- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- राम मंदिर को लेकर...
प्रणय कुमार: राम मात्र एक नाम भर नहीं, बल्कि वह जन-जन के कंठहार हैं, मन-प्राण हैं, जीवन-आधार हैं। उनसे भारत अर्थ पाता है। वह भारत के पर्याय और प्रतिरूप हैं और भारत उनका। उनके नाम-स्मरण एवं महिमा-गायन में कोटि-कोटि जनों को जीवन की सार्थकता का बोध होता है। भारत के कोटि-कोटि जन उनके दृष्टिकोण से जीवन के विभिन्न संदर्भों-पहलुओं का आकलन-विश्लेषण करते हैं। भारत से राम और राम से भारत को कभी विलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राम भारत की आत्मा हैं। भला आत्मा और शरीर को कभी विलग किया जा सकता है। एक के अस्तित्व में ही दूसरे का अस्तित्व है। राम र्नििवकल्प हैं। उनका कोई विकल्प नहीं। राम के सुख में भारत के जन-जन का सुख आश्रय पाता है। उनके दुख में भारत का कोटि-कोटि जन आंसुओं के सागर में डूबने लगता है। कितना अद्भुत है उनका जीवन चरित, जिसे बार-बार सुनकर भी और सुनने की चाह बची रहती है। इतना ही नहीं, उस चरित को पर्दे पर अभिनीत करने वाले, लिखने वाले, उनकी कथा बांचने वाले हमारी श्रद्धा के केंद्र बन जाते हैं। उस महानायक से जुड़ते ही सर्वसाधारण के बीच से उठा-उभरा आम जन भी नायक सा लगने लगता है। उनके सुख-दुख, हार-जीत, मान-अपमान में हमें अपने सुख-दुख, हार-जीत, मान-अपमान की अनुभूति होती है। उस महामानव के प्रति यही हमारे चित्त की अवस्था है।