सम्पादकीय

इंडियन ज्‍यूडिशियरी में महिलाओं का 130 साल पुराना इतिहास, कानून पढ़कर भी नहीं थी वकालत करने की इजाजत

Gulabi
10 May 2021 9:45 AM GMT
इंडियन ज्‍यूडिशियरी में महिलाओं का 130 साल पुराना इतिहास, कानून पढ़कर भी नहीं थी वकालत करने की इजाजत
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भारत की आजादी की लड़ाई का नेतृत्‍व करने वाले आधे से ज्‍यादा नेताओं ने लंदन से वकालत पढ़ी थी

मनीषा पांडेय। भारत की आजादी की लड़ाई का नेतृत्‍व करने वाले आधे से ज्‍यादा नेताओं ने लंदन से वकालत पढ़ी थी. महात्‍मा गांधी 1888 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से वकालत पढ़ने लंदन गए. जवाहरलाल नेहरू ने 1910 में वकालत पढ़ने लंदन गए. 1892 में ही भारत की एक महिला ने भी लंदन जाकर ऑक्‍सफोर्ड ने कानून की पढ़ाई की, लेकिन भारत लौटकर वो वकालत नहीं कर पाईं. इसलिए नहीं कि उनकी डिग्री कुछ कम थी, बल्कि इसलिए कि भारत का ब्रिटिश कानून महिलाओं को वकालत करने की इजाजत नहीं देता था. भारत की पहली महिला एडवोकेट को लंदन से पढ़ाई पूरी करने के बाद भी वकील बनने के लिए 28 साल इंतजार करना पड़ा.


लेकिन एक बार जो औरतों के लिए दरवाजे खुले तो उन्‍हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाया. आज हम आपको बता रहे हैं इंडियन ज्‍यूडिशियरी में महिलाओं के गौरवशाली इतिहास के बारे में.
कोर्नेलिया सोराबजी
(भारत की पहली महिला एडवोकेट)
कोर्नेलिया सोराबजी भारत की पहली महिला एडवोकेट थीं. वो बॉम्‍बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने और ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई करने वाली भी पहली भारतीय महिला थीं.

कोर्नेलिया सोराबजी का जन्‍म 15 नवंबर, 1866 को महाराष्‍ट्र के देवलाली में रहने वाले एक पारसी परिवार में हुआ. कोर्नेलिया का नाम उनकी दादी के नाम पर रखा गया. उनके पिता के ईसाई मिशनरी थे. कोर्नेलिया की मां फ्रैंसिना फोर्ड की परवरिश एक ब्रिटिश कपल ने की थी, जिन्‍होंने 12 साल की उम्र में ही उन्‍हें गोद ले लिया था. पुणे में रहते हुए उन्‍होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी काम किया था.
कोर्नेलिया सोराबजी

कोर्नेलिया सोराबजी से पहले बॉम्‍बे यूनिवर्सिटी लड़कियों को किसी भी प्रोग्राम में दाखिला नहीं देती थी. कोर्नेलिया पहली लड़की थी, जिसे यूनिवर्सिटी ने अपने यहां पढ़ने की इजाजत दी. उसके बाद ही उस यूनिवर्सिटी में लड़कियों की शिक्षा के दरवाजे खुले. उसके बाद कई महिलाओं ने उस यूनिवर्सिटी से शिक्षा ली, जो अपने-अपने विषयों में शिक्षा के उस ऊंचे मुकाम तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. जैसे 1933 में बॉम्‍बे यूनिवर्सिटी से बायोकेमिस्‍ट्री में ग्रेजुएट होने वाली कमलो सोहनी भारत की पहली महिला बायोकेमिस्‍ट थीं.

फिलहाल बॉम्‍बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद का कोर्नेलिया ने नेशनल इंडियन एसोसिएशन को एक चिट्ठी लिखी और उनसे आगे की उच्‍च शिक्षा के लिए मदद मांगी. चूंकि उनके नाना-नानी खुद ब्रिटिश थे और बहुत सारे प्रभावशाली अंग्रेजों को निजी तौर पर जानते थे तो कोर्नेलिया को आसानी से ऑक्‍सफोर्ड में एडमिशन मिल गया. 1892 में उन्‍होंने ऑक्‍सफोर्ड के समरविल कॉलेज में सिविल लॉ में दाखिला लिया और इस तरह वहां से कानून की पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. भारत लौटने के बाद उन्‍होंने फिर 1897 में बॉम्‍बे यूनिवर्सिटी से एल.एल.बी किया.

