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एक खिलाड़ी के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी भी सचिन तेंदुलकर की तरह भाग्यशाली रहे कि उन्हें कभी भी टीम इंडिया में ‘वापसी’
विमल कुमार। एक खिलाड़ी के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी भी सचिन तेंदुलकर की तरह भाग्यशाली रहे कि उन्हें कभी भी टीम इंडिया में 'वापसी' नहीं करनी पड़ी. वापसी इसलिए नहीं करनी पड़ी, क्योंकि जब से टीम में चुने गए, कभी भी ड्रॉप ही नहीं हुए. और जब उनका मन चाहा, क्रिकेट के हर फॉर्मेट को उन्होंने अलविदा कह दिया.
लेकिन, 15 अगस्त 2020 में अंत्तराष्ट्रीय क्रिकेट के हर फॉर्मेट से संन्यास लेने के करीब ठीक एक साल बाद उनकी टीम इंडिया में वापसी ही नहीं, बल्कि धमाकेदार वापसी हुई है. ये ठीक है कि वो अब विकेट के पीछे ना तो कीपिंग करेंगे और ना ही बल्लेबाज़ी करते दिखेंगे, लेकिन मेंटोर के तौर पर वो एक नई भूमिका में नज़र आयेंगे.
मेंटोर वाली भूमिका तो धोनी के लिए नई है ही नहीं
लेकिन, ये पूरी तरह से नई भूमिका तो धोनी के लिए है भी नहीं. दरअसल, कप्तान के तौर पर भी तो धोनी युवा खिलाड़ियों के लिए कप्तान कम मेंटोर ही ज़्यादा थे. आप पूछिये और देखिये ना कि वो कुलदीप यादव और युज़वेंद्र चाहल को कैसे सलाह देते हुए गाइड करते थे. धोनी क्या विकेट के पीछे से सलाह देते हुए गायब हुए कि इन दोनों का खेल इस तरह बिगड़ा कि अब वो टी-20 वर्ल्ड टीम का हिस्सा तक नहीं है.
मार्गदर्शन के लिए धोनी से बेहतर गुरु और कौन?
दूसरी बात ये है कि ऋषभ पंत ने भले ही बल्लेबाज़ के तौर पर टेस्ट क्रिकेट में तहलका मचा दिया हो, लेकिन सफेद गेंद की क्रिकेट में उन्हें अब भी लंबा रास्ता तय करना है. ऐसे में उनके मार्ग-दर्शन के लिए धोनी से बेहतर गुरु और कौन हो सकता है? इतना ही नहीं, पंत को भविष्य के कप्तान के तौर पर देखा जा रहा है और इसलिए उनकी फ्रैंचाइजी डेलही कैपिटल्स ने उन्हें श्रैयस अय्यर जैसे बेहतर कप्तानी के विकल्प को नज़रअंदाज़ करके पंत को चुना है.
ऐसे में एक विकेट कीपर बल्लेबाज़ के लिए तीनों फॉर्मेट के दबाव को झेलना, बल्लेबाज़ के तौर पर मैच-विनर की भूमिका निभाना और कप्तान के तौर पर हमेशा संयमित रहना एक तिहरी भूमिका है, जिसे दुनिया का कोई भी विकेट कीपर-कप्तान आधुनिक युग में तीनों फॉर्मेट में निभा नहीं पाया है. ऐसा काम शानदार तरीके से निभाने वाले धोनी ही थे और इसलिए उन्हें टीम से जोड़ा गया है.
ना कोहली और ना रोहित, अब टीम में सिर्फ धोनी कैंप
एक और बात जो कोई आधिकारिक तौर पर नहीं कहेगा, लेकिन कई आलोचकों को ऐसा लगता है कि सफेद गेंद की क्रिकेट और वो भी ख़ास तौर पर टी 20 क्रिकेट में रोहित शर्मा की मौजूदगी के चलते कप्तान कोहली सहज नहीं दिखते हैं.
इसकी वजह ये है कि रोहित आईपीएल के इतिहास के सबसे कामयाब कप्तान है और 2018 में जब से उन्होंने एशिया कप जीता, तब से उन्हें टीम इंडिया की कप्तानी देने की मांग भी ज़ोरों पर हैं. ऐसे में दो बेहद कामयाब खिलाड़ियों के बीच अहम के टकराव की ख़बरें भी समय समय पर आती रही हैं, जिसे रवि शास्त्री जैसा हेड कोच भी संभाल नहीं पाया है.
