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- एक दूरगामी पहल
नवभारत टाइम्स: जापान की राजधानी तोक्यो में क्वाड शिखर बैठक शुरू होने से पहले सोमवार को 13 देशों के बीच हुए कारोबारी समझौते को एक अच्छी शुरुआत के रूप में देखा जाना चाहिए। आईपीईएफ (इंडो पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क) के रूप में शुरू की गई इस पहल को इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता पर अंकुश लगाने की एक कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है। हालांकि संयुक्त वक्तव्य के बयान को जितना ढीला ढाला रखा गया है, उससे साफ है कि अभी इस पहल में शामिल देशों को आपसी सहमति सुदृढ़ करने की दिशा में काफी कुछ करना है। संयुक्त बयान में यह भी नहीं माना गया है कि व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू हुई है। इसे 'भविष्य की समझौता वार्ताओं की दिशा में सामूहिक चर्चा की शुरुआत' के रूप में पेश किया गया है। इस हिचक के कारणों का संकेत वाइट हाउस की ओर से जारी की गई फैक्टशीट में मिलता है जिसमें साफ-साफ बताया गया है कि अमेरिका इस पहल को कौन सी दिशा देना चाहता है। इसमें डिजिटल इकॉनमी के संदर्भ में क्रॉस बोर्डर डेटा फ्लो और डेटा लोकलाइजेशन से जुड़े हाई स्टैंडर्ड्स तथा लेबर और एन्वायरनमेंट संबंधी हाई स्टैंडर्ड की बात की गई है। अन्य देशों की बात तो दूर रही, भारत की भी इस संबंध में बड़ी स्पष्ट राय काफी पहले से रही है। वह किसी भी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट में इस तरह के स्टैंडर्ड के प्रावधान जोड़ने के सख्त खिलाफ रहा है। साफ है कि इस समझौते के लिए सहमति बनाने की राह आसान नहीं रहने वाली।
यही वजह है और यह ठीक भी है कि फिलहाल संयुक्त बयान की भाषा को इतना लचीला रखा गया है कि हर सदस्य देश इसकी अपने अनुरूप व्याख्या कर सके और इसमें शामिल होने के इच्छुक अन्य देशों के लिए भी आगे आना ज्यादा मुश्किल न हो। इस बिंदु पर फ्री ट्रेड के खिलाफ पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के आक्रामक रुख को ध्यान में रखें तो यह बात भी समझी जा सकती है कि बाइडेन प्रशासन के लिए उससे उपजे घरेलू राजनीतिक दबाव से मुक्त होना आसान नहीं होगा। जाहिर है आईपीईएफ से मुक्त व्यापार समझौते की ओर बढने या साझा बाजार का रास्ता साफ करने की तत्काल उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन इसके बावजूद यह याद रखना उपयोगी होगा कि मौजूदा माहौल में आईपीईएफ जिस रूप में भी है, इसकी अहमियत कम नहीं है। इस क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के बीच आर्थिक रिश्ते को बढ़ावा देने का लक्ष्य अपने आप में महत्वपूर्ण है और बहुत कुछ कहता है। यह अकारण नहीं है कि चीन बार-बार और अलग-अलग तरीकों से इस पहल को अपने खिलाफ गोलबंदी बता रहा है। और, जहां तक भारत की बात है तो चीन की अगुआई वाले रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल होने से इनकार करने के बाद आईपीईएफ उसके लिए स्वाभाविक विकल्प है और इसका हिस्सा बनकर इसे आगे ले जाने की कोशिश करना स्वाभाविक फैसला।