सम्पादकीय

100 Crore Vaccination: ये PM मोदी का नेतृत्व है.. अब सौ दिन चले ढाई कोस नहीं… ढाई दिन चले सौ कोस कहिए

Gulabi
21 Oct 2021 12:42 PM GMT
100 Crore Vaccination: ये PM मोदी का नेतृत्व है.. अब सौ दिन चले ढाई कोस नहीं… ढाई दिन चले सौ कोस कहिए
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देश-दुनिया ने वह तस्वीर देख दांतों तले उंगली दबा ली

देश-दुनिया ने वह तस्वीर देख दांतों तले उंगली दबा ली, जब बाढ़ की भयावहता के बीच बिहार जैसे राज्य ने टीके वाली नाव चलाकर टीकाकरण की राह दिखाई तो दुर्गम पहाड़ियां, सुदूर जनजातीय क्षेत्र, भाषाई-धार्मिक विविधताएं और चुनिंदा अफवाहों के बीच टीकाकरण में भारत ने अभूतपूर्व गति का कीर्तिमान स्थापित कर दिया. विविधता से भरे देश की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में जनसंवाद और जनभागीदारी विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का आधार बन गया है, जो इस कोविड जैसी वैश्विक महामारी के खिलाफ जीवन रक्षा और मानव सभ्यता को बचाने का प्रतीक बनकर उभरा है.


जहां एक टीका बनाने में 9-10 साल लगते थे, भारत ने महज नौ महीने में ही दो-दो स्वदेशी वैक्सीन का ईजाद कर दिया. अगर भारत ने खुद अपना टीका नहीं ईजाद किया होता तो भारत जैसे विशाल जनसमूह वाले देश में महामारी का असर कितना घातक होता इसकी कल्पना सहज की जा सकती है. आज भारत ने 100 करोड़ टीके लगाने का कीर्तिमान स्थापित कर लिया है तो इसकी सबसे बड़ी वहज है- आत्मविश्वास जो किसी भी अभियान का मूल आधार होता है और इस आत्मविश्वास का आधार बना है भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में उसका मौजूदा नेतृत्व जो चुनौतियों और समस्याओं से टकराने में विश्वास रखता है.
कनीक का जिस तरह प्रयोग कर चुनौतियों का सामना किया है, वैसे उदाहरण शायद ही देखने को मिलते हैं. भारत का कोविन प्लेटफॉर्म आज दुनिया के लिए नजीर है तो हर भारतवासी के मोबाइल पर टीके का रिकॉर्ड और प्रमाण पत्र सहज उपलब्ध है. कोविड से लड़ने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को शून्य से खड़ा करना हो या फिर लॉकडाउन की वजह से आम लोगों की परेशानियों को दूर करने के लिए गरीब कल्याण पैकेज और अन्य आर्थिक सहायता पहुंचाना हो या फिर वैक्सीन ईजाद करने का सामर्थ्य दिखाना, केंद्र सरकार ने विज्ञान और तकनीक को ही सबसे बड़ा आधार बनाया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च में आई आपदा के एक महीने बाद अप्रैल 2020 में वैक्सीन के लिए एक टास्क फोर्स गठित कर दिया था. फिर अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री ने नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड-19 (NEGVAC) का गठन किया जिसमें अंतर मंत्रालयी समन्वय, तकनीकी विशेषज्ञों और अलग-अलग दिशाओं के पांच राज्यों को शामिल किया गया. संघीय ढांचे का अद्भूत उदाहरण पेश करते हुए केंद्र ने दर्जन भर से ज्यादा बार मुख्यमंत्रियों को भरोसे में लेकर इस आपदा को अवसर में बदला और आत्मनिर्भर की मिसाल पेश की.

इसके बाद, जब 16 जनवरी को टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई तो देश में कई तरह की आशंकाओं का माहौल था. शुरू में टीके में फ्रंटलाइन वर्कर्स को ही प्राथमिकता दी गई. तब विशेषज्ञ यह बता रहे थे कि सिर्फ फ्रंटलाइन वर्कर्स तक ही पहुंचने में 8-9 महीने का समय लग जाएगा. लेकिन आंकड़े देखिए तो यह किसी अचरज से कम नहीं कि इतने ही समय में भारत ने 70 फीसदी से अधिक आबादी तक वैक्सीन को पहुंचा दिया है. शुरुआत में टीकाकरण की रफ्तार कुछ इस तरह थी कि 10 करोड़ डोज तक पहुंचने में 85 दिन लगे. लेकिन उसके बाद भारत ने ऐसी रणनीति बनाई कि अब एक दिन में 1 करोड़ से अधिक डोज लगाने का आंकड़ा पार हो रहा है.

वहीं, प्रधानंमत्री मोदी का जन्मदिन तो टीकाकरण के इतिहास का सबसे खास बन गया, जब भारत ने एक दिन में ढ़ाई करोड़ टीके लगाने का विश्व रिकॉर्ड कायम कर दिया. इस अभियान को तब और गति मिली जब 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से सबको वैक्सीन-मुफ्त वैक्सीन का मेगा अभियान शुरू किया गया. केंद्र सरकार ने पुरानी व्यवस्था को फिर से बहाल करते हुए टीकाकरण की कमान संभाल ली.

