सम्पादकीय

आजादी के 75 साल और धौलावीरा की कहानी-5: पाकिस्तान उपेक्षा करता रहा और भारत सहेजकर संरक्षित करता रहा..!

Rani Sahu
19 Aug 2021 8:19 AM GMT
आजादी के 75 साल और धौलावीरा की कहानी-5: पाकिस्तान उपेक्षा करता रहा और भारत सहेजकर संरक्षित करता रहा..!
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अभी तक हम मुअनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता के बारे में ठीक ठाक जान चुके हैं

राजेश बादल। अभी तक हम मुअनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता के बारे में ठीक ठाक जान चुके हैं। जब मुल्क़ का बंटवारा हो गया तो पाकिस्तान ने अतीत के इन दस्तावेज़ों को एक तरह से रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया।

चूंकि वह सभ्यता सिंधु नदी के नाम पर थी और पश्चिम के उस पूरे इलाक़े में लोग 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे इसलिए सिंधु सभ्यता की जगह वे हिंदू सभ्यता कहते थे और पाकिस्तान कोई ऐसे काम पर पैसा तथा मानव संसाधन क्यों ख़र्च करता जो हिन्दुस्तान के साथ साझा अतीत से जुड़ती हो।
अगर वह गंभीर होता तो आज संसार में इस पूरे उप महाद्वीप की सभ्यता और संस्कृति के डंके बज रहे होते। मूढ़ पाकिस्तान को यह समझ में नहीं आया कि इससे उनके मुल्क़ को भी पहचान मिलती। लेकिन जिस देश का अस्तित्व भारत से नफ़रत के आधार पर टिका हो,वह क्यों कर ऐसा करता ?
हिन्दुस्तान ने भी खोजे अपने नगर
बहरहाल ! धरती पर कांटों की बाड़ या सीमा रेखा के खंभे और तार से ज़मीन के भीतर दफ़न सभ्यताओं के दस्तावेज़ मर नहीं जाते। हिन्दुस्तान में नेहरू सरकार ने अपने स्तर पर भारतीय क्षेत्र में पुरातात्विक उत्खनन को प्रोत्साहन दिया और विभाजन से पहले जो क्षेत्र इस सभ्यता के उप केंद्र माने जा सकते थे ,उनके गर्भ से इतिहास की नई परतें सामने लाने का फ़ैसला किया। इसका एक कारण नेहरू की इतिहास के प्रति अपनी दिलचस्पी भी थी।
इस नज़रिए से उनका डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया एक बेजोड़ ग्रन्थ है। आज़ादी के बाद जब पूरा सम्पदा को खंगालने का काम हुआ तो अनेक चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं। उत्तरप्रदेश के मेरठ ज़िले में हिण्डोन नदी किनारे बसे अल्लाहपुर,पंजाब में रोपड़, राजस्थान में श्रीगंगानगर के समीप कालीबंगा ,गुजरात में लोथल और हरियाणा में हिसार ज़िले के राखीगढ़ी ऐसे ही प्राचीन कथाओं के उगलने वाले स्रोत साबित हुए।
इसके अलावा बिहार में पटना से लेकर उत्तर में अंबाला तक तथा भारत के अनेक प्रदेशों में हमें अपने पूर्वजों की परंपरा के निशान देखने को मिलते हैं। श्रीगंगानगर में घग्घर नदी किनारे (लुप्त सरस्वती ) कालीबंगा में दस साल तक उत्खनन हुए।
वहां उल्लेखनीय बात यह है कि क़िले का और निचली बस्ती का अलग-अलग परकोटा मिला। दूसरी ख़ास बात यह कि सीवेज की नालियों के ज़रिए हम आज जिस तरह उस गंदे नाले को किसी नदी में डालकर उसकी हत्या कर देते हैं ,वैसा कालीबंगा के लोग नहीं करते थे। वे इन नालियों को बड़े-बड़े पानी सोखने वाले सलीक़ेदार गड्ढों से जोड़ते थे। इसे मुअनजोदड़ो से क़रीब डेढ़ हज़ार साल के बाद की स्थिति मान सकते हैं। कालीबंगा में किसी देवी देवता की मूर्ति नहीं मिली ,लेकिन सात वेदियां या हवनकुंड मिले हैं ,जो निश्चित रूप से यज्ञ का प्रमाण हैं। उनके पास एक बलिकुण्ड भी मिला है। इसमें पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई हैं।

