सम्पादकीय

केरल में 5 वें दिन लगातार 20 हजार नए कोरोना केस, कोरोना रोकने का केरल मॉडल कहां फेल हुआ?

Tara Tandi
1 Aug 2021 11:07 AM GMT
केरल में 5 वें दिन लगातार 20 हजार नए कोरोना केस, कोरोना रोकने का केरल मॉडल कहां फेल हुआ?
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कोरोनावायरस की पहली लहर के दौरान जिस तरह से केरल ने अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर ढंग से इस महामारी को अपने राज्य में रोका था

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | इजी संयम श्रीवास्तव| कोरोनावायरस (Corona Virus) की पहली लहर के दौरान जिस तरह से केरल (Kerala) ने अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर ढंग से इस महामारी को अपने राज्य में रोका था, उसकी तारीफ पूरे देश में हुई थी. लेकिन अब जब कोरोना की दूसरी लहर देश के अन्य राज्यों में कमजोर हो रही है, तो वहीं केरल में इस वक्त देश के कुल मामलों के 37.1 फ़ीसदी मामले सामने आ रहे हैं. इस समय केरल में 1,54,000 कोरोनावायरस के सक्रिय मामले हैं, जबकि 31 जुलाई को राज्य में 20624 कोरोना के नए मामले सामने आए. केरल में औसत पॉजिटिविटी दर (Positivity Rate) 12.93 फ़ीसदी है, जबकि देश में यह 3 फ़ीसदी है. यानि केरल में संक्रमण की दर देश से कई गुना ज्यादा है. बढ़ते कोरोनावायरस को देखते हुए केरल सरकार ने 31 जुलाई से 1 अगस्त तक लॉकडाउन की भी घोषणा की है.

लेकिन सवाल उठता है कि जिस राज्य के मॉडल की तारीफ कोरोना की पहली लहर में इतनी ज्यादा हो रही थी, वह दूसरी लहर में कहां पर नाकाम हो गई कि केरल इस वक्त देश में कोरोना का गढ़ बन गया है. दरअसल आईसीएमआर (ICMR) द्वारा कराए गए नए सीरो सर्वे (Siro Survey) में पाया गया है कि केरल में करीब 42.7 फ़ीसदी लोगों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी (Antibody) बन गई है. जबकि अगर देश के आंकड़ों को देखें तो देश में लगभग 67 फ़ीसदी की आबादी में कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो गई है.

केरल में जिस तरह से कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं, उसे देखकर अब सवाल उठने लगा है कि क्या देश में कोरोना की तीसरी लहर केरल से ही सामने आएगी और आखिर इसके क्या कारण है कि केरल में इतनी तेजी से कोरोना अपने पांव पसार रहा है.

केरल में क्यों बढ़ रहे हैं तेजी से कोरोना के मामले

जानकारों की मानें तो केरल में कोरोना के बढ़ते संक्रमण दर की सबसे बड़ी वजह है, वहां के लोगों में एंटीबॉडी का स्तर कम होना. जहां देश में 67 फ़ीसदी लोगों के शरीर में एंटीबॉडी बन चुकी है. वहीं केरल की बात करें तो वहां के महज़ 42.7 फ़ीसदी लोगों में ही अब तक एंटीबॉडी बन पाई है. एक बड़ी वजह यह भी है कि पहली लहर के दौरान केरल में उतनी ज्यादा टेस्टिंग नहीं हो रही थी, जितनी कि अब हो रही है. इसलिए वहां उस वक्त कोरोना के मामले भी कम आ रहे थे, लेकिन जब टेस्टिंग बढ़ी है तो कोरोना के मामलों में भी इजाफा देखा जा रहा है.

6 अप्रैल को जब केरल में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे थे, तब वहां संक्रमण के मामलों की संख्या 59051 थी. जबकि नए मामलों की संख्या केवल 3502 थी. लेकिन 31 जुलाई को केरल में 1,67,579 लोगों के टेस्ट किए गए जिसमें 20624 पॉजिटिव निकले.

कोरोना का नया डेल्टा वेरिएंट

तीसरी सबसे बड़ी वजह जिसे माना जा रहा है. वह है कोरोना का नया डेल्टा वेरिेएंट, कहा जा रहा है कि इस नए वेरिएंट की वजह से भी केरल में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े हैं. दरअसल जब कोरोना की पहली लहर केरल में थी तो उस वक्त अगर परिवार के एक सदस्य को कोरोना होता था तो जरूरी नहीं था कि अन्य सदस्यों को भी कोरोना हो जाए. लेकिन डेल्टा वेरिएंट के चलते ऐसी स्थिति होने लगी कि अगर घर में एक व्यक्ति को कोविड हुआ तो अन्य व्यक्तियों को भी कोरोना होना तय माना जाता है, क्योंकि डेल्टा वेरिएंट इतनी तेजी से फैलता है जितनी तेजी से कोई और वेरिेएंट नहीं फैलता.

