सम्पादकीय

14 सितंबर हिंदी दिवस विशेष: सोशल मीडिया पर छाया अपनी हिंदी का जादू

Rani Sahu
13 Sep 2021 6:51 AM GMT
14 सितंबर हिंदी दिवस विशेष: सोशल मीडिया पर छाया अपनी हिंदी का जादू
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हमारी हिंदी ग्लोबल है। न केवल वह युवाओं और बच्चों को रास आ रही है बल्कि तेजी से हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जगह बनाती जा रही है

स्वाति शैवाल। हमारी हिंदी ग्लोबल है। न केवल वह युवाओं और बच्चों को रास आ रही है बल्कि तेजी से हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जगह बनाती जा रही है। सबसे खास बात यह है कि हिंदी का यह रूप हमारा अपना है। यहां हिंदी किसी नियम कायदे में नहीं बंधी है। जिस भी तरह से हम उसे प्रेम करते हैं वैसी ही हिंदी हम दुनिया तक पहुंचा भी रहे हैं।

असल में यही वो हिंदी है जो हमारी पहचान बन सकती है, जो आसान है, सहज है और ताकतवर भी है। क्योंकि इसमें मिली है दुनियाभर की कई भाषाओं की खुशबू। यही कारण है कि गेमिंग से लेकर, माइक्रो ब्लॉगिंग साइट्स और व्लॉगिंग तक हिंदी छाई हुई है।
पिछले दिनों जब मेरे 10 वर्षीय बेटे ने यूट्यूब पर कोई वीडियो देखते देखते मुझसे पूछा-ममा-
ये चरित्र क्या होता है? मेरे लिए चौंकने का कारण ये भारी भरकम शब्द तो था ही, उससे ज्यादा मैं इस बात से चौंकी कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले मेरे बेटे ने जो अक्सर किताबें भी अंग्रेजी ही पढ़ता है, मुझसे एक हिंदी शब्द का अर्थ होमवर्क के अलावा पूछा था। मैंने उसी आश्चर्य में भरकर उससे उस शब्द का सोर्स पूछा। उसने बताया कि उसके फेवरेट युट्यूबर्स में से एक ने इस शब्द के बारे में बताया है।
मैंने उसे शब्द का अर्थ बताया और इस वीडियो को गौर से देखा। उसके बाद बेटे ने अपने बाकी पसंदीदा भारतीय युट्यूबर्स के बारे में बताया और मेरी उत्सुकता जागी कि वे लोग किस तरह की भाषा का उपयोग कर रहे हैं। खुशी की बात यह है कि ये ज्यादातर युट्यूबर्स ऐसी हिंदी बोल रहे हैं जिसका उपयोग हम आम बोलचाल में करते हैं।
बीच बीच में वे चरित्र, अस्तित्व जैसे हिंदी शब्दों का भी उपयोग करते हैं। ये एक खुश कर देने वाला लम्हा था क्योंकि यूट्यूब और सोशल मीडिया पर इस तरह भी हिंदी का प्रचार हो रहा है और बड़ी बात यह कि ये सभी युट्यूबर्स आम युवा हैं। इनकी हिंदी इसलिए भी बच्चों और युवाओं में जगह बना रही है क्योंकि वह हिंदी कोई एक भाषा नहीं है बल्कि कई सारी भारतीय भाषाओं और बोलियों का मिश्रण है।
भारतीय जहां विदेशी भाषा सीख रहे थे वहीं विदेशियों ने हिंदी सीखने या हिंदी सीखे हुए विदेशियों ने अपने वीडियोज़ पर अच्छा प्रतिसाद पाया। - फोटो : Pixabay
लॉकडाउन का असर
असल में कोरोना महामारी के आने के बाद हुए लॉकडाउन में जो चीजें सबसे ज्यादा लोगों की जिंदगी में शामिल हुई उनमें से एक है वर्चुअल दुनिया से जुड़ाव। चूंकि स्थितियां पूरी दुनिया में एक सी थीं इसलिए लोग बड़ी संख्या में इस दुनिया से जुड़े। इसका उपयोग केवल गेमिंग, मनोरंजन आदि के लिए ही नहीं हुआ बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए भी बड़े पैमाने पर हुआ और इसमें भाषा सीखना भी शामिल था। भारतीय जहां विदेशी भाषा सीख रहे थे वहीं विदेशियों ने हिंदी सीखने या हिंदी सीखे हुए विदेशियों ने अपने वीडियोज़ पर अच्छा प्रतिसाद पाया।
