सम्पादकीय

ट्रिपल तलाक़ कानून के 2 साल : कानून के डर से गुम हो गए तीन बार तलाक बोलने वाले

Tara Tandi
2 Aug 2021 1:43 PM GMT
ट्रिपल तलाक़ कानून के 2 साल : कानून के डर से गुम हो गए तीन बार तलाक बोलने वाले
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1 अगस्त 2021 को दिल्ली में केंद्र सरकार ने ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ मनाया

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | 1 अगस्त 2021 को दिल्ली में केंद्र सरकार ने 'मुस्लिम महिला अधिकार दिवस' मनाया. दरअसल आज से 2 साल पहले 1 अगस्त 2019 को ही देश में ट्रिपल तलाक (Triple Talaq) कानून लागू हुआ था. अगर आंकड़ों की माने तो वाकई में मुस्लिम महिलाओं में अचानक होने वाले तलाक का भय कम हुआ है. क्योंकि इस तरह की घटनाओं में बड़े पैमाने पर कमी देखने को मिली है. वास्तव में यह कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए मैग्ना कार्टा की तरह से एक स्वतंत्रता का अधिकार पत्र साबित हुआ है. मगर कोई भी कानून हो उसके उजले पक्ष के साथ उसका स्याह चेहरा भी होता है. एग्जिक्यूशन के दौरान इस कानून में कुछ खामियां भी उजागर हुई हैं जिन्हें समय रहते सुधार लेने की उम्मीद की जा सकती है. हो सकता है कि ये सुधार इस कानून को और प्रभावकारी बना सकें.

रविवार को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी यह साबित करने की कोशिश की कि मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के लिए यह कानून बहुत जरूरी था. उन्होंने कहा, केंद्र सरकार ने इस कानून के जरिए मुस्लिम महिलाओं के आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और आत्मविश्वास को सुदृढ़ किया है और यह कानून बनाकर केंद्र सरकार ने उनके संवैधानिक, मौलिक और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की है. मुख्तार अब्बास नकवी अपनी बातों के पक्ष में आंकड़े भी पेश करते हैं. मुस्लिम महिला (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज एक्ट) लागू होने के बाद तीन तलाक के मामलों में लगभग 80 फ़ीसदी की कमी आई है. उन्होंने कहा कि 1 अगस्त 2019 को कानून लागू होने से पहले उत्तर प्रदेश में 63,000 से ज्यादा मामले तीन तलाक के दर्ज थे, जबकि कानून लागू होने के बाद 221 केस दर्ज हुए. वहीं बिहार में एक्ट लागू होने के बाद सिर्फ 49 मामले ही दर्ज हुए. जबकि कानून पास होने से पहले बिहार में 38,617 तीन तलाक के मामले थे और राजस्थान में भी 33,122 मामले थे

खामियां तो हैं पर बेवजह का विरोध ज्यादा है

इस कानून का विरोध करने वाले कहते हैं कि 1400 सालों से जिसे सिविल कानून के दायरे में रखा गया था अचानक उसे क्रिमिनलाइज़ कर दिया गया. सवाल यह उठता है कि जिस प्रथा से कोई पक्ष पीडि़त हो रहा है उसे क्राइम की श्रेणी में रखने में गलत क्या है? दूसरा यह दावा किया जा रहा है कि इस कानून के जरिए मुस्लिम मर्दों पर झूठा केस कर उन्हें फंसाने के मामले भी बढ़ेंगे. हालांकि इस कानून के बनने के बाद इतने कम मामले ही दर्ज हुए हैं कि यह आशंका निर्मूल ही सिद्ध होती है. कानून के डर से ऐसे मामले अचानक बहुत कम हो गए हैं. दरअसल इस तीन तलाक कानून के अंतर्गत अगर कोई पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक बोल कर छोड़ देता है तो उसे कानूनन तीन साल की सजा हो सकती है और पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है. बाद में जिसकी सुनवाई मजिस्ट्रेट करेगा. इस कानून का विरोध करने वाले कहते हैं कि अगर तीन तलाक बोलने पर तलाक हुआ ही नहीं तो यह गुनाह कैसे हुआ.