कोर्नेलिया के पास सारी डिग्री और योग्‍यता थी, फिर भी वो एडवोकेट नहीं बन पाईं क्‍योंकि उस वक्‍त के ब्रिटिश कानून में महिलाओं को वकालत करने की इजाजत नहीं थी. 1923 में जब ये कानून बदला, तब कहीं जाकर कोर्नेलिया के लिए वकालत के दरवाजे खुले और 1924 में उन्‍होंने कोलकाता में बतौर एडवोकेट अपनी प्रैक्टिस शुरू की. 1929 में वो हाईकोर्ट से रिटायर हुईं.

अपनी किताब बिटविन द ट्वाइलाइट्स और दो भागों में लिखी अपनी आत्‍मकथा में कोर्नेलिया ने विस्‍तार से अपने वकालत के अनुभवों के बारे में लिखा है.
मिथन जमशेद लाम
(भारत की पहली महिला बैरिस्‍टर और बॉम्‍बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला वकील)
मिथन जमशेद लाम पहली भारत की पहली महिला बैरिस्‍टर थीं और बॉम्‍बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला वकील थीं.

मिथन जमशेद लाम उर्फ मिथन टाटा का जन्‍म 2 मार्च, 1998 को महाराष्‍ट्र के एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था. पिता आर्देशिर टाटा की टेक्‍स्‍टाइल की मिल थी और मां हीराबाई टाटा वुमेंस राइट्स एक्टिविस्‍ट थीं. मिथन ने मुंबई के एलफिन्‍स्‍टन कॉलेज से इकोनॉमिक्‍स ऑनर्स किया और पूरे कॉलेज में टॉप किया. उसके बाद वो इंग्‍लैंड चली गईं और लंदन स्‍कूल ऑफ इकोनॉमिक्‍स से मास्‍टर्स की पढ़ाई की. इस पढ़ाई के साथ-साथ वह बैरिस्‍टरी पढ़ने की भी तैयारी करती रहीं ताकि वह लिंकन इन में बतौर बैरिस्‍टर इन लॉ प्रवेश पा सकें. लिंकन इन लंदन के चार प्रमुख न्‍यायालयों में से एक है.

अपने इंग्‍लैंड प्रवास के दौरान वह एन्‍नी बेसेंट और सरोजनी नायडू जैसे नेताओं से भी मिलीं, जो आजादी के पहले भारत के सेफजरेट मूवमेंट की प्रमुख आवाज थीं. वहां वह इन महिला नेताओं के साथ स्‍कॉटलैंड गईं और महिलाओं के वोट देने के अधिकारों की वकालत में हाउस ऑफ कॉमंस को भी संबोधित किया.

1923 में वह हिंदुस्‍तान लौटीं और मुंबई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगीं. उसी साल ब्रिटिश कानून में बदलाव हुआ था और महिलाओं पर लगा वह कानूनी प्रतिबंध हटा लिया गया था, जिसके तहत उन्‍हें प्रैक्टिस करने की इजाजत नहीं थी. मिथन मुंबई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली पहली भारतीय महिला थीं.

1962 में भारत सरकार ने उन्‍हें तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्‍मान पद्म भूषण से सम्‍मानित किया.

