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- गुजरे 75, आएंगे 5 साल
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By: divyahimachal
हिमाचल की स्थापना के 75 साल के जश्न में पूरी तरह नहाई सत्ता ने अगली सत्ता का रास्ता बनाना शुरू किया है, तो सरकार की कमाई का रंग जमाते मुख्यमंत्री जयराम का काफिला, पूरी तरह उदार दिखाई दे रहा है। गिनती के लिए 75 साल और भविष्य के लिए पांच साल का खाका बुनती सरकार का अपना ठौर नित नया समारोह है, तो जनता के लिए नई घोषणाओं का अंबार। चुनाव की धडक़न में हिमाचल के 75 साल गुजर गए, लेकिन दस्तूर यही रहा कि सरकारें अपने अंतिम क्षणों में निर्णायक, शक्तिशाली, साधनसंपन्न और जनता की उम्मीदों की प्रश्रयदाती बन जाती हैं। गौर से देखें तो हर विधानसभा में आयोजित समारोह, एक नई मुलाकात, शिष्टाचार और उम्मीदवार चुन रहा है। हर मंच की देहभाषा है और कहीं-कहीं तो जनता को सुनाने के लिए जिन्हें पेश किया जाता है, वे नेता भाजपा के सर्वेक्षणों से भी आगे हो जाते हैं। हालांकि सत्ता की वापसी और मिशन रिपीट के भेद में सरकार के अहम फैसले, किसी सदर की आंख या विधानसभा क्षेत्र की दुकान खोल देते हैं, लेकिन सत्य यह भी है कि कमजोर सीटों पर सफल आयोजन की राजनीतिक चाकरी में कई-कई गर्दनें तनी हैं। सरकार का अपना रुतबा है, इसलिए कई समारोह तो हद से ज्यादा गूंज रहे हैं।
खुद इलाके के लोग भी हैरान हो सकते हैं कि सरकार के वश में कितना विकास और कितनी योजनाएं-परियोजनाएं हो सकती हैं। शिलान्यास से उद्घाटन तक के पत्थर रंगे हुए और राजनीति के रंगसाज मशगूल हैं। हिमाचल के 75 साल का सफर राजनीतिक विजन की कहानी भी तो है। इसके भीतर हर मुख्यमंत्री का सफर और विजन के सबूत खड़े हैं। इस लिहाज से हिमाचल निर्माण की गाथा लंबी और निरंतरता के साथ जारी है। इसीलिए भाजपा अपना विजन डाक्यूमेंट का पहला ड्रॉफ्ट 21 सितंबर तक ला रही है, जहां 21 उप समितियां विभिन्न विषयों और क्षेत्रों की सूचियों में विजन का अमृत खोज रही हैं। यह दीगर है कि विजन हिमाचल के उच्च शिखिर पर सदा संसाधनों की कमी और इसके आधार पर सरकार के बजट बंटवारे का असंतुलन रहता है। कमोबेश हर सत्ता के लिए सबसे बड़ा विजन प्रदेश के भौगोलिक, आर्थिक व राजनीतिक संतुलन को साबित करना रहा है। इरादों की खाक छानते प्रयत्न और वित्तीय जरूरतों के हिसाब से बजट का संतुलन सबसे बड़ी कसौटी है। संतुलन राज्य की आमदनी और खर्च के बीच तथा इच्छाशक्ति व चुनौतियों के यथार्थ के बीच भी है। विजन समितियां ताज पहनकर राजनीति के मकसद ऊंचा करेंगी और इस बार तो 'आप' के आगमन ने मुफ्त की मंडी में सरकार के सरोकार सजा दिए हैं। ऐसे में राजनीतिक शब्दावली में जो प्रतिस्पर्धा शुरू हुई है, उसका संतुलन कौन पैदा करेगा।
राज्य अपने होशोहबास में यह तो नहीं कह सकता कि अगली सरकार के दामन में पिछले सालों का कर्ज कितने छेद करेगा, लेकिन हिमाचल के विजन का सबसे बड़ा संतुलन तो आर्थिक संसाधनों की दरिद्रता में उधार की सीमा से ही पैदा होगा। राज्य के 75 सालों की टीस में उभरता आर्थिक संकट और नए करतब दिखाती समारोहों की खुशहाली के बीच शायद ही अंतर मालूम हो पाए, लेकिन सारे विकास और घोषणाओं के तिलिस्म के बीच कहीं हिमाचल का वित्तीय असंतुलन घातक है जरूर। तमाम नागरिक अपने प्रदेश के 75 साल का अभिनंदन करते हुए इतने गरीब, असहाय व पिछड़े क्यों रह गए कि हर मंच को सौदेबाजी पर उतरना पड़ रहा है। राज्य से जनता की मुलाकात का नजराना अगर हर समारोह दे रहा है, तो अभी से उन जनप्रतिनिधियों को चुन लें जिनके हिस्से में सबसे बड़ी घोषणाएं आईं। इन घोषणाओं का मूल्यांकन अगर चुनावी डगर पर चल रहे प्रदेश का भाग्य बता रहा है, तो जीत के नायक भी उभर रहे हैं। बहरहाल हिमाचल के 75 साल क्या आगामी चुनाव का किसी सूरत में मुद्दा बन सकते हैं। क्या जब मतदाता वोट देगा तो वह अपने प्रदेश के हित और अब तक के सफर के सारथी रहे स्व. वाईएस परमार, स्व. वीरभद्र ङ्क्षसह, शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल की याद या उनके हिसाब से वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को याद करके करतब दिखाएगा। खैर अभी जश्न जारी है, परीक्षा तो बाद में होगी।
Rani Sahu
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