सम्पादकीय

75वां स्वतंत्रता दिवस विशेष, धौलावीरा की कहानी-2: जब मोहनजोदड़ो की बस्तियां आज की तरह ही थीं

Gulabi
13 Aug 2021 6:31 AM GMT
75वां स्वतंत्रता दिवस विशेष, धौलावीरा की कहानी-2: जब मोहनजोदड़ो की बस्तियां आज की तरह ही थीं
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15 अगस्त 2021 को हिंदुस्तान अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है

राजेश बादल।

15 अगस्त 2021 को हिंदुस्तान अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। आजादी के इन 75 सालों में जहां भारत ने ज्ञान-विज्ञान, समाज, तकनीक, राजनीति, रक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, तो वहीं 75 सालों की इस विकास यात्रा में भारत ने अपनी सभ्यता, संस्कृति, विरासत और धरोहर को पहचानने और अपनी स्मृतियों को सहेजने का गौरवशाली कार्य भी किया है।

हाल ही में यूनेस्को यानी संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन ने गुजरात स्थित धौलावीरा को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। यह भारत का 40वां ऐसा स्थल है जो यूनेस्को की इस सूची में शामिल है।

धौलावीरा ना केवल भारतीय उपमहाद्वीप का गौरव है बल्कि यह मनुष्य सभ्यता की प्राचीन, वैज्ञानिक और सभ्य संस्कृति का वह अध्याय है जो भारत भूमि पर लिखा गया।

आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल, अमर उजाला के पाठकों से श्रृंखलाबद्ध रूप में धौलावीरा की कहानी साझा कर रहे हैं। राजेश बादल, पुरातत्व विषयों पर गहन रुचि और दक्षता के साथ लिखते रहे हैं। यह विषय लंबे समय से ना केवल उनके पठन-पाठन में शामिल होता रहा है अपितु उनकी शैक्षेेेणिक यात्रा की विषय विशेषज्ञता का हिस्सा भी रहा है।
विस्तार
जब सिंधु सभ्यता के अवशेषों का अध्ययन शुरू किया गया, तो सारे संसार की आंखें चौंधिया गईं। असल में यह सभ्यता करीब पांच हजार साल पहले के दो महानगरों पर केंद्रित है। एक तो मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के काठे में उसके दाहिनी ओर दूर तक फैला हुआ था और दूसरा हड़प्पा, जो पंजाब में रावी नदी के किनारे बसा था। अफसोस! भारत के बंटवारे के बाद यह दोनों पाकिस्तान के हिस्से में चले गए और उस मुल्क को अपने इस साझा अतीत से कोई लेना-देना नहीं है।
हड़प्पन सभ्यता का क्षेत्र भी विराट था। यह करीब पंद्रह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। यह जानना जरूरी है कि अपने जिस अतीत पर हम गर्व करते हैं, उसके बारे में वर्तमान में मौजूद दस्तावेज क्या कहते हैं। उस युग के यह सबूत आज अपनी जिंदगी के अनगिनत धड़कते हुए दस्तावेज समेटे हुए हैं। शुरू करते हैं उन दिनों के रहन-सहन पर।
पानी से पनपी और पानी से नष्ट
दरअसल, यह नदी घाटी सभ्यता पानी के किनारे पनपी और पानी के कारण ही नष्ट हुई। मोहनजोदड़ो में एक के ऊपर एक शहरों की बसावट के स्तरों के प्रमाण मिले हैं। शायद सिंधु में बाढ़ आती गई और अपने साथ नगरीय साक्ष्यों को लीलती गई। जब बाढ़ का पानी उतरा तो वहां के लोगों ने उसी स्थान पर बस्ती बसा ली।

मैं सुनामी का उदाहरण देना चाहूंगा। तमिलनाडु के नागपट्ट्नम और उससे सटे पुड्डुचेरी में 26 दिसंबर 2004 को सुनामी आई। मैं उसी शाम कवरेज के लिए कैमरा टीम के साथ वहां पहुंच गया। अगले दिन से करीब पंद्रह बीस दिन वहीं रहा। मैं रोज उन बस्तियों को खोजने निकल जाता था, जो अब अस्तित्व में नहीं थीं। मुझे देखकर हैरानी हुई कि समंदर किनारे के इस शहर में रेत के टीले बन गए थे। उसके ऊपर महिलाएं-पुरुष बैठे विलाप कर रहे थे। वे उन टीलों पर अगरबत्ती लगाकर पूजा करते जाते थे और रोते जाते थे।

पता चला कि सुनामी के कारण समंदर के भीतर से रेत इतने वेग के साथ आई कि उसके नीचे बस्तियां दब गईं। मैं जहां-जहां जाता रहा, उसके बीस फीट नीचे यह बस्तियां दबी थीं। तो एक तो यह प्राकृतिक आपदा से बस्ती विनाश का कारण हो सकता है।

दूसरा मुझे याद आता है कि नर्मदा पर इंदिरासागर बांध बन रहा था, तो सबसे बड़ा और ऐतिहासिक कस्बा हरसूद डूब में आया। यह कस्बा आज पानी में डूबा है।

