सम्पादकीय

बिल्किस बानो के 11 अपराधी

Subhi
22 Aug 2022 3:01 AM GMT
बिल्किस बानो के 11 अपराधी
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गुजरात के दंगों के दौरान 20 साल पहले हैवानियत की शिकार हुई ​बिल्किस बानो सर्व प्रथम एक भारतीय महिला है और उसके साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 अपराधी भारतीय संस्कृति को कलंकित करने वाले हैं। ऐसे अपराधियों को अदालत द्वारा उम्रकैद की सजा दिये जाने पर उन्हें किन्ही तकनीकि कारणों का सहारा लेकर जेल से रिहा किया जाता है

आदित्य चोपड़ा: गुजरात के दंगों के दौरान 20 साल पहले हैवानियत की शिकार हुई ​बिल्किस बानो सर्व प्रथम एक भारतीय महिला है और उसके साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 अपराधी भारतीय संस्कृति को कलंकित करने वाले हैं। ऐसे अपराधियों को अदालत द्वारा उम्रकैद की सजा दिये जाने पर उन्हें किन्ही तकनीकि कारणों का सहारा लेकर जेल से रिहा किया जाता है तो इसे मानवीयता के अपमान से कम करके नहीं देखा जाना चाहिए। मगर इस मामले को राजनैतिक रंग दिया जाना भी पूरी तरह अनुचित है क्योंकि जिस जिला समिति ने इन अपराधियों को माफी देने का फैसला किया उसका गठन भी न्यायालय के आदेश के बाद ही हुआ था। इसमें सबसे बड़ा मामला विवेक का आता है जिसके तहत सरकारों को कुछ विशेषाधिकार मिले होते हैं। क्या यह स्वयं में हृदय विदारक नहीं है कि पिछले 20 साल से ​बिल्किस बानो भारी आत्म पीड़ा के दौर से गुजर रही है और उसे इस बात पर सब्र करना पड़ा कि उसके साथ पाशविक कृत्य करने वाले लोग जेल भेज दिये गये। किसी महिला के साथ 21 वर्ष की आयु में ही उसके गर्भवती होने के बावजूद यदि सामूहिक बलात्कार जैसा कुकृत्य किया जाता है तो मानवता तो उसी समय दम तोड़ देती है।भारत का पिछले पांच हजार वर्ष से भी अधिक का इतिहास गवाह है कि इस देश की संस्कृति को शिरोधार्य करने वाले लोगों ने सर्वदा नारी का सम्मान ही किया है। यह तो वह देश है जिसमें शिवाजी महाराज ने औरंगजेब से लाख दुश्मनी होने के बावजूद मुगल शहजादियों को ससम्मान उनकी हवेलियों में पहुंचाने की जिम्मेदारी ली और राजपूतों ने सदा ही मुस्लिम सुल्तानों की स्त्रियों को बराबर का सम्मान दिया। हालांकि जवाब में उन्हें ऐसा ही व्यवहार कभी नहीं मिला, इसके बावजूद तत्कालीन 'देशज' भारतीय राजाओं ने मुस्लिम स्त्रियों के सम्मान में कभी कमी नहीं आने दी। यही भारत का असली चेहरा है और इसकी संस्कृति की सुगन्ध है। हमारी यह उदारता कभी भी कमजोरी का लक्षण नहीं मानी गई बल्कि वीरता की निशानी मानी गई। परन्तु गोधरा जिला उप जेल में बन्दी 11 बलात्कार के अपराधियों को रिहा करके हमने कई मोर्चों पर भारतीय अपराध नियमावली को लचर साबित कर डाला। सबसे पहला यह कि ​बिल्किस बानो के मामले में सीबीआई प्रमुख अभियोजन पक्ष थी। उसके सबूतों के आधार पर अदालत ने फैसला दिया था। फौजदारी के मामलों में सीबीआई का मुकदमा बहुत ही कसाव भरा होता है जिसमें शक की गुंजाइश बहुत कम रहती है। दूसरे इन अपराधियों ने ​बिल्किस बानो की तीन वर्षीय पुत्री की हत्या भी पत्थर पर सिर पटक कर की थी। एेसी क्रूर बाल हत्या का जिक्र केवल महाभारत काल में क्रूर शासक कंस के कारनामों में ही मिलता है जिसका निस्तारण स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने किया। परन्तु हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और आधुनिक वैज्ञानिक युग की रोशनी में जी रहे हैं। महाभारत का उदाहरण केवल भारतीय संस्कृति की व्याख्या के सन्दर्भ में दिया गया है। भारत के संविधान का आधार ही इंसानियत है और इंसानियत ही इसका धर्म या मजहब है। वैसे भी हम धर्म का अर्थ कर्त्तव्य या दायित्व के रूप में लेने वाले लोग हैं जिसमें विवेक ही केन्द्र में रहता है। विवेक का सम्बन्ध सीधे मस्तिष्क या दिमाग से होता है और ईश्वर ने यह शक्ति केवल मानव जाति को ही दी है कि वह इसका इस्तेमाल कर सके।अतः प्रथम दृष्टया विवेक यही कहता है कि 11 जघन्य अपराधियों का समाज में खुले घूमना पूरी सामाजिक व्यवस्था में ही बलात्कार जैसे अपराध के प्रति उदार भाव जागृत कर सकता है जो कि सभ्यता के विकास को उल्टा घुमाने की प्रक्रिया के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। जो लोग इस मामले को राजनैतिक चश्मे से देखना चाहते हैं वे मूल रूप से गलती पर हैं क्योंकि अपराधी का कोई राजनैतिक दल नहीं होता उसका दल केवल 'अपराध' होता है। यही वजह है कि बिल्किस बानो मामले का संज्ञान राष्ट्रीय मनवाधिकार आयोग भी ले रहा है। यह मामला मानव अधिकारों से ही जुड़ा हुआ है क्योंकि अपराधियों का रिहा हो जाना समस्त स्त्री जाति के लिए संताप का कारण बन सकता है। बेशक गुजरात में 2002 में साम्प्रदायिक दंगों की शुरुआत तब हुई थी जब एक ट्रेन में सफर कर रहे अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों से भरे एक डिब्बे में बाहर से बन्द करके आग लगा दी गई थी जिसमें 59 श्रद्धालु मौत का ग्रास बन गये थे। यह बहुत जघन्य और मानवीयता को शर्मसार करने वाला दुर्दान्त कृत्य था। इसके बाद ही साम्प्रदायिक दंगे फैले थे औऱ प्रतिशोध की ज्वाला भड़की थी। परन्तु स्त्री जाति को भारतीय संस्कृति में प्रतिशोध का पात्र कभी नहीं माना गया।

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