भारत का सबसे पुराना बंदरगाह
गुजरात के लोथल से भी कुछ हवनकुंड मिले हैं। लेकिन यह कालीबंगा से कुछ भिन्न हैं। लोथल की खोज 1954 में की गई थी। इसके बाद क़रीब दो साल तक यहां खुदाई चलती रही। लोथल में एक सम्पूर्ण सभ्यता के सारे प्रमाण मिले हैं। साबरमती नदी की एक धारा के माध्यम से यह शहर बंदरगाह से भी जुड़ा था,जहां से अंतर्राष्ट्रीय कारोबार होता था। लोथल की खोज करने वाले एस.आर.राव ने लोथल को मिनी हड़प्पा का नाम दिया है।
यहां धातु-विज्ञान उस समय अत्यंत उन्नत अवस्था में था। इसके अलावा मोती मनके ,सोने और और क़ीमती रत्नों के समंदर पार व्यापार का लोथल बड़ा केंद्र था। अनेक पुरातत्वविद इसे हिन्दुस्तान का सबसे पुराना बंदरगाह भी मानते हैं, किन्तु अधिकृत तौर पर कुछ कहने से मैं बचना चाहूंगा। मोती मनके तैयार करने वाले एक कारख़ाने के प्रमाण भी यहां मिले हैं।
टोनी जोसेफ अपनी "द अर्ली इंडियंस-द स्टोरी ऑफ़ अवर एंसेस्टर्स एंड व्हेयर वी केम फ्रॉम" में लिखते हैं- लोथल के ज़माने से आज दक्षिण एशियाई लोगों के रहन-सहन में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं आया है।
उनके अनुसार लोथल में उत्खनन के दौरान एक कलश मिला था। इसमें आगे कौए का चित्र बना है और पीछे हिरण दिख रहा है। कुछ किस्से-कहानियां जो आज हम अपने बच्चों को बताते हैं, वे शायद वही हैं जो लोथल के लोग अपने बच्चों को बताया करते थे।

राखीगढ़ी के बारे में 1963 में पुरातत्वविदों का निष्कर्ष यह था कि सिंधु सभ्यता के शेष शहरों में यह एक विशाल नगरीय सभ्यता का सुबूत है। इसके अवशेष दिल्ली से सिर्फ़ 200 किलोमीटर दूर बिखरे पड़े हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने1997 में यहां उत्खनन शुरू किया। तीन साल तक यह चलता रहा। इसके बाद इसे हड़प्पा और मुअनजोदड़ो से भी विराट पाया गया। हक़ीक़त तो यह है कि राखीगढ़ी संभवतया एक बड़े केंद्र के रूप में स्थित था।
इसे हम राजधानी भी मान सकते हैं। इसके आसपास हरियाणा में सैकड़ों ऐसे स्थान मिले हैं।यह मानने में कोई हिचक नहीं होना चाहिए कि राखीगढ़ी और धौलावीरा भारत में उस दौर के श्रेष्ठतम उदाहरण हैं।
अगली कड़ी में धौलावीरा।
जारी
धौलावीरा की कहानी पिछले भागों को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-
75वां स्वतंत्रता दिवस विशेष, धौलावीरा की कहानी-1 : देश का वह तीर्थ जिसकी स्मृतियों को हमें दुनिया याद दिला रही है..!
75वां स्वतंत्रता दिवस विशेष, धौलावीरा की कहानी-2: जब मोहनजोदड़ो की बस्तियां आज की तरह ही थीं
75वां स्वतंत्रता दिवस विशेष, धौलावीरा की कहानी-3: क्या बदला है पांच हज़ार साल में
आजादी के 75 साल और धौलावीरा की कहानी-4: मुअनजोदड़ो से हड़प्पा की ओर
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