सम्पादकीय

370, 35-ए की वापसी की मांग करने वाले नेता कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत की बात किस मुंह से कर सकते हैं

Gulabi
16 Oct 2020 2:54 AM GMT
370, 35-ए की वापसी की मांग करने वाले नेता कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत की बात किस मुंह से कर सकते हैं
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जम्मू-कश्मीर में चीन की मदद से अनुच्छेद 370 की वापसी का शरारत भरा सपना देखने वाले नेशनल कांफ्रेंस
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जम्मू-कश्मीर में चीन की मदद से अनुच्छेद 370 की वापसी का शरारत भरा सपना देखने वाले नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला किस तरह कलह की राजनीति करने पर आमादा हैं, इसका पता उनके साथ-साथ कुछ अन्य कश्मीरी नेताओं की ओर से तथाकथित गुपकार घोषणा पत्र का बेसुरा राग अलापने से चलता है। नेशनल कांफ्रेस और पीडीपी के अलावा तीन अन्य राजनीतिक दलों के हस्ताक्षर वाले इस घोषणा पत्र का उद्देश्य राज्य में पांच अगस्त 2019 से पहले वाली स्थिति बहाल करना है। इसका मतलब है कि ये दल कश्मीर के कमजोर और पिछड़े तबकों को उनके अधिकारों से वंचित करने वाले 35-ए के भी समर्थक हैं और संसद से पारित कानूनों को राज्य में प्रभावी न होने देने वाले 370 के भी। आखिर भेदभाव को खुला संरक्षण देने वाले इन अनुच्छेदों की वापसी की मांग करने वाले कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत की बात किस मुंह से कर सकते हैं? उनकी ओर से कुछ भी कहा जाए, सच यही है कि वे गुपकार घोषणा पत्र के बहाने चीन और पाकिस्तान के खतरनाक इरादों को बल ही प्रदान कर रहे हैं? इससे खराब बात और कोई नहीं हो सकती कि जो चीन लद्दाख और अरुणाचल को भारत का हिस्सा मानने से इन्कार कर रहा है, उसे फारूक अब्दुल्ला कश्मीरियों के मददगार के रूप में देख रहे हैं।

फारूक अब्दुल्ला ने चीन के घोर दमनकारी और विस्तारवादी रवैये से परिचित होते हुए भी जिस तरह उससे मदद की आस लगाई, वह राष्ट्रीय हितों पर आघात के अलावा और कुछ नहीं। उन्होंने अपने आपत्तिजनक बयान से राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही चीन एवं पाकिस्तान जैसे भारत के बैरी देशों का दुस्साहस बढ़ाने का काम किया है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि चीन ने लद्दाख और अरुणाचल को लेकर जो बयान दिया, उसके पीछे कहीं न कहीं फारूक अब्दुल्ला जैसा नेता भी जिम्मेदार हैं।

यह ठीक है कि भारत ने चीन को दो टूक जवाब दे दिया, लेकिन इसी के साथ फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं को भी जवाब देने की जरूरत है, जो जिस थाली में खाते हैं उसमें ही छेद करने वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। वह अपनी हरकत से देश के प्रति अपनी निष्ठा को खुद ही संदेह के दायरे में लाने का काम कर रहे हैं। कुछ इसी तरह का रवैया पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती का भी है। यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि कश्मीर की जनता तक यह संदेश पहुंचाने में देर न की जाए कि फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे उन्हें लूटने वाले नेता उनके हितों को फिर से दांव पर लगाने का काम कर रहे हैं।

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