सम्पादकीय

देशभर में चल रहे 24 फर्जी विश्वविद्याल, भंवर में फंसता जा रहा हजारों छात्रों का भविष्य

Tara Tandi
5 July 2021 6:16 AM GMT
देशभर में चल रहे 24 फर्जी विश्वविद्याल, भंवर में फंसता जा रहा हजारों छात्रों का भविष्य
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | [रोहित कौशिक] पिछले दिनों विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और शिक्षा सचिवों को फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची भेजते हुए उन पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। पूरे देश में 24 फर्जी विश्वविद्यालय चल रहे हैं। इन विश्वविद्यालयों की डिग्री वैध नहीं है, लेकिन सही जानकारी के अभाव में हजारों छात्र इनके भंवर में फंस जाते हैं। ये विश्वविद्यालय हाल में पैदा नहीं हुए हैं, बल्कि कई वर्षो से चल रहे हैं। सवाल यह है कि कई वर्षो से चल रहे इन फर्जी विश्वविद्यालयों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है? इनके संचालकों की धरपकड़ कर इन अवैध विश्वविद्यालयों को बंद क्यों नहीं कराया जाता? जानकारी होते हुए भी ऐसे विश्वविद्यालयों को कार्य करते देना और उनके संचालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करना तो और भी बड़ा अपराध है।

कुछ वर्ष पहले देश में शिक्षण संस्थानों को अवैध रूप से मान्यता देने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में एआइसीटीई के उपनिदेशक को गिरफ्तार किया गया था। स्पष्ट है कि शिक्षा जगत में भ्रष्टाचार को बढ़ाने में इस क्षेत्र से जुड़े कुछ अधिकारी और विभिन्न समितियों में स्थान प्राप्त कुछ शिक्षक भी अपनी भूमिका निभाते हैं। दरअसल कुछ निजी शिक्षण संस्थानों के मालिक प्रभावशाली लोग होते हैं इसलिए प्रशासन की ओर से इस मामले में जानबूझकर चुप्पी साध ली जाती है। ऐसे मामलों में जितने दोषी विश्वविद्यालयों के संचालक हैं उतने ही दोषी सरकार और उससे जुड़े अधिकारी भी हैं।
देखा जाए तो आज शिक्षा तंत्र में अनेक विसंगतियों ने जन्म ले लिया है। एक ओर शिक्षा के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की लालसा शिक्षा को व्यापार का रूप दे रही है तो दूसरी ओर शिक्षा जगत से जुड़े माफिया ने शिक्षा को एक मजाक बनाकर रख दिया है। अंग्रेजों ने भारत में जिस शिक्षा प्रणाली को प्रारंभ किया था उसके पीछे उनकी अपनी आवश्यकताएं थीं। आजादी के बाद कुछ हद तक इस शिक्षा नीति की कमजोरी को दूर करने के प्रयास किए गए, लेकिन ये प्रयास पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए। एक बार फिर शिक्षा नीति में परिवर्तन की कोशिशें हो रही हैं। सवाल यह है कि क्या हमारा मुख्य उद्देश्य शिक्षा नीति में परिवर्तन करना है या फिर इस परिवर्तन के माध्यम से शिक्षा की कमजोरियों को दूर करना है? हमारे नीति-निर्माताओं की नीतियों एवं क्रियाकलापों को देखकर तो ऐसा लगता है कि उनका मुख्य उद्देश्य केवल शिक्षा नीति में परिवर्तन करना भर है।अब समय आ गया है कि सरकारें निजीकरण की आड़ में पनपे संदिग्ध विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों के क्रियाकलापों पर गंभीरता से ध्यान दें, ताकि हजारों विद्याíथयों के भविष्य को अंधकारमय होने से बचाए जा सके।


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