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एक किताब और सियासत
हिन्दुत्व शब्द एक बार फिर विवाद के घेरे में है। कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने अपनी नई किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या' में हिंदुत्व की तुलना आतंकी संगठन आईएसआईएस और बोको हराम से की है। अगले दिन इस लड़ाई में राहुल गांधी भी कूद गए। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को हिंदू धर्म और हिंदुत्व का फर्क समझाया।
राहुल कहते हैं- 'हिंदू धर्म और हिंदुत्व, दोनों अलग-अलग बातें हैं। अगर एक होते तो उनका नाम भी एक होता।' मजे की बात ये है कि खुद वीर सावरकर भी यही मानते थे कि हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व अलग शब्द है। उनके अनुसार हिन्दू धर्म हिन्दुत्व का एक अंश भर है।
सावरकर के हिसाब से हिन्दू वो है जो सिंधु नदी से सागर तक विस्तृत क्षेत्र हिन्दुस्थान को अपनी पितृभूमि और पुण्य भूमि मानता हो। हिंदुत्व हर भारतीय का समावेशी शब्द है। सावरकर की परिभाषा में हिंदुत्व के तीन अनिवार्य तत्व हैं-
एक राष्ट्र
दूसरा जाति
और तीसरा तत्व संस्कृति या सभ्यता है।
आप देखें उनकी इस परिभाषा में धर्म तत्व साफतौर पर गायब है। सावरकर को हिन्दुत्व शब्द से इसलिए प्रेम था क्योंकि इस शब्द में एक राष्ट्र हिन्दू जाति के अस्तित्व और उसके पराक्रम का बोध होता है।
दरअसल, सावरकर के मन में हिन्दुत्व का ख्याल खिलाफत के उस दौर में आया जब भारत में खिलाफत आंदोलन के लिए अखिल-इस्लामिक लामबंदी शुरू हो गई थी। गांधी जी खुद खिलाफत आंदोलन के समर्थन में उतर आए थे।
भारतीय मुसलमान जिस तरह तुर्क साम्राज्य के इस्तांबुल स्थित खलीफा और इस्लामी प्रतीकों को समर्थन के देने लिए सड़क पर उतर रहे थे, वो सावरकर को नागवार गुजर रहा था, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि ये विरोध देश की "साझा संस्कृति" के खिलाफ है। मुसलमान भारत को न पितृभूमि मानते हैं न पुण्य भूमि। उनकी पुण्य भूमि अरब है।
जाहिर है तभी से सावरकर को लगने लग गया कि ये बढ़ती इस्लामी विचारधारा हिंदू राष्ट्र के लिए एक खतरा है। इसी विचार से एक कदम आगे बढ़कर सावरक इस नतीजे पर पहुंचे कि देश के "असली दुश्मन मुसलमान है न कि ब्रिटिश।' सावरकर ने अपनी इस "साझा संस्कृति" की विरासत में उन लोगों को भी शामिल किया जिनके पूर्वज हिन्दू थे, और जिन्होंने दबाव व दूसरों कारणों से ईसाई या इस्लाम में धर्म में परिवर्तित हो गए थे। ऐसा करने के लिए जरूरी था कि वे अपने हिंदू और हिंदुत्व के विचार से हिंदू धर्म से दूर रखें।
तो जैसा कि साफ है हिन्दुत्व को सावरकर पूरी तरह से समझ नहीं पाए तो सलमान खुर्शीद या राहुल गांधी से तो खैर आप क्या ही उम्मीद कर सकते हैं? हिन्दू के शब्द जो भी शब्द जुड़ेगा वह उसकी प्राचीनता और उसके भव्य आभामंडल से अछूता नहीं रह सकता। सावरकर हो या खुर्शीद वे हिन्दुत्व को हिंदू शब्द के व्यापक अर्थों से अलग नहीं कर सकते।
मजे की बात ये है कि आप वेद, पुराण, ब्राह्मण ग्रंथों, गीता, रामायण सब जगह खोज लिजिए लेकिन आपकों कहीं न हिन्दुत्व शब्द मिला न हिन्दू धर्म। विद्वान आपको समझाएंगे कि हिन्दुओं के धर्म का असली नाम तो 'सनातन धर्म' है। अब उन्हें कौन समझाए कि 'सनातन' नाम का कोई धर्म नहीं है।
सनातन यानी जो परम्परा में सदियों से चला आ रहा धर्म है। यानी हिन्दू धर्म का वैसा कोई नाम नहीं जैसा इस्लाम या ईसायत, बौद्ध या जैन धर्म है। भारत की संस्कृति धर्म के नाम पर सदा से उदार रही है। इस धर्म का कोई सैट पैर्टन नहीं है, इसलिए इस हिन्दुओं की संस्कृति में गज़ब की विविधता है। ये एक अतरंगी संस्कृति है। दुनिया में सबसे अलग, सबसे निराली, सबसे उदार और विरोधाभासी। क्योंकि भारत ने शुरू से माना कि ईश्वर तक पहुंचने की हजारों विधियां हैं। अब किसी भी विधि से उस तक पहुंच सकते हैं।
हिन्दुओं की शुरू से परंपरा रही कि उनने कहा- कहा सब ठीक है। सारे रास्ते ठीक हैं। राम को मानों या कृष्ण को, दुर्गा को मानों या काली को। या किसी को न मानो सिर्फ शून्य में ध्यान करो तुम्हें परमात्मा मिल जाएगा। यज्ञ करो तो ठीक न करो तो ठीक। नास्तिक हो जाओ तो भी हिन्दू होने का हक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, इसीलिए हिन्दू धर्म ने कभी देश के अंदर या बाहर धर्मान्तरण के उपाय नहीं किए जैसे इस्लाम, ईसाइयत या बौद्ध भिक्षुओं ने किए, क्योंकि हिन्दुओं को ये बहुत शुरू में समझ आ गया था कि सत्य इतना बड़ा इतना विराट है कि अपने विरोधी सत्य को भी वह पूरी तरह से आत्मसात कर लेता है।
इस्लाम, इसाइयत और दूसरे तमाम धर्मों में ये विचार कभी विकसित नहीं हो सका। उसमें आईएसआईएस और बोकोहरम जैसे खूंखार आतंकी संगठन बन गए जिनकी तुलना सलमान अब 'हिन्दुत्व' से कर रहे हैं गोया हिन्दुत्व को बगदाद या नाइजेरिया का कोई आतंकी संगठन हों।
सलमान साहब को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं एक जमाने से। वे अपनी बात को ठीक शब्दों में कह नहीं पाए। कभी मिलेंगे तो मैं उनसे पूछगा कि 'हिन्दुत्व' शब्द सावरकर ने प्रचारित किया क्या सिर्फ इसीलिए वो बोको हरम जैसा घृणित शब्द हो गया? हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व को समझना है तो सिंधु घाटी की सभ्यता से शुरूआत करनी होगी। फिर वेद पुराण गीता रामायण की यात्रा करते हुए शंकर तक आना होगा। फिर शंकर के आगे का सफर तय करते हुए कबीर, तुलसी और फिर विवेकानंद तक आता है। वर्ना हिन्दुत्व के नाम पर ये मूढ़ताएं चलती रहेंगी।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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