आपको याद है ना कि कैसे पिछले साल ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले विराट कोहली ने सार्वजनिक तौर पर रोहित के रवैये को लेकर सवाल उठाया था और ये कहने की कोशिश की थी कि मुंबई के ओपनर ने देश की बजाए आईपीएल को प्राथमिकता दी और इसलिए वो पहले दो टेस्ट में नहीं खेले. लेकिन शास्त्री ने ऐसे नाजुक मुद्दे को ठंडा करने की बजाए और गरम हवा ही दे डाली.
शायद यही वजह है कि बीसीसीआई ने सोचा हो कि टीम इंडिया के साथ वर्ल्ड कप जैसे हाई-प्रोफाइल टूर्नामेंट के लिए धोनी जैसे शख्स को लाया जाए, जिसे हर कोई बेहद सम्मान से देखता है और उसकी बात कोई नहीं टाल सकता है या फिर काट सकता है. चाहे वो कोहली हों या फिर शास्त्री या रोहित.
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वैसे भी धोनी के पास सफेद गेंद की क्रिकेट का असाधारण अनुभव है और उनके जैसा कामयाब खिलाड़ी कोई नहीं. तभी तो चेन्नई सुपर किंग्स हमेशा कहती है कि धोनी जीवन भर चेन्नई के साथ ही जुड़े रहेंगे, वो कप्तान रहें या नहीं. धोनी के बल्ले से पिछले दो साल से रन नहीं बन रहें है, लेकिन चेन्नई कहती है कि हमें धोनी के बल्ले से रन नहीं उनके क्रिकेट का ज्ञान चाहिए.
अब चेन्नई की तर्ज पर बीसीसीआई ने भी एक पहल शुरू की है, जिसका दूरगामी लक्ष्य शायद ये हो कि भविष्य में धोनी को कोच के तौर पर भी विकल्प माना जा सकता है. धोनी के लिए भी ये मेंटोर वाली भूमिका सही जंचती है, क्योंकि इसके लिए उन्हें सिर्फ अहम टूर्नामेंट के दौरान उन्हें कुछ महीनों के लिए टीम के साथ जुड़ना होगा. यानि दोनों पक्षों के लिए जीत-जीत वाली बात.
मेंटोर धोनी से सबसे ज़्यादा फायदा कप्तान कोहली को
लेकिन, ऐसा नहीं है कि धोनी के टीम में जुडने से कोहली को फायदा नहीं होगा. धोनी और कोहली के रिश्ते बड़े भाई-छोटे बाई जैसे हैं और कोहली ने हमेशा माना है कि धोनी उनके लिए हमेशा कप्तान रहेंगे. ऐसे में धोनी ड्रेसिंग रुम में आते हैं तो विराट के सिर पर रणनीति बनाने और उसमें उलझने का आधा सिरदर्द ख़त्म हो जायेगा. वो बल्लेबाज़ के तौर पर अपने खेल में पूरी तरह से ध्यान दे पायेंगे.
अब तो हर किसी को पता चल ही गया है कि कोहली मौजूदा समय में बल्लेबाज़ के तौर पर पहली बार संघर्ष के दौर से गुज़र रहें है और करीब 2 साल से उनके बल्ले से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कोई शतक तक नहीं निकला है. ऐसे में अगर धोनी आते हैं और कोहली को बल्लेबाज़ी और इस मानिसक उलझन से निकलने की सबसे दुरुस्त सलाह दे सकते हैं तो वो धोनी जैसे मेंटोर ही होंगे.
धोनी का ड्रेसिंग रुम में लौटना एक अभूतपूर्व बात
यानि कुल मिलाकर देखा जाए तो पूर्व कप्तान धोनी की फिर से टीम इंडिया के ड्रेसिंग रुम में लौटना ना सिर्फ भारतीय क्रिकेट के लिए अभूतपूर्व बात है, बल्कि इसके चलते भारतीय क्रिकेट का भविष्य और बेहतर हो सकता है. ख़ास तौर पर सफेद गेंद की क्रिकेट में क्योंकि टेस्ट क्रिकेट में कोहली औऱ उनके साथियों ने तो एक अलग उड़ान भर ही ली है. ठीक वैसी ही कामयाबी के लिए धोनी से बढ़िया मार्ग-दर्शक आज के दौर में भारत में तो छोडिये, आपको दुनिया में भी कोई नहीं मिलेगा!
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