सम्पादकीय

26 जनवरी 2022 गणतंत्र दिवस विशेष: स्मृतियों को सहेजने की नई शुरुआत

Neha Dani
27 Jan 2022 1:55 AM GMT
26 जनवरी 2022 गणतंत्र दिवस विशेष: स्मृतियों को सहेजने की नई शुरुआत
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गणतंत्र का ये वर्षगांठ दिवस कुछ खास है। देश स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव को मना रहा है। इस बहाने स्वातंत्र्य समर के वास्तविक नायकों से पुनः रूबरू भी हो रहा है। इस अमृत महोत्सव को लेकर वर्तमान सरकार ने कई लोकप्रिय पहल की है। हजार वर्ष के संघर्ष और तदोपरांत मिली इस स्वाधीनता के हर वास्तविक सेनानी को सम्मान देने प्रयास जारी है।

इधर, भारत विभाजन की विभीषिका को भी याद रखने की पहल हुई है। पिछले वर्ष स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा की थी। अब देश प्रतिवर्ष भारत विभाजन की तिथि 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाएगा।
ये हमें विभाजन, विस्थापन, मजहबी मतांध सोच और अखंड भारत की संकल्पनाओं को याद दिलाता रहेगा। वहीं इस बदलते दौर में देश के वास्तविक नायकों को याद करने का भी चलन उपक्रम प्रारंभ हुआ है। समाज जागरण के प्रयासों के नाते बीआर अंबेडकर से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों का निर्माण विकास इसी दिशा में एक प्रयास है।
वहीं सरकार द्वारा सदभाव और राष्ट्रीय एकात्मता भाव के निर्माण हेतु कई दिवस की घोषणा भी हुई है। स्वामी विवेकानंद जयंती अब राष्ट्रीय युवा दिवस तो भगवान बिरसा मुंडा जन्म दिवस अब जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
दिवस और उनकी स्मृतियां
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने वीर बालक दिवस की घोषणा की है। अब प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को सिख पंथ गुरु गोविंद सिंह के बलिदानी पुत्रों की स्मृति इस नाम से मनाई जाएगी। वहीं अब नेताजी सुभाषचंद्र बोस को लेकर की गई पहल भी काबिले तारीफ है। पहले सरकार द्वारा सन् 2018 मे सुभाष बाबू से संबंधित वर्गीकृत दस्तावेज़ सार्वजनिक किए गए। फिर गणतंत्र दिवस उत्सव को कही अधिक लोकप्रिय और अर्थपूर्ण बनाने की पहल हुई है।
अब गणतंत्र दिवस उत्सव नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती से शुरू होकर महात्मा गांधी के निर्वाण दिवस तक मनाया जाएगा। देश प्रतिवर्ष 23 जनवरी से 30 जनवरी तक अपना पावन गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाएगा।
सरकार ने नेताजी सुभाष बोस जयंती को पराक्रम दिवस के नाम से मनाए जाने का निर्णय लिया है। वास्तव में ये सब प्रयास हमारे इतिहास बोध के लिए आवश्यक है। इसी बहाने हम अपने इतिहास के महत्वपूर्ण घटना और नायकों से दो चार हो रहे है।
गणतंत्र दिवस के तत्काल पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने इंडिया गेट पर लगे ऐतिहासिक छतरी मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आदमकद प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया है। यह छतरी इसलिए भी ऐतिहासिक है कि यह आधुनिक दिल्ली के निर्माण की साक्षी है। तब यहां औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश साम्राज्य अधिपति का स्वागत हुआ था। वहीं यह छतरी स्मृति स्वरूप बनाई गई थी, जिसमें वर्षों बरस तक हुकूमते ब्रितानिया के अधिपति किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति लगी थी। यह भारतीयों के शोषण उत्पीड़न और गुलामी की प्रतीक है। अब यहां सरकार की पहल से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण नायक की प्रतिमा लगेगी।
इस अवसर प्रधानमंत्री ने नेताजी के योगदानों की चर्चा करते हुए एक होलोग्राम स्टेच्यू प्रतिमा का उदघाटन भी किया है। वहीं अपने वक्तव्य में नेताजी से जुड़े पहल प्रयासों की भी जानकारी दी। सरकार ने पहले अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के एक द्वीप का नाम नेताजी सुभाष बोस के नाम पर रखा था। वहीं अब अंडमान मे नेताजी और आजाद हिंद फौज से जुड़े एक स्मारक का निर्माण जोरो पर है।