लेकिन यह सोचने वाली बात है कि अगर यूपी जैसे राज्य में ही कानून लागू होने के पहले एक साल में 65000 हजार मामले तीन तलाक के दर्ज हुए थे, कैसे मान लिया जाए कि इससे महिलाओं पीडि़त नहीं हुई होंगी. दूसरे तलाक के मामले सालों चलते हैं तो क्या तब तक के लिए किसी को खुले घूमने की छूट दी जा सकती है. इस आधार पर तो कुख्यात अपराधी पर मामला साबित होने तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. तीसरी सबसे बड़ी खामी इसमें यह बताई जा रही है कि अगर महिला का पति तीन तलाक बोलने के बाद जेल में चला जाता है तो पत्नी और बच्चों का खर्च कैसे उठाएगा, जबकि पत्नी का अभी तक तलाक भी नहीं हुआ है. पर व्यवहारिक जिंदगी में कितने मर्द होते हैं जो तलाक बोलने के बाद भी अपने से अलग रही महिला का खर्च उठाते हैं.

कितनी बदली मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी

द क्विंट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 34 वर्षीय महिला जन्नत बेगम पटेल जिन्होंने यह कानून बनने के बाद पहला केस 2 अगस्त 2019 को मुंबई में अपने पति इम्तियाज गुलाम पटेल के खिलाफ दर्ज कराया वह कहती हैं, 'मुस्लिम समाज में तलाक को लेकर हमेशा महिलाओं की ही आलोचना की जाती है. मैं जानती हूं कि कुरान में लिखा है कि एक मुस्लिम मर्द 4 बीवीयां रख सकता है, यही वजह है कि मेरे पति की भी दो बीवीयां हैं. लेकिन क्या कुरान ये इजाजत देता है कि दो बीवीयों के होने के बावजूद आप तीसरी औरत से नाजायज संबंध रखें. ऐसा बिल्कुल नहीं है. मुझे समझ नहीं आता कि अगर एक महिला को आप सिर्फ तीन तलाक बोल कर उसे छोड़ देते हैं तो क्या वह इसके खिलाफ आवाज़ भी ना उठाए. एक महिला को इस घटना के बाद किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है क्या इसका जवाब है किसी के पास. मैं क्यों उसके गुनाह की सजा काटूं.'

हालांकि इस केस में जन्नत के पति इम्तियाज को बाद में जमानत दे दी गई. दरअसल इस तीन तलाक कानून में कहा गया है कि अदालत को जमानत देने से पहले औरत का पक्ष सुनना पड़ता है. हालांकि एक टेक्निकल पेच और है इस कानून में, दरअसल तलाक के बाद बच्चों और पत्नी को कोई पति तभी भरण पोषण के लिए मुआवजा दे सकता है जब वह कुछ कमाता रहे, अगर उसे जेल हो जाती है तो वह अपनी बीवी बच्चों को भरण पोषण के लिए मुआवजा कैसे देगा. यही वजह है कि हाई कोर्ट ने इम्तियाज़ को जमानत दे दी.

लेकिन जन्नत जैसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने तीन तलाक पर कानून बनने के बाद राहत की सांस ली और अपने साथ हुए नाइंसाफी को लेकर कानूनी रूप से मदद ली. तीन तलाक पर कानून बनने के बाद बेशक मुस्लिम समाज के ऐसे लोगों में डर बैठा है जो अपनी पत्नियों को सिर्फ तीन तलाक बोल कर छोड़ देते थे. इसके साथ ही इस कानून ने मुस्लिम औरतों को ताकत भी दी है कि वह अपने हक लिए आवाज़ बुलंद कर सकें.

