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जिसका भय था आखिर वही हो गया। देखते ही देखते ओमिक्रोन ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया
सृजन पाल सिंह। जिसका भय था आखिर वही हो गया। देखते ही देखते ओमिक्रोन ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। अमेरिका जैसे विकसित देश में ओमिक्रोन के रोजाना 10 लाख से भी ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं। महज दो महीने पहले दक्षिण अफ्रीका में जिस वैरिएंट का पता चला था, उसने होश उड़ा देने वाली रफ्तार से पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में कस लिया है। यह तब हुआ है जब यात्रा पर पाबंदियों से लेकर टीकाकरण और कर्फ्यू लगाने जैसे सारे प्रयास किए गए। यह दिखाता है कि कोविड-19 के जनक कोरोना जितना फुर्तीला और खतरनाक वायरस मानवता के समक्ष इससे पहले कभी नहीं आया था।
आशंका को सही साबित करते हुए ओमिक्रोन ने भारत को भी अपने शिकंजे में ले लिया है। रुझान यही बता रहे हैं कि अधिक से अधिक दो सप्ताह में यह अपने चरम पर पहुंच जाएगा। अच्छी खबर यह है कि ओमिक्रोन डेल्टा जितना घातक नहीं है और बुरी खबर यह है कि इसके फैलने की रफ्तार उससे चार गुना ज्यादा है। तो गंभीर रूप से बीमार पड़ने वालों की संख्या जहां कम होगी, वहीं कम समय में बीमार पड़ने वालों की तादाद खतरनाक ढंग से बहुत ज्यादा होगी। पिछले साल अप्रैल में दूसरी लहर के रूप में आए सबसे बड़े संकट से हमने काफी कुछ सीखा है और अब अधिकांश अस्पतालों में आक्सीजन की आपूर्ति बेहतर है। साथ ही हम पक्के तौर पर जान चुके हैं कि रेमडेसिविर और प्लाज्मा काम नहीं आते तो उसके पीछे भागने की जरूरत नहीं है। इस वायरस की नई-नई सच्चाई और अपने तजुर्बे से हमें अब यही करना है कि आने वाले संकट का मुकाबला करने के लिए हम अपनी तैयारी पर नए सिरे से गौर करें।
आज जिन देशों में ओमिक्रोन के मामले अपने चरम पर हैं, वहां इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि एक बड़ी आबादी बेहद कम समय में संक्रमण की चपेट में आ रही है। संक्रमितों को एक से दो हफ्ते तक क्वारंटाइन में रहना पड़ता है। इसका अर्थ है कि कामकाजी आबादी का एक बड़ा हिस्सा अचानक बीमार और अनुपलब्ध हो जाता है। इसका मतलब यह भी है कि ओमिक्रोन में उछाल से अचानक हमें दो से तीन हफ्ते तक डाक्टरों, नर्सो, एंबुलेंस ड्राइवरों, पुलिसकर्मियों, ट्रक ड्राइवरों, स्टोर प्रबंधकों, फैक्ट्री मजदूरों और सफाईकर्मियों की संख्या में भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है। इससे भोजन और दवाई जैसी अनिवार्य वस्तुओं के साथ ही स्वास्थ्य सुविधा जैसी अनिवार्य सेवाओं को निरंतर रूप से बनाए रखने पर जबरदस्त दबाव पड़ेगा। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में यह चुनौती और विकराल हो सकती है। यह अवधि ज्यादा लंबी नहीं होगी, लेकिन इससे निपटने की तैयारी नहीं की गई तो लोगों के लिए यह कष्टदायी हो सकती है। स्पष्ट है कि अगर हम अभी से इससे युद्धस्तर पर निपटने के लिए जुट जाएं तो उसके कहर से बचा जा सकता है।