अंडमान निकोबार द्वीपसमूह देश का वो हिस्सा है जहां दिल्ली से पहले राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। तब सुभाष बाबू के नेतृत्व वाली गठित सरकार यहाँ भी प्रभावी थी। आजाद हिंदुस्तान के पहले अंतरिम सरकार का गठन 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में तिरंगा फहराने के साथ घोषणा की गई थी। इस हुकूमत को दुनिया के दर्जन भर के करीब देशों ने मान्यता दी थी। इनमें तत्कालीन वैश्विक शक्ति जर्मनी जापान इटली से लेकर आस पड़ोस के थाईलैंड फिलीपींस और कोरिया भी थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत सहायक शक्तियों की पराजय हुई। वहीं अंडमान निकोबार द्वीपसमूह से लेकर नागालैंड के कोहिमा मोर्चे तक आजाद हिंद फौज आजाद हिंद फौज को पीछे हटना पड़ा। इस बीच सुभाष बाबू का लापता होना और अंग्रेजों का इन स्थानों पर पुनः नियंत्रण एक नई स्थिति ले कर आया। आजाद हिंद फौज के सेनानीयों को कैद कर दिल्ली लाया गया।
इसमें आइएनए के तीन प्रमुख कमांडर कर्नल सहगल, ढिल्लन और जनरल शाहनवाज सहित हजारों सैनिक थे।यही लाल किले के ऐतिहासिक परिसर में इनके ऊपर देशद्रोह का अभियोग लगाया गया।वही इस सुनवाई और कैद के दौरान इनके साथ अमानवीय व्यवहार किये गए। वर्तमान की मोदी सरकार अब इसी परिसर में आजाद हिंद सरकार शहीदों स्मारक और स्तंभ का निर्माण करा रही है। बात अगर ऐसे प्रयासों के शुरुआत की करे तो निश्चित ही यह प्रधानमंत्री मोदी के स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के साकार होने से शुरु हुआ है।
आधुनिक भारत के एकीकरण पुरोधा सरकार पटेल को ये एक सच्ची श्रद्धांजलि थी। अब जब स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को समर्पित संग्रहालय देश भर में बन रहे है, जिसकी शुरुआत पिछले वर्ष मणिपुर में रानी गाइदिन्ल्यू के जन्मस्थान पर बनने वाले रानी गाइदिन्ल्यू आदिवासी संग्रहालय से हो चुकी है।
26 जनवरी रानी गाइदिन्ल्यू का जन्म दिवस भी है। वे नागा जनजाति की आध्यात्मिक नेतृत्वकर्ता और प्रखर स्वतंत्रता सेनानी रही है।ऐसे में वर्तमान सरकार कुछ विशेष घोषणा करे तो कोई आश्चर्य नही होगा। वैसे भी रानी गाइदिन्ल्यू नागालैंड, बर्मा से लेकर मणिपुर के पहाड़ों तक भारत भक्ति का बयार बहाने को पर्याप्त है। वही इन सब के बीच सर्वाधिक आवश्यक है की देश को वास्तविक नायक और उनके योगदान से अवगत कराया जाए।
अब दस्तावेजों में दबे छुपे वास्तविकताओ को सामने लाने की आवश्यकता है। तभी देश का वास्तविक इतिहास मूर्त रूप ले पायेगा। अब जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक हुई है तो उनके अदम्य साहस और सोच की कई कहानी हमारे सामने है। नेताजी सुभाष बोस की एक ऐसी ही कथा का जिक्र प्रख्यात साहित्यकार और प्रखर स्वतंत्रता सेनानी रामवृक्ष बेनीपुरी करते है।
वे अपनी चर्चित रचना मुझे याद है में करते है। बेनीपुरी कहते हैं कि-
त्रिपुरी कांग्रेस के बाद परिस्थितियां बिलकुल बदल गई थी, जिस कांग्रेस को एक नया कलेवर तेवर सुभाष बाबू ने दिया था वही अब उनके लिए नफ़रत चरम पर थी।ऐसे में नेताजी जब पटना आये तो उनकी सभाओं को रोका गया। उनके विरुद्ध घृणित क्षेत्रवादी और भाषावाद के आरोप जड़े गए। कांग्रेस कार्यालय सदाकत आश्रम में तो उनपे चप्पल तक उछाले गए।
इसका जिक्र तत्कालीन पटना कांग्रेस अध्यक्ष बेनीपुरी मर्माहत मन से करते है। इसका जिक्र वो अपने क्रांतिकारी समाचार पत्र जनता में भी करते है। इस घटना से मर्माहत बेनीपुरी और दंडी सन्यासी सहजानंद ने सुभाष बाबू की करीब अस्सी सभाएं बिहार भर में कराई थी, जिसकी खबरें बिहार के तत्कालीन समाचारपत्रों की सुर्खियाँ बनी थी।तब जहानाबाद जैसे छोटे केंद्र से प्रकाशित बागी जैसे पत्रों ने भी इसको छापा था।
वहीं नेताजी और दंडी सन्यासी सहजानंद ने मिलकर मिलिशिया के गठन की योजना बनाई थी।किसान मजदूर और युवाओं के बाहुल्यता वाला यह सैन्य दस्ता युद्ध छिड़ते ही जगह जगह विद्रोह कर देता। ऐसे में धुरी राष्ट्र से युद्धरत हुकूमते ब्रितानिया पर सुभाष बाबू दो तरफ से हमला करते। युद्ध के मोर्चे पर आजाद हिंद फौज तो भारत के गाँव कस्बों में उनकी मिलिशिया इनके पांव उखाड़ती।
इसका जिक्र उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर लेखक राघव शरण शर्मा करते है। इन्होंने अपनी पुस्तक इंडियाज़ वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस थ्रू किसान डाक्यूमेंट्स मे किया है। उन्होंने इसके तीन खंडों में इससे संबंधित कई दृष्टांतों को सविस्तार रखा है। अब जब नेताजी से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक हुए हैं तो देश को ऐसे हर हकीकत से रूबरू होना चाहिए।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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