सम्पादकीय

41 साल बाद

Rani Sahu
5 Aug 2021 6:43 PM GMT
41 साल बाद
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भारत के लिए अविस्मरणीय पल है। गुरुवार को जहां हॉकी खिलाड़ियों की कम से कम पांच पीढ़ियों के बाद भारत को ओलंपिक में कोई पदक हासिल हुआ है

भारत के लिए अविस्मरणीय पल है। गुरुवार को जहां हॉकी खिलाड़ियों की कम से कम पांच पीढ़ियों के बाद भारत को ओलंपिक में कोई पदक हासिल हुआ है, तो वहीं भारतीय पहलवान रवि दहिया को कुश्ती में मिला रजत पदक सोने पर सुहागे की तरह है। सबसे खास बात यह है कि जर्मनी के खिलाफ 3-1 से पिछड़ने के बाद भारतीय टीम 5-4 से यह मुकाबला जीती है। उन सात मिनटों को हमेशा याद किया जाएगा, जब भारत ने चार गोल करके मैच को अपने कब्जे में कर लिया। देश जीत का जश्न मना रहा है और कप्तान मनप्रीत सिंह के साथ ही पूरी हॉकी टीम पर सौगातों की बारिश शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री न केवल मैच देख रहे थे, बल्कि उन्होंने मैच जीतने के बाद फोन करके पूरी हॉकी टीम को बधाई दी है। 41 साल और आठ प्रधानमंत्रियों के छोटे-बड़े कार्यकाल के बाद मिली स्वर्णिम जीत के महत्व को प्रधानमंत्री के शब्दों से भी समझा जा सकता है। उन्होंने कहा है, 'टोक्यो में हॉकी टीम की शानदार जीत पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है। यह नया भारत है, आत्मविश्वास से भरा भारत है।' वाकई इस जीत से देश में खेल जगत में आत्मविश्वास बढ़ेगा। युवाओं में देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना का संचार होगा। 1980 के मास्को ओलंपिक में स्वर्ण जीतने के बाद भारतीय टीम कभी ओलंपिक में पांचवें स्थान से ऊपर नहीं जा पाई थी। सातवें, आठवें और 12वें स्थान से भी उसे संतोष करना पड़ता था। टोक्यो ओलंपिक में कांस्य जीतने के बाद भारतीय गोलकीपर पी आर श्रीजेश का गोलपोस्ट पर चढ़ बैठना वह जरूरी जयघोष है, जिसकी भारत को जरूरत है। साल 2012 के लंदन ओलंपिक में भारतीय टीम पांच में से एक भी मुकाबला नहीं जीत पाई थी, तब श्रीजेश और मनप्रीत जैसे खिलाड़ियों को हर जगह सिर झुकाए रहना पड़ता था और लोग भारतीय खिलाड़ियों पर हंसते थे, उन तमाम हंसने वालों को गुरुवार को जवाब मिल गया, श्रीजेश ने बिल्कुल सही कहा कि मुझे मुस्कराने दीजिए।

भारतीय हॉकी एक लंबे संघर्ष से निकलकर आई है। इस टीम से दो-तीन साल पहले किसी को कोई उम्मीद नहीं थी, तभी तो कोई प्रायोजक साथ आने को तैयार नहीं था। ओडिशा सरकार और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बधाई के वास्तविक पात्र हैं कि साल 2018 में उन्होंने भारतीय हॉकी का हाथ थामा। नतीजा आज सामने है, यहां से भारतीय हॉकी में नए युग का आगाज हो सकता है। आज अगर नवीन पटनायक को हॉकी में मिली जीत का नायक बताया जा रहा है, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। दूसरी राज्य सरकारों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। खेलों को केवल निजी क्षेत्र या निजी प्रायोजकों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। जिन खेलों में पदक जीतने की ज्यादा संभावना है, या भरपूर प्रतिभाएं हैं, उन खेलों में राज्य सरकारों को भी प्रायोजक बनने के लिए आगे आना चाहिए। खेलों के लिए उतना नहीं किया जा रहा है, जितना दूसरे देश कर रहे हैं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि हम स्वर्ण की दौड़ में उस बेल्जियम से हार गए थे, जिसकी आबादी डेढ़ करोड़ भी नहीं है। छोटे-छोटे देशों ने खेलों पर किस तरह से तन-मन-धन का निवेश किया है, भारत के लिए इसे देखने-परखने का माकूल मौसम है। भारतीय हॉकी में आई नई चमक बेकार नहीं जानी चाहिए। बेशक, आज कांस्य पदक हाथ लगा है, कल स्वर्ण बरसेगा।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

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