सबसे पहले तो हमें जमाखोरी पर लगाम लगानी पड़ेगी। हमने देखा है कि पिछली बार दहशत में आए लोगों के साथ ही कालाबाजारी करने वाले अपराधियों ने आवश्यक वस्तुओं की कैसे जमाखोरी कर ली थी। प्रत्येक जिले से तुरंत यह कहा जाना चाहिए कि वे जमाखोरी रोकने के लिए अपनी-अपनी आपातकालीन योजना तैयार कर लें और संक्रमण के चरम पर जाने से पहले ही अपने भंडार में आवश्यक वस्तुएं पर्याप्त मात्र में जुटा लें। इसके लिए प्राथमिकता वाले खाद्य पदार्थो, चिकित्सा के साधनों और ऐसी सेवाओं की पहचान करनी होगी जिन्हें पहुंचाने के बंदोबस्त तत्काल किए जा सकें। जिला स्तर की इन योजनाओं को कलेक्टरों के जिम्मे सौंप देना चाहिए और अगले एक महीने तक उनकी जिम्मेदारी सिर्फ इन्हें लागू कराने की होनी चाहिए। राज्य स्तर पर अतिरिक्त संसाधनों और कर्मचारियों को उन जिलों के लिए तैयार रखना चाहिए, जहां हालात सबसे खराब हों।
इस सबके अलावा छोटे शहरों में हमें स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ बनाना होगा। ओमिक्रोन कम घातक हो सकता है, लेकिन अस्पतालों पर यह जबरदस्त दबाव डालने वाला है। विशेष रूप से जब पहले से ही गंभीर रोगों से ग्रस्त लोग और बुजुर्ग इसका शिकार बन जाएंगे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि केवल उन्हें ही बेड मिलें, जिन्हें उनकी जरूरत हो। साथ ही बेड दिए जाने के कुछ पैमाने तय किए जाएं। उसी मानदंड के आधार पर बेड आवंटित किए जाएं। उसमें कोई सिफारिश नहीं होनी चाहिए। छोटे शहरों में रह रहे लोगों को इलाज के लिए बेहद जरूरी साधन अपने शहर में ही मिल जाएं और इलाज के लिए उन्हें बड़े शहरों की ओर भागने की जरूरत न पड़े। इसके लिए हमें अभी ही छोटे शहरों के अस्पतालों के लिए मेडिकल सप्लाई और आक्सीजन की जरूरत का हिसाब-किताब लगा लेना चाहिए।
ओमिक्रोन के खिलाफ जीत का मंत्र यह है कि इसका चरम कम समय तक रहे। यानी हमें हरसंभव तरीके से इसे फैलने से रोकना होगा। हमें फरवरी के अंत तक सभी परीक्षाओं को टालने की तैयारी कर लेनी चाहिए। रैलियों, समारोहों और भीड़भाड़ से भी बेहद सावधान रहने की जरूरत होगी। चौथी बात यह कि हमें उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना होगा। महामारी जाते-जाते तेज रफ्तार के साथ ही कम घातक हो जाती है। ओमिक्रोन के मामले में हम ऐसा ही देख रहे हैं। ऐसी पूरी संभावना है कि कोविड-19 का अंत बहुत करीब है, पर उससे पहले हमें इस लहर से जीतना होगा। इतिहास साक्षी है कि सौ साल पहले जब स्पेनिश फ्लू ने पूरे विश्व को अपने शिकंजे में लेकर करीब 10 करोड़ लोगों को मार डाला था, तब उसकी भी तीन बड़ी लहरें आई थीं। उसकी तीसरी लहर इस ओमिक्रोन जैसी ही थी। यह जानकर हमें थोड़ा सकारात्मक हो जाना चाहिए और इस तीसरे युद्ध को इस मिशन के साथ लड़ना चाहिए कि कोविड-19 का हम हमेशा के लिए सफाया कर देंगे।
पिछले साल डेल्टा वैरिएंट के कारण आई दूसरी लहर में हमने भारी तबाही ङोली। हालांकि डेल्टा वैरिएंट बिना किसी चेतावनी के ही आया और उसने हम पर हमला बोल दिया था। इस तीसरी लहर ने सभी चेतावनी दी हैं और हमें तैयारी का समय भी दिया है। इस मौके का इस्तेमाल करना और लोगों की तकलीफ को कम करना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण अभी कुछ और नहीं हो सकता।
(लेखक कलाम सेंटर के सीईओ हैं)
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