हरसूद प्राचीन भारत के प्रतापी सम्राट हर्षवर्धन ने बसाया था। हमें तो उस हरसूद की खुदाई करके सभ्यता के नए अवशेष निकालने थे। हमने उसे डुबो दिया। अब सैकड़ों साल बाद जब नर्मदा अपनी धारा खिसकाएंगीं तो फिर यह हरसूद नर्मदा की गाद तले प्रकट होगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए शोध, खोज और अध्ययन का विषय बन जाएगा। हालांकि बस्तियों के उजड़ने का एक कारण पुरात्वविद अकाल या पानी की कमी भी मानते हैं, पर सिंधु जैसी नदी या उससे जुड़ने वाली उप नदियां एकदम सूख गई होंगीं- कम से कम मुझे तो नहीं लगता।
आज की तरह बसी थीं कॉलोनियां
मोहनजोदड़ो में बस्तियों का निर्माण आज की तरह ही इंजीनियरिंग कौशल से हुआ था। मैं अपने समर्थन में इतिहासकार आर.सी. मजूमदार का एक कथन उद्धृत करुंगा।
वे लिखते हैं- 'अब तक सात स्तरों की खुदाई हो चुकी है। उनमें यही प्रमाण मिले हैं। संभव है और पुरानी तहें नीचे दबी हों। जो अवशेष मिले हैं, उनसे नगर निर्माण की अदभुत कुशलता का विवरण मिलता है।

अब इसे इस तरह समझिए कि हम आज अपनी कॉलोनियों की सड़कें बीस से तीस फीट चौड़ी बनाते हैं और मुख्य सड़क तीस से साठ फीट चौड़ी रखते हैं। मकान एक सीध में बने होते हैं और बाहर ड्रेनेज प्रणाली काम करती है। कॉलोनियों में थोड़ी थोड़ी दूर पर चौराहे होते हैं। मोहनजोदड़ो में भी ठीक ऐसा ही था।

मैंने अपने बचपन में देखा था कि सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था के लिए चौराहों पर पंचायत या नगरपालिका प्रकाश के लिए लैंप पोस्ट खड़े करती थी। एक व्यक्ति की नौकरी यही होती थी कि वह रोज शाम उन लैम्पों में उतना तेल भर दे कि वे रात भर उजाला देते रहें। अब तो घर घर में नल लगे हैं, लेकिन कुछ दशक पहले कॉलोनियों अथवा मोहल्लों के चौराहों पर हैंड पम्प या कुएं होते थे। वहां से उस क्षेत्र के लोग पानी भरते थे।

मोहनजोदड़ो में ठीक ऐसा ही मिला था। हर चौराहे पर प्रकाश स्तंभ थे और कुएं थे। मकान पक्के थे। वे ईंटों से बने थे। मकानों और कॉलोनियों के नक्शे से पता चलता है कि उस सभ्यता में भी एक ही नक्शे पर घर बनते थे और उन्हें भी आज की तरह किसी नगरपालिका या प्रशासन तंत्र की अनुमति लेनी होती होगी।
अमीरों और गरीबों के घर
मोहनजोदड़ो में आर्थिक आधार पर स्पष्ट विभाजन था। वे या तो अमीर थे या गरीब। उनके बीच कोई मध्यम वर्ग नहीं था, जिस तरह घरों का नक्शा या डिजाइन मिला है, वह इसका साक्ष्य है। गरीबों के मकान सिर्फ दो कमरे के होते थे।

अमीरों के घरों में कई कमरे होते थे। आंगन होता था। वे दो मंजिल के हो सकते थे। ऊपर की मंजिल से नीचे पानी निकास के लिए नाली बनाई गई थी, जैसे आज हम किसी फ्लैट से पाइप के जरिए बाथरूम या किचन का पानी निकालते हैं। यानी ऊपर भी लोग स्नानागार और भोजनालय बनाते थे। जमीनी तल की छतें एकदम सपाट फर्श वाली और उनके नीचे लकड़ियों का आधार होने के प्रमाण हैं।

यदि आपका बचपन गांव में बीता है तो अवश्य ही आपने इस तरह के मकान देखे होंगे। बड़े अमीरों की कोठियां होती थीं, जिनमें स्वीमिंग पूल भी होते थे। मोहनजोदड़ो में एक स्वीमिंग पूल का आकार 180 फीट लंबा, 108 फीट चौड़ा है। लेकिन इसमें पूल के चारों ओर छतवाला गलियारा तथा उससे सटे कमरे भी शामिल हैं। स्वीमिंग कुंड 39 फीट लंबा, 23 फीट चौड़ा और 8-10 फीट गहरा है। अब इस बात से पता चलता है कि उस जमाने में महिलाएं भी स्वीमिंग पूल का आनंद लेती रही होंगीं और वह भी घर के भीतर।

दूसरा यह कि संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलन में थी। बड़े परिवार के सदस्य उसी कुंड में नहाते रहे होंगे। शायद अमीर नदी में जाकर स्नान करना शान के खिलाफ समझते हों। अर्थ यह भी लगा सकते हैं कि गरीबों के लिए घर से बाहर कुएं अथवा नदी पर जाकर नहाने की मजबूरी थी।

(जारी)
धौलावीरा की कहानी का पहला भाग पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-
75वां स्वतंत्रता दिवस विशेष, धौलावीरा की कहानी-1 : देश का वह तीर्थ जिसकी स्मृतियों को हमें दुनिया याद दिला रही है..!

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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