ओमना कुंजम्‍मा
(भारत की पहली महिला मजिस्‍ट्रेट)
ओमाना कुंजम्‍मा भारत की पहली महिला मजिस्‍ट्रेट थीं. कुंजम्‍मा का जन्‍म केरल के एक गांव थिक्‍कूरिसी, नागरकोली में हुआ था, जो उस जमाने में त्रावणकोर स्‍टेट का हिस्‍सा हुआ करता था. त्रावणकोर एक स्‍वतंत्र राज्‍य था, जहां 1729 से लेकर 1949 तक त्रावणकोर रॉयल फैमिली का शासन था. त्रावणकोर में महिलाओं की शिक्षा और प्रगति का स्‍तर देश के बाकी हिस्‍सों से काफी बेहतर था, इसलिए देश की पहली महिला डॉक्‍टर से लेकर पहली महिला मजिस्‍ट्रेट तक त्रावणकोर में हुई. अगर हम भारत की महिलाओं की शिक्षा का इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि हर चौथी स्‍त्री का त्रावणकोर से कोई न कोई संबंध निकल ही आता है.

तो वहां के एक कुलीन नायर परिवार में कुंजम्‍मा पैदा हुई, जहां शिक्षा का माहौल था. दुर्भाग्‍य से उनके बारे में पॉपुलर स्रोतों से ज्‍यादा जानकारी नहीं मिलती. कुछ लेख और किताबों में उनका जिक्र आता है, लेकिन वो सब मलयालम में हैं. उनके भाई सुकुमारन नायर मलयालम सिनेमा के जाने-माने लेखक और अभिनेता थे.

अन्‍ना चैंडी
(भारत की पहली महिला जज, हाईकोर्ट की पहली महिला जज)
जस्टिस अन्‍ना चैंडी भारत की पहली महिला जज थीं. साथ ही वह हाईकोर्ट की जज बनने वाली भी पहली भारतीय महिला थीं. जस्टिस चैंडी एमिली मर्फी के साथ-साथ ब्रिटिश साम्राज्‍य में जज बनने वाली दूसरी महिला थीं. 1916 में जब एमिली कनाडा में पहली महिला जज बनीं, उस वक्‍त कनाडा ब्रिटिश साम्राज्‍य का हिस्‍सा था. इस तरह ब्रिटिश साम्राज्‍य में महिला जज बनने का गौरव इन दोनों महिलाओं को मिला.

अन्‍ना चैंडी का जन्‍म 1905 में त्रावणकोर राज्‍य के एक सीरियन क्रिश्चियन परिवार में हुआ था. उनके परिवार ने बाद में कैथलिक धर्म अपना लिया और वो त्रिवेंद्रम जाकर बस गए. 1926 में अन्‍ना चैंडी ने कानून में पोस्‍ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की और अपने राज्‍य में यह डिग्री पाने वाली वह पहली महिला थीं.

अन्‍ना चैंडी को भारत की शुरुआती फेमिनिस्‍ट कहा जा सकता है. वह महिला अधिकारों की मुखर समर्थक थीं और श्रीमती नाम की एक मैगजीन निकाला करती थीं.

1931 में वह श्रीमुलम पॉपुलर असेंबली चुनावों में भी खड़ी हुईं. उन्‍हें चारों ओर से काफी विरोध का सामना करना पड़ा. अखबारों ने उनके खिलाफ जमकर विष वमन किया, चुनाव में खड़े प्रतिद्वंद्वी पुरुषों ने चरित्र पर कीचड़ उछाला, लेकिन वो पीछे नहीं हटीं. नतीजा ये हुआ कि वह चुनाव जीत गईं.

त्रावणकोर के दीवान सी.पी. रामास्‍वामी ने 1937 में चैंडी को त्रावणकोर का मुंसिफ नियुक्‍त किया. इस तरह वह भारत की पहली महिला जज बनीं. आजादी के एक साल बाद 1948 में वह पदोन्‍नत होकर डिस्ट्रिक्‍ट जज की कुर्सी तक पहुंच गईं.

9 फरवरी, 1959 को उन्‍हें केरल हाईकोर्ट का जज नियुक्‍त किया गया और इस तरह जस्टिस चैंडी का नाम एक बार और इतिहास में दर्ज हो गया. वह भारत में हाईकोर्ट जज के प्रतिष्ठित पद तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं. 1959 से लेकर 1967 तक वह इस पद पर रहीं.

सेवानिवृत्‍त होने के बाद जस्टिस चैंडी लॉ कमीशन ऑफ इंडिया की सदस्‍य रहीं. 1973 में उनकी आत्‍मकथा प्रकाशित हुई. यह किताब अपने आप एक में ऐतिहासिक दस्‍तावेज है, जिसे फेमिनिस्‍ट डिस्‍कोर्स में पढ़ाया जाना चाहिए.
1996 में 91 साल की उम्र में उनका निधन हुआ.

