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पिछले साल इन्हीं दिनों हर शहर, गांव, राज्य से आने वाली मौत की खबरें
Faisal Anurag
पिछले साल इन्हीं दिनों हर शहर, गांव, राज्य से आने वाली मौत की खबरें, आक्सीजन की कमी, अस्पतालों में बेड की कमी और गंगा में बहती लाशों की खबरों से हर कोई दहशत में था. महामारी की दूसरी लहर की त्रासदी में कितने लोग में मरे इस बाबत सरकार के दावों और वास्तविकता को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं कुछ अखबारों ने साहस के साथ खोज की और गुजरात,बिहार और उत्तर प्रदेश के सरकारी आंकड़ों को गलत साबित कर दिया. बावजूद इसके सरकार अपने ही आंकड़े पर डटी रही.
अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दावा किया है कि भारत में कोविड से मरने वालों की संख्या 47 लाख थी न कि 4.8 लाख. डब्ल्यूएचओ ने दुनिया भर की सरकारों के आंकड़ों के खिलाफ कहा है कि मरने वालों की संख्या डेढ़ करोड़ से ज्यादा थी. डब्ल्यूएचओ के अनुसार 1 जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2021 के बीच भारत में 47 लाख लोगों की मौत हो गयी. डब्ल्यूएचओ के आंकड़े सरकारी आंकड़ों की तुलना में दस गुना ज्यादा हैं. दुनिया में मरने वालों में भारत के एक तिहाई लोग महामारी के शिकार हुए.
डब्ल्यूएचओ ने इस आकलन के लिए "अतिरिक्त मृत्यु" तरीके का उपयोग किया गया है. इसका अर्थ है कि महामारी से पहले किसी क्षेत्र की मृत्यु दर क्या थी. यानी उस क्षेत्र में सामान्य रूप से कितने व्यक्तियों की मौत होती है और महामारी के बाद उस क्षेत्र में कितनी लोगों की मौत हुई.डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक के अनुसार ये आंकड़े न केवल महामारी के प्रभाव के बारे में बताते हैं बल्कि देशों को इससे सीख लेनी चाहिए कि वे अपने स्वास्थ्य तंत्र को बेहतर करें. संकट के समय में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं ही मानवता की रक्षा कर सकती हैं.
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों को भारत सरकार ने नकार दिया और उसे चुनौती देने का फैसला किया है. भारत ने डब्ल्यूएचओ के आंकड़े की पूरी प्रक्रिया और पद्धति को ही चुनौती दी है. आईसीएमआर के डीजी डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि भारत की आपत्तियों के बावजूद डब्ल्यूएचओ ने पुरानी तकनीक और मॉडल के जरिए जुटाए गए मौत के आंकड़े जारी कर किए हैं. भारत की चिंताओं और आपत्तियों पर सही तरीके से गौर नहीं किया गया है. इस बीच कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में कहा है ""कोविड महामारी के कारण 47 लाख भारतीयों की मौत हुई. 4.8 लाख नहीं जैसा कि सरकार ने दावा किया है. विज्ञान झूठ नहीं बोलता मोदी बोलते हैं. उन परिवारों का सम्मान करें जिन्होंने अपनों को खोया है. अनिवार्य रुप से 4 लाख मुआवजे के साथ उन परिवारों की मदद करें.
ये आंकड़ा दो साल में दुनिया भर में कोविड के कारण हुई मौतों की तुलना में 13 प्रतिशत ज़्यादा है. डब्ल्यूएचओ का मानना है कि कई देशों ने कोविड से मरने वालों की संख्या की कम गिनती की है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार सिर्फ़ 54 लाख मौतों को आधिकारिक रूप से दुनिया भर की सरकारों ने माना है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़े महामारी की त्रासदी से निपटने में सरकारों की नाकामयाबी साबित करते हैं. विकसित देश हों या फिर विकासशील या अविकसित सब ने न केवल आंकड़ों के साथ हेराफेरी की बल्कि महामारी की भयावहता से कारगर तरीके से नहीं निपटा. करोड़ों लोगों की मौत बताती है कि दुनिया के देशों के पास आपात स्वस्थ्य संकट से निपटने का हुनर नहीं है.
जिस तरह हेल्थ सेवाओं के निजीकरण पर जोर दिया गया है उसका नतीजा अविकसित और विकासशील देशों के नागरिकों को जान दे कर चुकानी पड़ी है. भारत में भी देखा गया कि दावों के विपरीत स्वास्थ्य प्रबंधन नाकाफी था. यहां तक कि वेंटिलेटर और आक्सीजन तक की कमी हुयी और मौतों में ज्यादातर लोग तो अस्पताल पहुचने के क्रम में या फिर आक्सीजन की कमी के कारण ही मर गए. बाद में सरकार ने दावा कर दिया कि देश में आक्सीजन की कोई कमी नहीं थी.
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों को चुनौती देना एक बात है, लेकिन लोगों की त्रासदियों की हकीकत इससे नहीं बदल जाएगी. देश का शायद ही कोई ऐसा नागरिक होगा जिसे मौत को लेकर दिए गए आंकड़ों से सहमति रही हो. उस दौर में महसूस किया गया कि शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति देश में अपवाद स्वरूप भी हो जिसका कोई परिचित या परिजन त्रासदी का शिकार नहीं हुआ हो. मुआवजों का विवाद तो अलग ही है.
अदालत के हस्तक्षेप के बाद मुआवजा देने के लिए सरकार बाध्य तो हुयी लेकिन अनेक राज्यों से जो रिपोर्ट आ रही है उसके अनुसार मुआवजा पाने के लिए लोगों को सरकारी दफ्तरों में दौड़ लगाने का सिलसिला थमा नहीं है. जिन बच्चों ने उस त्रासदी में मां और पिता दोनों को खोया उनके बारे में तो चर्चा करने से भी परहेज किया जा रहा है.भविष्य में किसी भी महामारी का मुकाबला करने और कम से कम नुकसान हो इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का कोई संकल्प तो अभी तक दिखा नहीं है और न ही
उस भयावह त्रासदी में मरे लोगों की सार्वजनिक स्मृति के लिए केंद्र या राज्य सरकार की कोई तैयारी है. दूसरी ओर उस भयावह दौर को तेजी से विस्मृत कर दिया गया, मानो देश में कोई ऐसा हादसा हुआ ही नहीं हो. गुजराती कवि पारूल ख्खकर की कोविड मौतों पर लिखी मार्मिक कविता ने समय की त्रासदी को उजागर इन पंक्तियों में ही कर दिया था :एक साथ सब मुर्दे बोले 'सब कुछ चंगा-चंगा'
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा
ख़त्म हुए श्मशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी
थके हमारे कंधे सारे, आंखें रह गयी कोरी
दर-दर जाकर यमदूत खेले
मौत का नाच बेढंगा
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा""

Rani Sahu
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