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उभरते स्टॉक मार्केट का 2010 का सबसे बुरा दशक बीतने के बाद बतौर समूह
रुचिर शर्मा का कॉलम:
उभरते स्टॉक मार्केट का 2010 का सबसे बुरा दशक बीतने के बाद बतौर समूह, बाजारों का 2021 में भी कमजोर प्रदर्शन जारी है, जिसने इस विशाल एसेट वर्ग को और भी अलग-थलग कर दिया है। इसलिए यह कई लोगों के लिए अचंभा हो सकता है कि 2021 में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले टॉप 10 में से आठ और टॉप 20 में से 13 मार्केट विकासशील दुनिया से हैं। ये कैसे सही लग सकता है? चीन ने उभरते बाजार सूचकांक को निराश किया।
बड़ी टेक कंपनियों पर कार्रवाई व आर्थिक आत्मनिर्भरता के नाम पर खुद को अलग करने से चीनी शेयर्स में गिरावट आई। पिछले साल चीन, दुनिया का दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला मार्केट था। वह सिर्फ पाकिस्तान से आगे था। हर क्षेत्र, चाहे वह विकसित हो या विकासशील, अमेरिका से पीछे रह गया, क्योंकि निवेशकों ने अमेरिकी टेक दिग्गजों में अपना निवेश जारी रखा।
लेकिन चीन को छोड़कर, उभरते बाजार अमेरिका से बाहर की दुनिया की ही तरह 10% रिटर्न के साथ बढ़े। यह काफी हद तक वापसी का संकेत हो सकता है। पैसा अमूमन तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की ओर बहता है, खासतौर पर जो भीड़ से हटकर कुछ करते हैं। उभरती अर्थव्यवस्थाएं 2009 में अपने उछाल के चरम पर विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में 5% से अधिक तेजी से बढ़ रही थीं। पर 2020 के आते-आते वो बढ़त कम होकर एक अंक ही बची, जो उभरते शेयर बाजारों के लिए निराशाजनक दशक की व्याख्या को अच्छी तरह साबित करता है।
पिछले साल सामान की बढ़ती कीमतों, कुछ देशों की उत्पादन क्षमता, डिजिटल अर्थव्यवस्था में जबरदस्त तेजी और उभरती दुनिया के नेताओं के वित्तीय रूढ़िवाद की वजह से चीन को छोड़कर बाकी उभरते बाजारों में वापसी के लक्षण दिखने लगे थे। 2021 में सामान की कीमतों में करीब आधी सदी की सर्वाधिक वार्षिक तेजी देखी गई, जिससे इसके निर्यातकों को बढ़ावा मिला। दुनिया के टॉप 20 बाजारों में ज्यादातर तेल शक्तियां थीं, जिसमें सऊदी अरब नौवें क्रम पर और रूस 19वें क्रम पर था, जो सालभर 20 फीसदी ऊपर रहे।
हालांकि, दुनिया भर में विनिर्माण में गिरावट है, चूंकि फैक्ट्रीज़ व्यापार खर्च कम करने की तलाश में चीन छोड़कर जा रही हैं, ऐसे में कई उभरते देशों में विकास का एक महत्वपूर्ण जरिया है। साथ ही 2021 के प्रमुख बाजारों में विनिर्माण ताकतें रहीं, इसकी अगुवाई दूसरे स्थान पर रहे चेक रिपब्लिक, 15वें पर रहे वियतनाम और 18वें पर रहे मैक्सिको ने की। 2010 के दशक में गैरवैश्वीकरण के एक नए युग में लोगों, धन व व्यापार के धीमे प्रवाह के साथ डेटा का विस्फोटक प्रवाह जारी रहा, जो उभरते देशों में सर्वाधिक तेजी से बढ़ रहा है।
आज जारी डिजिटल क्रांति से जिन टॉप 20 शेयर बाजाराें को बढ़ावा मिला, उनमें ताइवान 13वें और भारत 14वें स्थान पर रहा। वापसी के इन संकेतों के बावजूद अनेक टिप्पणीकारों में डर है। वो डर ये है कि केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक प्रोत्साहन की गति को धीमा करने की योजना से उभरते बाजारों सहित तमाम बाजारों में जोखिम लेने से पीछे हटने की शुरुआत हो सकती है, जैसा कि 2013 में हुआ था, जब सरकार ने नकदी की कमी दूर करने के लिए उठाए थे। लेकिन, अब बड़े मतभेद बने हुए हैं।
वैश्विक निवेशकों ने 2013 के बाद से अधिकतर सालों में उभरते बाजारों से पैसा निकाला है। ठीक इसी अवधि में अधिकतर बड़े उभरते बाजार वित्तीय रूप से और अधिक स्थिर हुए हैं। करेंसी अधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य वाली हो गई हैं। विदेशी मुद्रा भंडार अपेक्षाकृत रूप से बढ़े हैं। अधिकतर बड़े उभरते देशों ने विदेश से भारी ऋण लेकर आधारभूत जोखिम से बचने की कोशिश की है। किसी देश को अपनी खरीद के जरूरी कितने कर्ज की जरूरत है, यह इंगित करने वाला चालू खाता बैलेंस घाटे से सरप्लस में बदल गया।
उभरते बाजारों के उतार-चढ़ाव की बात अब बढ़ते औसत ऋण स्तर पर केंद्रित हो गई है, लेकिन ये औसत चीन द्वारा तोड़-मरोड़कर पेश करने से सच्चाई को लेकर एकबार फिर पक्षपाती हो गए हैं। वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान उभरती दुनिया को जाने वाले ऋण का 70 फीसदी अकेले चीन ने ले लिया और यह हिस्सा महामारी के दौरान 80 फीसदी से अधिक हो गया है। अधिकांश बड़े उभरते देशों में घरों और कॉरपोरेशनों ने शायद ही कर्ज लिया है और सरकारों ने भी चीन में अपने समकक्ष की तुलना में नाटकीय रूप से कम कर्ज लिया है।
2019 से चीन में सरकार, कॉरपोरेशनों और घरों का कुल कर्ज जीडीपी के 24 फीसदी से अधिक है, और भारत, इंडोनेशिया, मेक्सिको, मिस्र और दक्षिण अफ्रीका में वृद्धि का दो से चार गुना है। वैश्विक मीडिया तुर्की जैसे गड़बड़ी वाले मामलों पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन बाजार अनेक प्रमुख उभरते देशों में सापेक्ष वित्तीय स्थिरता के लिए व्यापक कदमों को महसूस कर रहा है।
हालांकि, अर्थशास्त्री अक्सर बाजार से एक कदम पीछे होते हैं, वे भी उम्मीद करते हैं कि उभरते हुए देश आने वाले वर्षों में विकसित देशों पर अपनी विकास बढ़त को फिर से स्थापित करना शुरू कर देंगे। अगर विनिर्माण, डेटा प्रवाह और आर्थिक सुधार को संचालित करने वाले आधारभूत कारक कायम रहते हैं तो 2021 को उभरते बाजारों की वापसी की शुरुआत के साल के रूप में याद किया जा सकता है, चाहे अभी इसे व्यापक स्तर पर न पहचाना गया हो।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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