सम्पादकीय

'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' के एक दशक

Gulabi Jagat
1 Feb 2025 2:38 PM GMT
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के एक दशक
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Vijay Garg: बेटियां केवल परिवार का हिस्सा नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास का आधार हैं। फिर भी लंबे समय से बेटियों के साथ भेदभाव और असमानता की समस्याएं हमारे समाज में व्याप्त रहीं । इनको समाप्त करने और बेटियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 22 जनवरी, 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हरियाणा के पानीपत से 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की गई। आज इस पहल को एक दशक पूरा हो गया है। भारत में घटते लिंगानुपात, कन्या भ्रूण हत्या और बालिकाओं की शिक्षा पर ध्यान न देने जैसी समस्याओं ने सरकार को इस तरह के अभियान को शुरू करने की प्रेरणा दी। इसके मुख्य उद्देश्य बाल लिंगानुपात में सुधार करना, बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देना, महिलाओं के प्रति समाज में सकारात्मक सोच को प्रोत्साहित करना, भ्रूण हत्या पर रोक लगाना है। एक सशक्त समाज का निर्माण करने के लिए बालिकाओं को आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाना भी इसका लक्ष्य है।
आज कई जिलों में बाल लिंगानुपात में सुधार देखा गया है। हरियाणा, जो पहले बेटियों के लिए सबसे खराब स्थिति वाले राज्यों में था, वहां अब सुधार हो रहा है। लड़कियों के स्कूल नामांकन में वृद्धि हुई है। खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में जहां लड़कियों को स्कूल भेजने की प्रवृत्ति कम थी। इस अभियान के तहत समाज में बेटियों के महत्व को लेकर जागरूकता बढ़ी है। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' नारा हर गांव, शहर और राज्य तक पहुंचा है। भ्रूण लिंग जांच और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान ने महिलाओं को सशक्त बनाकर समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ावा दिया है। चाहे वह खेल हो, विज्ञान, प्रशासन, या राजनीति हो, हर क्षेत्र में बेटियां आगे आ रही हैं। उनकी उपस्थिति निरंतर बढ़ी है। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान ने कई सकारात्मक बदलाव किए हैं, पर इसे पूरी तरह सफल बनाने के लिए और प्रयास की आवश्यकता है। जैसे जमीनी स्तर पर बदलाव की गति धीमी है, क्योंकि कई क्षेत्रों में आज भी पुरानी रूढ़ियां और पितृसत्तात्मक सोच हावी है। अभी भी शिक्षा में असमानता देखने को मिल रही है। हालांकि बेटियों का स्कूल नामांकन बढ़ा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी भी शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। समाज में मानसिकता के परिवर्तन की बहुत आवश्यकता है। इसलिए सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से लड़कियों को बोझ मानने की मानसिकता को पूरी तरह खत्म करना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना जरूरी है। बेटियों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की गारंटी के लिए एक मजबूत प्रणाली विकसित करनी होगी। जब बेटियां सशक्त होंगी, तभी समाज और देश का वास्तविक विकास संभव होगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल ‌ शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कोर चंद मलोट पंजाब
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