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पिछले एक दशक में देश में लगभग 14 लाख लोग सड़क हादसों में मारे गए हैं
कृष्णप्रताप सिंह
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
पिछले एक दशक में देश में लगभग 14 लाख लोग सड़क हादसों में मारे गए हैं और अभी भी हम हर साल सड़क हादसों में उतने लोगों को गंवा रहे हैं, जितने अब तक के किसी युद्ध में सैनिक नहीं गंवाए.
संभवतः इस सबके ही मद्देनजर देश के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल में कहा था कि अभी देश में सड़क हादसों में रोजाना 415 लोग मारे जा रहे हैं, इसके बावजूद हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे तो 2030 तक 6-7 लाख और लोग उनकी बलि चढ़ जाएंगे.
उन्होंने यह भी जानकारी दी थी कि उनके मंत्रालय ने केंद्र व राज्यों के विभिन्न मंत्रालयों व विभागों के साथ मिलकर एक महत्वाकांक्षी कार्ययोजना बनाई है, जिसमें सड़क हादसों की संख्या को चरणबद्ध ढंग से घटाते हुए 2025 तक आधी और 2030 तक एकदम से खत्म कर देना है.
सवाल है कि यह कैसे संभव होगा? हम जानते हैं कि सड़कों पर हादसों के कारणों को दूर करने को लेकर आम लोगों में जागरूकता तो सरकारी अमले में कर्तव्यनिष्ठा का अभाव है. अन्यथा सड़कों पर गड्ढों के कारण ही रोजाना दस लोगों को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती. यों, सड़क हादसों के अन्य कई कारण भी होते हैं.
मसलन, एक रिपोर्ट के अनुसार 70 फीसदी सड़क हादसे ओवर स्पीडिंग तो पांच प्रतिशत गलत दिशा में वाहन चलाने से होते हैं. ताज्जुब कि 72 फीसदी से अधिक हादसे धूप व साफ मौसम के बीच होते हैं.
यहां नितिन गडकरी से सहमत हुआ जा सकता है कि यह स्थिति तभी बदलेगी जब 2030 तक हादसों के उन्मूलन के लिए बनाई गई कार्ययोजना पर ठीक से अमल हो और हादसों के कारण समाप्त करने में किसी भी स्तर पर कोताही न बरती जाए.
अच्छी बात है कि इधर सड़क हादसों को घटाने के लिए आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग पर भी विचार किया जा रहा है ताकि हादसों में मानवीय भूलों की भूमिका घटाई जा सके. टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग की मदद से सड़क सुरक्षा की चुनौती का बेहतर मुकाबला किया जा सकता है.
Rani Sahu
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