सम्पादकीय

आज महिला दिवस पर आईना दिखाते 14 आंकड़े

Rani Sahu
8 March 2022 12:23 PM GMT
आज महिला दिवस पर आईना दिखाते 14 आंकड़े
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वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की जेंडर गैप रिपोर्ट-2021 में भारत 28 पायदानों की गिरावट के साथ 156 देशों में 140 वें स्थान पर पहुंच गया है

Soumitra Roy

– वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की जेंडर गैप रिपोर्ट-2021 में भारत 28 पायदानों की गिरावट के साथ 156 देशों में 140 वें स्थान पर पहुंच गया है.
– एनएफएचएस 5 के अनुसार, पिछले 12 महीनों में 15-49 आयु वर्ग की काम करने वाली महिलाओं में से केवल 25.4 प्रतिशत को नकद भुगतान मिला.
– ऑक्सफेम की 2019 की "माइंड द गैप : स्टेट ऑफ एम्प्लायमेंट इन इंडिया" रिपोर्ट के अनुसार भारतीय महिलाएं समेकित रूप से प्रतिदिन 1640 करोड़ घंटों का ऐसा कार्य करती हैं. जिसके बदले में उन्हें कुछ नहीं मिलता.
– भारतीय पुरुष प्रतिदिन केवल 56 मिनट घरेलू कार्य को देते हैं, जबकि महिलाओं के लिए यह अवधि 353 मिनट प्रतिदिन है. विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन हमारी 35 करोड़ घरेलू महिलाओं के श्रम के मूल्य को 613 अरब डॉलर तक आंकते हैं.
– कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 1999-2000 में 41 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2011-12 में घटकर 32 प्रतिशत रह गई और 2019 के आंकड़ों के अनुसार, यह 20.3 प्रतिशत है. बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए यह आंकड़े क्रमशः 30.5 और 33.7 प्रतिशत हैं.
– इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली एवं कुछ अन्य संस्थाओं के सर्वेक्षण बताते हैं कि यदि परिवार में पुरुष की कमाई ठीक ठाक है, तो लगभग 40 प्रतिशत पुरुष और महिलाएं दोनों यह चाहते हैं कि महिलाएं घर पर रहें.
– कृषि में महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं. पुरुष तो छोटे-मझोले शहरों एवं महानगरों को पलायन कर प्रवासी मजदूर बन गए हैं, महिलाएं गांवों में छूट गई हैं.
– नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमी रिसर्च का आकलन है कि भारत में 97 प्रतिशत महिला श्रमिक असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं.
– अध्ययनों के अनुसार, हमारा श्रम बाजार पुरुषों की तुलना में महिलाओं को उनके श्रम की आधी कीमत ही देता है. यहां तक कि निजी क्षेत्र में सुपरवाइजर स्तर पर भी महिलाओं को भी उनके पुरुष समकक्षों से 20 प्रतिशत कम वेतन मिलता है.
– सरकार ने नवंबर 2018 में घोषणा की थी कि अब वह महिलाओं को मिलने वाले मातृत्व अवकाश के 7 हफ्ते का वेतन कंपनियों को लौटाएगी. किंतु वस्तु स्थिति यह है कि हर वर्ष लगभग तीन करोड़ महिलाएं गर्भवती होती हैं, लेकिन इस कानून का लाभ केवल एक लाख महिलाओं को मिलता है.
– इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पापुलेशन साइंसेज (नोडल एजेंसी, एनएफएच 4) और आईसीएफ, यूएसए के अनुसार, भारत में कामकाजी महिलाओं के शारीरिक हिंसा का सामना करने की आशंका अधिक है. शारीरिक हिंसा झेलने वाली ग़ैर–कामकाजी महिलाओं की संख्या 26 प्रतिशत है. जबकि 40 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं को शारीरिक हिंसा झेलनी पड़ी है.
– रैंडस्टड का जेंडर परसेप्शन सर्वे 2019 दर्शाता है कि 63 प्रतिशत महिलाओं ने निजी क्षेत्र में नौकरी पर रखते समय लैंगिक भेदभाव का या तो सामना किया है या वे ऐसी किसी महिला को जानती हैं जो नियुक्ति के दौरान लैंगिक भेदभाव का शिकार हुई है. यह भेदभाव वेतन वृद्धि और पदोन्नति में भी देखा गया है.
– देश में मात्र 20% उद्यमों पर महिलाओं का स्वामित्व है. केवल 6% महिलाएं भारतीय स्टार्टअप्स की संस्थापक हैं. महिला संस्थापकों वाले स्टार्टअप्स सकल इंवेस्टर फंडिंग का सिर्फ 1.43% भाग ही प्राप्त कर सके. 69 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि सांस्कृतिक एवं निजी अवरोध एक उद्यमी के रूप में उनकी यात्रा को कठिन बनाते हैं.
– वर्तमान संसद में केवल 14 प्रतिशत महिलाएं हैं. इनमें से कुछ केंद्र सरकार में वरिष्ठ पदों पर भी हैं. किंतु यह भी उस विचारधारा का समर्थन करती दिखती हैं, जो हमारे संविधान को मनुस्मृति से प्रतिस्थापित करने का स्वप्न रखती है. वहीं मनुस्मृति जिसके अनुसार, महिलाओं को बाल्यावस्था में पिता, वयस्क होने पर पति और वृद्धावस्था में बेटों के नियंत्रण में रखना आवश्यक है.


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