घरों में आइसोलेशन और क्वारंटाइन होना भी एक बड़ी वजह है

दरअसल कोरोना कि पहली लहर के दौरान अगर कोई व्यक्ति संक्रमित पाया जाता था, तो उसे सरकारी क्वारंटाइन सेंटरों में आइसोलेट किया जाता था. लेकिन अब लोग घरों में ही क्वारंटाइन और आइसोलेट हो रहे हैं जिसकी वजह से संक्रमण फैलने का खतरा और भी बढ़ गया है. क्योंकि घरों में कोरोना मरीज को लेकर लोग इतनी सावधानी नहीं बरत पाते जितना कि उन्हें बरतना चाहिए. ऊपर से कोरोना का नया डेल्टा वेरिएंट एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में तेजी से फैलता है. ऐसे में अगर एक डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित व्यक्ति घर में है तो जाहिर सी बात है कि वह दूसरे को तेजी से संक्रमित कर सकता है.

बकरीद पर ढील घातक साबित हुई

विशेषज्ञ मानते हैं कि लोग कोरोना नियमों को हल्के में लेते हैं और उनका पालन नहीं करते. बकरीद के दौरान ही देखा गया कि केरल के मस्जिदों में कितनी बड़ी तादाद में लोग नमाज पढ़ने इकट्ठा हुए और शायद ही किसी के चेहरे पर मास्क लगा हो. बाजारों में भी लोग खरीदारी करने के लिए लोग घरों से बिना मास्क लगाए निकल पड़े और दुकानों पर भी सोशल डिस्टेंसिंग का कोई पालन नहीं किया गया. हालांकि यह हाल केवल केरल का ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों का भी है. वहां आज भी लोग कोरोना को हल्के में ले रहे हैं और कोरोना के रोकथाम के लिए बनाए गए नियमों का पालन बिल्कुल ना के बराबर कर रहे हैं.

वैक्सीनेशन में पीछे रह गया

केरल में कोरोना मामलों के बढ़ने के पीछे एक वजह वैक्सीनेशन की कमी भी बताई गई है. केरल सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार राज्य में 18 साल से अधिक उम्र के 50 फ़ीसदी आबादी को कोरोना के वैक्सीन की पहली डोज मिल चुकी है, हालांकि दोनों डोज केवल 19.5 फ़ीसदी लोगों को ही मिली है.

पहले चरण में निजि क्षेत्र पर भरोसा खतरनाक हो गया

किसी भी राज्य में संक्रमण का दर बढ़ने का साफ मतलब होता है कि वहां की सरकार कोविड प्रबंधन में बिल्कुल नाकाम साबित हुई. जब केरल में कोरोनावायरस के मामले कम थे तब सरकार ने अक्टूबर में कोरोनावायरस की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र को दे दी. ताकि वह कोरोना प्रबंधन का पूरा श्रेय ले सके. हालांकि सरकार का यह दांव उल्टा पड़ गया, क्योंकि इसकी वजह से निजी क्षेत्र के डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर अधिक दबाव पड़ने लगा. दरअसल राज्य के 80 फ़ीसदी डॉक्टर और नर्स निजी क्षेत्र के अस्पतालों में काम करते हैं, जबकि राज्य के करीब 70 फ़ीसदी मरीज भी निजी क्षेत्र के अस्पतालों पर ही निर्भर हैं. इस वजह से डॉक्टरों पर अधिक दबाव पड़ने लगा, जिसकी वजह से उनके काम में लापरवाही भी दिखने लगी.

70 फीसदी टेस्ट रैपिड एंटीजन टेस्ट कराए

दूसरी सरकार की सबसे बड़ी खामी थी कि उसने राज्य में लगभग 70 फ़ीसदी टेस्ट रैपिड एंटीजन टेस्ट कराए, जिसमें कोरोना का संक्रमण उतना सही तरीके से पकड़ में नहीं आता है जितना कि आरटी-पीसीआर की जांच में आता है. वहीं केरल के पड़ोसी राज्य तमिलनाडु ने अपने यहां 100 फीसद आरटी-पीसीआर जांच का विकल्प ही अपनाया जिसकी वजह से आज वहां केरल से कम मामले हैं.


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