सम्पादकीय

अमरीका में 254, भारत में पौने छह लाख वीआईपी

Rani Sahu
7 Dec 2021 6:59 PM GMT
अमरीका में 254, भारत में पौने छह लाख वीआईपी
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भारत व अमरीका दोनों ही अंगे्रजों के गुलाम रहे हैं

भारत व अमरीका दोनों ही अंगे्रजों के गुलाम रहे हैं। 4 जुलाई 1776 को अमरीका ने गुलामी की बेडिय़ों से मुक्ति पाई। भारत ने दो सौ साल बाद 15 अगस्त 1947 को आजादी हासिल की। 17 सितंबर 1787 को अमरीका ने अपना संविधान लागू किया। अमरीका ने 334 साल में महज 27 संशोधन किए। तुलनात्मक अध्ययन करें तो भारत ने 71 साल में ही एक सौ से ज्यादा यानी 127 संशोधन कर डाले हैं। आजादी दिलाने में जार्ज वाशिंगटन की बहुत बड़ी भूमिका रही है। उन्हीं के नाम पर अमरीका ने अपनी राजधानी का नाम वाशिंगटन रखा है। वे अमरीका के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए। भारत दुनिया का सबसे बड़ा व अमरीका सबसे पुराना लोकतंत्र है। भारत ने अमरीका से मौलिक अधिकार, फ्रांस से समानता का अधिकार लिया है। दुनिया की एकमात्र विश्व शक्ति अमरीका में केवल 254 वीआईपी हैं। अमरीका का क्षेत्रफल भारत से 3 गुणा ज्यादा व आबादी 4 गुणा कम है।

भारत में 5,79,000 से ज्यादा अति महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं। अमरीका से 2300 गुणा ज्यादा वीआईपी हैं। चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीआईपी कल्चर पर प्रहार किया था। उसके बाद थोड़ी कमी आ रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के 5 स्थायी यानी सबसे शक्तिशाली देशों में भी वीआईपी की तादाद मामूली ही है। भारत की तुलना में जमीन-आसमान का अंतर है। अमरीका की आबादी 32.97 करोड़ है तो भारत की 130 करोड़। चीन की आबादी 145 करोड़ है व वीआईपी महज 438 हैं। चीन का क्षेत्रफल भारत से 3 गुणा बड़ा है। शीत युद्ध के दौरान दुनिया दो धु्रवों अमरीका व रूस में बंटी थी। 1990 के बाद रूस के एक दर्जन से ज्यादा टुकड़े हो गए। वहां की आबादी 14 करोड़ है व क्षेत्रफल भारत से 5 गुणा ज्यादा है। अति महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की संख्या केवल 312 है। फ्रांस की जनसंख्या पौने सात करोड़ यानी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व चेन्नई से भी कम है। क्षेत्रफल भारत से 7 गुणा ज्यादा है व वीआईपी कुल 109 हैं। हम पर 200 साल राज करने वाले अंग्रेजों की आबादी महज 7 करोड़ है। वहां पर महज 84 वीआईपी हैं।
जापान की आबादी करीब पौने 13 करोड़ है व वीआईपी महज 105 हैं। करीब साढ़े 8 करोड़ आबादी वाले जर्मनी में 142 वीआईपी हैं। सवा 5 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले दक्षिण कोरिया में 282 वीआईपी हैं। भारत में हर साल एक आस्ट्रेलिया पैदा होता है। वहां की आबादी मुंबई के बराबर यानी 2.66 करोड़ है। वहां केवल 205 अति महत्त्वपूर्ण लोग हैं। देश की संसद व विधानसभाओं में आज आपराधिक लोग पहुंच रहे हैं। वे वीआईपी बनकर फिर देश पर राज करते हैं। क्या कर्णधार ऐसे होने चाहिए। एक वीआईपी के लिए 3 पुलिस जवान बतौर अंगरक्षक तैनात होते हैं। देश में आज 667 की आबादी पर औसतन एक जवान है। जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था के तहत वीआईपी के आसपास 20-30 जवान व जेड श्रेणी में 15-18 कमांडो तैनात रहते हैं। वाई प्लस श्रेणी में 8-12 व वाई श्रेणी में 6-10 कमांडो कार्यरत होते हैं। अमरीका में बराक ओबामा राष्ट्रपति पद त्यागने के बाद एक कंपनी में नौकरी करते हैं। डेविड कैमरून ब्रिटेन में प्रधानमंत्री पद त्यागते ही 10 डाउनिंग स्ट्रीट से झट से बच्चों व पत्नी संग चले गए, पता ही नहीं चला। हमारे यहां मंत्री व सांसद कई-कई साल आवास ही नहीं छोड़ते हैं।
कुछ साल पहले उरुग्वे के राष्ट्रपति होजे मुहिका ने पद छोडऩे के बाद पेंशन लेने से भी इनकार कर दिया था। वे दुनिया के सबसे गरीब पूर्व राष्ट्रपतियों में शुमार हुए। उनकी पत्नी लुसिया तोपालास्की भी उपराष्ट्रपति पद पर सुशोभित हुईं। 1992-93 के दौरान जबकि अमरीका की विदेश उपमंत्री व पाकिस्तान समर्थक राबिन राफेल थी, तो उन्होंने हुर्रियत कांफे्रस को कुछ ज्यादा ही तवज्जो दी। अलगाववादी नेताओं सैयद अली शाह गिलानी, यासिन मलिक व अन्य को हवाई जहाज से दिल्ली लाया जाता व पांच सितारा होटलों में ठहरने की व्यवस्था होती। मानो उनके पास जेएंडके समस्या का हल जेब में हो। हर साल उनकी सुरक्षा व सुविधाओं पर एक करोड़ ज्यादा खर्च आता था। राज्यसभा में मानसून सत्र के दौरान आपत्तिजनक व अति अशोभनीय आचरण करने वाले विभिन्न दलों के 12 सांसदों को शीतकालील सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है। क्या ऐसे माननियों की आरती उतारी जानी चाहिए। क्या वे संसद, संविधान व देश से बड़े हैं। उनकी तो सदस्यता ही खत्म कर देनी चाहिए। संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर 2.5 लाख यानी एक घंटे में डेढ़ करोड़ देशवासियों की खून-पसीने की कमाई से खर्च होते हैं। हर साल एक सांसद पर 72 लाख खर्च होते हैं। अब आगे से हर साल सांसद को सांसद निधि के तहत 5 करोड़ मिलेंगे। मानसून सत्र के दौरान इतना ज्यादा शोर-शराबा हुआ था कि 216 करोड़ का नुकसान हो गया था। माना माननीय वीआईपी हैं, पर देश पर बोझ क्यों बन रहे हैं। सुझाव यह है कि वीआईपी पर जो खर्चा होता है, उसे उन्हीं से वसूल किया जाना चाहिए।
बलराज सकलानी
लेखक सरकाघाट से हैं
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