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राजीव सचान। कुछ घटनाओं की जानबूझकर अनदेखी करना और कुछ को जरूरत से ज्यादा तूल देना एक विधा है और इसमें वे लोग पारंगत हो चुके हैं, जो कट्टरता-सांप्रदायिकता से लड़ने का दावा करते हैं। इस विधा का ताजा उदाहरण है वह घटना, जिसमें क्रूर और धर्माध शासक औरंगजेब के खिलाफ लिखी गई एक फेसबुक पोस्ट से कुपित लोगों ने उस्मानाबाद, महाराष्ट्र में सड़क पर उतरकर उपद्रव किया। इस दौरान वाहनों में तोड़फोड़ करने के साथ पुलिस पर हमला किया गया। इस हमले में चार पुलिस वाले घायल हुए, लेकिन किसी ने और खासकर खुद के सीने पर सेक्युलर-लिबरल होने का तमगा लगाने और सांप्रदायिकता से लड़ने का दम भरने वालों ने मौन धारण करना ही बेहतर समझा। औरंगजेब प्रेमी पहली बार सामने नहीं आए। उन्होंने तब भी अपनी बेचैनी जाहिर की थी, जब दिल्ली में इस मुगल शासक के नाम वाली सड़क का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के नाम पर किया गया था। ऐसे लोगों का साथ सेक्युलर-लिबरल समूह ने यह कहकर दिया था कि इतिहास से छेड़छाड़ ठीक नहीं। यह सड़क उस जगह से ज्यादा दूर नहीं, जहां औरंगजेब के आदेश पर सिख गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया था। बाद में यहीं शीशगंज गुरुद्वारा बना।