाम करने जैसे जो आयोजन किए जा रहे हैं, उनसे इसलिए कुछ नहीं हासिल होने वाला, क्योंकि उनका मकसद आम जनता को तंग करना और सरकार पर बेजा दबाव बनाना है। किसान नेताओं के रवैये से यह भी साफ है कि उनकी दिलचस्पी समस्या का समाधान खोजने में नहीं, बल्कि सरकार को नीचा दिखाने में है। इसी कारण वे इस मांग पर अड़े हुए हैं कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं। सरकार धरना-प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों से लगातार यह कह रही है कि वे इन कानूनों में खामियां बताएं तो वह उन्हें दूर करे, लेकिन उनकी यही रट है कि तीनों कानून खत्म किए जाएं। किसान नेता ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, जैसे संसद और सुप्रीम कोर्ट वाले अधिकार उन्हें हासिल हो गए हैं। आखिर तीनों कृषि कानूनों की जगह कोई तो कानून बनेंगे ही। क्या यह उचित नहीं कि कानून रद करने की जिद पकड़ने के बजाय मौजूदा कानूनों में संशोधन-परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ा जाए?