पहली बार मुस्लिम समाज दो वर्गों में बंटा

देश में ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी पार्टी ने मुस्लिम समाज की नहीं बल्कि उस समाज की औरतों की बात की थी. मुस्लिम समाज की औरतें इस तीन तलाक जैसे असंवैधानिक और अमानवीय कानून की वजह से बहुत परेशान रहती थीं. क्योंकि इस कानून के जरिए पति अपनी पत्नी को सिर्फ तीन बार तलाक तलाक तलाक बोलकर छोड़ सकता था. कई केस तो ऐसे भी सामने आए जिसमें पति विदेश में रहते हुए फोन पर पत्नी को तीन तलाक बोलकर छोड़ देता था. इसलिए जब नरेंद्र मोदी सरकार यह कानून लेकर आई तो कई मुस्लिम महिला संगठनों ने इसका खुलकर स्वागत किया. इसके साथ ही मुस्लिम समाज की महिलाओं ने भी इस कानून को सराहा. पारिवारिक दबाव के चलते बहुत सी महिलाओं ने इस कानून के समर्थन में खुलकर भले ही बयान ना दिए हों, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी बीजेपी को वोट पड़े वह वोट मुस्लिम महिलाओं के ही थे जो इस कानून के चलते बीजेपी के पक्ष में पड़े. हालांकि देश में कुछ जगह मुस्लिम मर्दों के साथ-साथ मुस्लिम औरतों ने भी इस कानून का विरोध यह कहते हुए किया था कि यह कानून उनके इस्लामिक मान्यताओं से छेड़ छाड़ करता है.

कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी तीन तलाक का विरोध किया था

देश में तीन तलाक के विरोध में कानून बनाने की मांग लगभग 50 सालों से अधिक समय से होती आ रही है. पहली बार 1972 में इसके विरोध में केरल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पी ख़ालिद ने आवाज़ उठाई थी. उन्होंने तीन तलाक को भारतीय संविधान और इस्लाम के मूल भावना के खिलाफ करार दिया था. इसके बाद 1981 में गुवाहाटी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बहरुल इस्लाम ने भी इस कानून को लेकर कहा था कि बगैर सुलह सफाई की कोशिशों के दिए गए तलाक से निकाह नहीं टूट सकता. हालांकि इन मुस्लिम बुद्धिजीवियों की बात को तब की सरकारों ने इतनी तवज्जो नहीं दी क्योंकि तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों को डर था कि अगर इस कानून से छेड़ छाड़ की गई तो उनका मुस्लिम वोटबैंक खत्म हो जाएगा.

हालांकि यह कानून इतनी आसानी से पास नहीं हुआ जितना आसान यह दिखता है. केंद्र सरकार को इसे पास कराने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े थे. दरअसल साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सायरा बानो केस में सुनवाई करते हुए तीन तलाक इस्लामी कानून को असंवैधानिक करार दे दिया था और सरकार को निर्देश दिए थे कि वह इस पर एक कानून बनाए. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को हाथों हाथ लिया और दिसंबर 2017 में ही लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक) पारित करा दिया. हालांकि राज्यसभा में यह कानून उस वक्त नहीं पास हो सका, क्योंकि इस्लाम के तथाकथित ठेकेदारों ने इसे इस्लाम विरोधी कानून बताते हुए इसका विरोध किया. यहां तक कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने भी इस कानून का यह कहते हुए विरोध किया कि यह एक समुदाय को टारगेट करके कानून बनाया गया है और इस कानून में संशोधन की जरूरत है.

केंद्र सरकार ने 2018 में इस विधेयक में संशोधन कर फिर से राज्यसभा में पेश किया. लेकिन यह बिल फिर भी पास नहीं हो सका. हालांकि इसके बाद केंद्र सरकार ने सितंबर 2018 में अध्यादेश लाया और इस कानून में भी कुछ संशोधन किया. फिर 30 जुलाई 2019 को राज्यसभा में यह कानून 99 वोटों के साथ पास हो गया. इसके विरोध में उस वक्त 84 वोट पड़े थे. बाद में इस बिल पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर कर इससे एक कानून का रूप दे दिया.

Triple talaq, 2 years of law, fear of law, thrice divorceऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड शुरू से इस कानून के विरोध में रहा है. उसका मानना है कि इस कानून से मुस्लिम महिलाओं की मुसीबत और बढ़ गई है. केंद्र सरकार के 'मुस्लिम महिला अधिकार दिवस' मनाने पर भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए विनाशकारी है और इससे उनकी मुश्किलें कम होने की जगह और बढ़ गई हैं. हालांकि अपने इस तर्क पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कोई ठोस आंकड़े नहीं दिए.

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