फातिमा बीवी
(सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया की न्‍यायाधीश बनने वाली पहली भारतीय महिला)
एम. फातिमा बीवी भारत के सर्वोच्‍च न्‍यायालय सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया की न्‍यायाधीश बनने वाली पहली भारतीय महिला हैं.

फातिमा बीवी का जन्‍म 30 अप्रैल, 1927 को त्रावणकोर राज्‍य के पाठनमथित्‍ता में हुआ था, जो अब केरल राज्‍य का हिस्‍सा है. उन्‍होंने पहले यूनिवर्सिटी कॉलेज, तिरुवनंतपुरम से केमेस्‍ट्री में बीएससी की और फिर गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, तिरुवनंतपुरम से कानून की डिग्री ली.

1950 में उन्‍होंने बार काउंसिल की परीक्षा में टॉप किया और बतौर एडवोकेट प्रैक्टिस शुरू की. 1958 में वह केरल सब-ऑर्डिनेट ज्‍यूडिशियल सर्विस में मुंसिफ बनीं, 1968 में पदोन्‍नत होकर सब-ऑर्डिनेट जज बनीं और 1972 में चीफ ज्‍यूडिशियल मजिस्‍ट्रेट नियुक्‍त हुईं. 4 अगस्‍त, 1983 को फातिमा बीवी हाईकोर्ट की जज नियुक्‍त हुईं. एक साल बाद 1984 में वह हाईकोर्ट की परमानेंट जज बन गईं और 1989 में वहां से सेवानिवृत्‍त हुईं.

सेवानिवृत्‍त होने के बाद 6 अक्‍तूबर, 1989 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्‍त किया गया, जहां से वह 1992 में रिटायर हुईं.
भारत में आजादी के 42 साल बाद कोई महिला को सुप्रीम कोर्ट की जज बनी. उसके बाद से लेकर अब तक कुल 9 महिलाएं सुप्रीम कोर्ट की जज रह चुकी हैं.

सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद फातिमा बीवी राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्‍य रहीं और बाद में तमिलनाडु की गवर्नर भी बनीं
लीला सेठ
(स्‍टेटईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस, दिल्‍ली हाईकोर्ट की पहली महिला जज)
भारत की सक्षम और सफल महिलाओं में लीला सेठ का नाम कौन नहीं जानता. इसलिए भी कि वो जाने-माने भारतीय लेखक विक्रम सेठ की मां भी हैं.
लीला सेठ के नाम कई क्षेत्रों में पहली महिला होने का रिकॉर्ड दर्ज है. लीला सेठ किसी भी स्‍टेट हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस बनने वाली पहली भारतीय महिला हैं. वह दिल्‍ली हाईकोर्ट जज बनने वाली भी पहली भारतीय महिला हैं. वह सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के द्वारा सीनियर काउंसिल के पद पर नियुक्‍त की जाने वाली पहली महिला वकील हैं. इस तरह देखा जाए तो अपने छह दशक से ज्‍यादा लंबे कॅरियर में लीला सेठ ने कई अप्रतिम प्रतिमान दर्ज किए हैं.

लीला सेठ का जन्‍म 20 अक्‍तूबर, 1930 को लखनऊ के एक उच्‍च-मध्‍यवर्गीय परिवार में हुआ था. पिता रेलवे में थे. 11 साल की उम्र में पिता का निधन हो गया, लेकिन मां ने उनकी पढ़ाई नहीं रुकने दी. लोरेटो कॉन्‍वेंट, दार्जिलिंग से स्‍कूली शिक्षा पूरी करने के बाद लीला कोलकाता में बतौर स्‍टेनोग्राफर काम करने लगीं. वहीं उनकी मुलाकात प्रेम सेठ से हुई, जिनसे बाद में उनका विवाह हुआ.