मजेदार भाषा का उपयोग
इन युट्यूबर्स द्वारा प्रयोग में लाई जा रही भाषा में उनकी अपनी स्थानीय बोली और भाषा मिलकर इसे और मजेदार बना देती हैं। जैसे जीटीए गेमिंग में बड़ा नाम बना चुके, उज्ज्वल चौरसिया उर्फ टेक्नो गेमर्स हरियाणा के हैं और वे अपने वीडियोज़ में ठेठ हरियाणवी शब्दों का भी उपयोग करते हैं। इसी तरह मुम्बई के मिथपैट जो व्लॉग और फनी गेमिंग वीडियोज़ बनाते हैं।
वे अपने वीडियो में हिंदी के साथ मराठी का भी उपयोग करते हैं। गेमिंग में काफी नाम कमा चुके बीस्ट बॉय शुभ भी हरियाणा से हैं और वो भी अपनी ठेठ बोली का उपयोग करते हैं। उनका प्रस्तुतिकरण इतना रोचक होता है कि बच्चे और युवा उनसे जुड़ना पसन्द करते हैं।
विदेशियों में मोह
केवल देशी ही नहीं विदेशी युट्यूबर्स में भी इस लॉकडाउन के दौरान भाषा सीखने का मोह बढ़ा है। 'स्टुपिड रिएक्शन' नामक चैनल वाले रिक और कोर्बिन हों, जापान से भारत आकर हिंदी सीखने और फिर जापान जाकर हिंदी को प्रचारित करने वाले 'कोहे' हों या फिर हिंदी फिल्मों और हिंदी वेब सीरीज की समीक्षा करने वाले 'जेबी कोये या अचारा कर्क' हों ऐसे कई युट्यूबर्स ने न केवल हिंदी फिल्मों,गानों, शास्त्रीय संगीत, नृत्य, नाटक आदि को अपने चैनल पर प्रस्तुत किया। बल्कि भारतीय संस्कृति, खान-पान और भाषाओं को भी करीब से जानने और सीखने का प्रयास किया। ये सभी लोग भारत भ्रमण पर भी आ चुके हैं।
हम जो हिंदी बोलते हैं उसमें उर्दू, फारसी, मराठी, संस्कृत और यहां तक कि अंग्रेजी के भी शब्द मिले होते हैं। - फोटो : iStock
हिंदी का दूसरा पहलू
अब कई लोगों को यह शिकायत हो सकती है कि इन वीडियो में अपशब्दों का प्रयोग होता है, ये वीडियोज़ बच्चों के हिसाब से अधिक हिंसा से भरे हो सकते हैं या इनमें सही हिंदी का उपयोग नहीं होता। लेकिन यहां कई चीजें हैं जिन्हें समझना जरूरी है।
* क्या अपशब्दों का प्रयोग आप घर पर नहीं करते? ऑनलाइन एक्टिविटीज के अलावा बच्चों का अधिकतर समय अपने घर में अपने बड़ों के बीच बीतता है। ऐसे में वे झूठ बोलने से लेकर अपशब्द बोलने, बदतमीजी करने तक जैसी चीजें सीखते हैं और ऐसे कई लोग आपको अपने आस - पास ही मिल जाएंगे। तो इसके लिए केवल ऑनलाइन कंटेंट को दोष देना सही नहीं होगा। बच्चों को रोकने या टोकने की बजाय आप उन्हें सही तरीके से चीजों को चुनने के बारे में सलाह दे सकते हैं।
* जहां तक बात सही हिंदी बोलने की या समझने की है, हममें से कितने लोग रोजमर्रा की ज़िंदगी में क्लिष्ट यानी खालिस हिंदी बोलते हैं? हम जो हिंदी बोलते हैं उसमें उर्दू, फारसी, मराठी, संस्कृत और यहां तक कि अंग्रेजी के भी शब्द मिले होते हैं। हिंदी का यही स्वरूप प्रचारित किया जाना जरूरी है, अगर इसे मासेस यानी सामान्य जन की भाषा बनाना है तो। इसका यही रूप दुनिया के सामने आने दीजिए और दुनिया को इसे ऐसे ही अपनाने दीजिए।
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