विवाह के समय उनकी उम्र सिर्फ 20 साल थी. शादी के बाद वो अपने पति प्रेम सेठ के साथ लंदन चली गईं, जो उस वक्‍त बाटा में नौकरी करते थे. लंदन में उन्‍होंने अपनी पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया. उन्‍होंने लॉ की पढ़ाई इसलिए चुनी क्‍योंकि इसके लिए उन्‍हें क्‍लास अटेंड करने की जरूरत नहीं थी. उनकी गोद में एक छोटा बच्‍चा था. उन्‍होंने घर-गृहस्‍थी और बच्‍चे की जिम्‍मेदारी संभालने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी.

1958 में वह लंदन बार की परीक्षा में बैठीं और टॉप किया. उस वक्‍त वह सिर्फ 27 साल की थीं. उसी साल उन्‍होंने आईएएस की परीक्षा दी और वह भी पास कर ली. इस परीक्षा में टॉप करने वाली वह पहली महिला थीं.

जब परीक्षा का नतीजा आया तो लंदन के अखबारों में लीला सेठ की फोटो छपी. उनकी गोद में एक छोटा बच्‍चा था, जो परीक्षा के कुछ ही महीने पहले पैदा हुआ था. लोगों को अचंभा इस बात का था कि 580 मर्दों के बीच ये एक शादीशुदा और बच्‍चों वाली औरत कैसे परीक्षा में अव्‍वल आ गई.

उसके बाद वो और उनका परिवार हिंदुस्‍तान लौट आया और लीला सेठ पटना हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगीं. 10 साल वहां प्रैक्टिस करने के बाद 1972 में वह दिल्‍ली हाईकोर्ट आ गईं. 1978 में वह दिल्‍ली हाईकोर्ट की जज नियुक्‍त हुईं. 1991 में वह हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस नियुक्‍त होने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.

लीला सेठ कई महत्‍वूपूर्ण कमीशनों का हिस्‍सा रहीं. लीला सेठ 2012 में निर्भया गैंगरेप के बाद भारत में रेप कानूनों में बदलाव के लिए बनाई गई जस्टिस वर्मा कमेटी की सदस्‍य थीं. वह भारत के पंद्रहवें लॉ कमीशन की भी सदस्‍य थीं. भारत के उत्‍तराधिकार कानून में साल 2020 में जो बदलाव हुए, जिसके तहत विरासत में मिली संपत्ति में भी लड़कियों को बराबर का हिस्‍सा दिया गया, उस कानूनी बदलाव का पूरा श्रेय भी लीला सेठ को जाता है.

वॉयलेट अल्‍वा
(न्‍यायालय में जिरह करने वाली भारत की पहली महिला वकील)
वॉयलेट अल्‍वा भारत की वह पहली महिला एडवोकेट थीं, हाईकोर्ट की पूरी बेंच के सामने खड़े होकर पहली बार न्‍यायालय में जिरह की. यह साल 1944 की बात है. 1944 में ही उन्‍होंने महिलाओं के लिए एक पत्रिका शुरू की- 'द बेगम', बाद में जिसका नाम बदलकर 'इंडियन वुमेन' कर दिया गया. वॉयलेट अल्‍वा 1946 से 17 तक बॉम्‍बे म्‍युनिसिपल कॉरपोरेशन की चेयरमैन रहीं और 1947 में मजिस्‍ट्रेट बनीं. 1948 से 1954 तक वह जुवेनाइल कोर्ट की प्रेसिडेंट भी रहीं.


इंदु मल्‍होत्रा
(बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट की जज नामित होने वाली पहली भारतीय महिला)
इंदु मल्‍होत्रा भारत की पहली महिला एडवोकेट हैं, जिन्‍हें सीधे बार से सुप्रीम कोर्ट के जज के पद पर नियुक्‍त किया गया. सुप्रीम कोर्ट लीगल काउंसिल में 30 वर्ष तक अपनी सेवाएं देने के बाद कोलेजियम ने एकमत से सुप्रीम कोर्ट जज के लिए इंदु मल्‍होत्रा को नामित किया, जिस पर 26 अप्रैल, 2018 को भारत सरकार ने मुहर लगा दी. 31 मार्च, 2021 को इंदु मल्‍होत्रा सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से रिटायर हुईं.

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