देश को सुरक्षित करने का संकल्प और उसे पूरा करने का आत्मविश्वास इतना मजबूत था कि 10 करोड़ टीके लगने के बाद अगले पांच महीनों में टीकाकरण की गति छह गुना से भी अधिक बढ़ गई और यह दुनिया का सबसे तेज व सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान बन गया. इसमें प्रधानमंत्री मोदी की विशेष पसंद के तौर पर उभरे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुखभाई मंडाविया ने एक सीईओ की तरह पूरे अभियान को गति दी. जब देश में टीके की मांग बढ़ने लगी तो उन्होंने खुद कंपनियों के पास जाकर बातचीत की और कच्चे माल से लेकर टीके के उत्पादन तक की एक विस्तृत रणनीति पर काम किया. इससे हर महीने कितना टीका उत्पादन होगा और कितने कच्चे माल की जरूरत है, समग्र दृष्टिकोण के साथ योजना को अंजाम दिया.

जिसका परिणाम यह निकला कि आज किस महीने में कितना वैक्सीन कौन सी कंपनी देगी, इसका रिकॉर्ड भारत सरकार के पास एडवांस में मौजूद है. अक्टूबर में भारत सरकार को 29 करोड़ टीके मिल रहे हैं तो त्योहारों के बाद दिसंबर में 40 करोड़ टीके हर महीने उपलब्ध होंगे, जिससे भारत न सिर्फ अपने देश में टीके की जरूरत को पूरी करेगा बल्कि उसे निर्यात करने में भी सक्षम होगा. यही वजह है कि टीके की रफ्तार लगातार नित नए रिकॉर्ड की ओर बढ़ रही है. भारत जब अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, उसी समय वैक्सीनेशन के रिकॉर्ड एक सुखद संतोष का अहसास कराता है क्योंकि अगस्त-सितंबर महीने में भारत ने टीके लगाने के मामले में नित नए रिकॉर्ड बनाए, जो जी-7 देशों के मुकाबले सर्वाधिक है.

इतना ही नहीं, भारत के उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों ने भी दुनिया के कई देशों से अधिक औसतन टीके लगाए. टीका लगाने के मामले में भारत की रफ्तार का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि यूरोपियन यूनियन, अरब लीग, नाटो, जी-7, आसियान जैसे देशों के रोजान औसत से भारत कहीं आगे है. आज भारत जहां एक दिन में 1 करोड़ से अधिक टीके लगाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर रहा है, जबकि जापान को इतने ही डोज लगाने में 8 दिन, अमेरिका को 11 दिन, जर्मनी को 45 दिन, इजरायल को 104 दिन और न्यूजीलैंड को 124 दिन लगते हैं. यही वजह है कि टीका लगाने के मामले में भी आज भारत दुनिया का नेतृत्व कर रहा है.
कोविड की आपदा इस सदी की सबसे बड़ी महामारी बनकर आई थी. लेकिन दूरदृष्टि और वक्त रहते किए गए उपायों ने देश को सुरक्षा कवच प्रदान किया. अगर पिछले 50-60 साल का इतिहास देखा जाए तो पता चलेगा कि भारत को विदेशों से वैक्सीन प्राप्त करने में दशकों लग जाते थे. 2014 में भारत में वैक्सीनेशन कवरेज 60 फीसदी तक था. जिस रफ्तार से टीकाकरण चल रहा था उससे 100 फीसदी कवरेज हासिल करने में 40 साल और लग जाते. लेकिन केंद्र सरकार के मिशन मोड में चले 'इंद्रधनुष' जैसे अभियान से सिर्फ 5-6 साल में ही वैक्सीनेशन कवरेज 60 से बढ़कर 90 फीसदी से भी ज्यादा हो गई.

यानी आजादी के बाद लंबे समय तक जो सरकार चल रही थी उस पर "सौ दिन चले, ढाई कोस" वाली कहावत चरितार्थ होती है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस कहावत को अपने 'स्पीड-स्केल' के सिद्धांत से पूरी तरह बदल दिया है. इस टीकाकरण के महाअभियान ने बता दिया है कि अब नया भारत सौ दिन में ढ़ाई कोस नहीं, बल्कि ढ़ाई दिन में सौ कोस चलने की क्षमता रखता है. इसमें सबसे अहम भूमिका रही बेहतर स्वास्थ्य ढांचे की जिसको लेकर 2014 से ही मिशन मोड में केंद्र सरकार प्रयास कर रही है. स्वास्थ्य पहली बार किसी सरकार के एजेंडे में सर्वोपरि दिखा है और आम बजट में 137 फीसदी की बढ़ोतरी अकेले इस क्षेत्र में की गई.

देश में 2014 के बाद से 6 एम्स पूरी तरह काम कर रहे हैं तो 16 अन्य एम्स निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं. इसी तरह स्वास्थ्य शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए एमबीबीएस की सीटों की संख्या में 53 फीसदी तो स्नातकोत्तर सीटों में 80 फीसदी की बढ़ोतरी की गई. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना, आयुष विभाग के जरिए रोगों की रोकथाम के उपाय आदि ऐसी पहल हुईं. इसका परिणाम हुआ कि देश के सुदूर क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं जो कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई को मजबूती दे रहा है.

आज अगर टीकाकरण की रफ्तार में भारत के नए-नए रिकॉर्ड स्थापित हो रहे हैं, तो इसकी वजह है स्वास्थ्य ढांचे की मजबूती के लिए निरंतर किए जा रहे प्रयास. अब भारत की तैयारी ऐसी किसी भी महामारी से जूझने के लिए स्वास्थ्य ढांचे का नया तंत्र विकसित करने में जुट चुका है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

संतोष कुमार वरिष्ठ पत्रकार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। रामनाथ गोयनका, प्रेस काउंसिल समेत आधा दर्जन से ज़्यादा पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। भाजपा-संघ और सरकार को कवर करते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव पर भाजपा की जीत की इनसाइड स्टोरी पर आधारित पुस्तक "कैसे मोदीमय हुआ भारत" बेहद चर्चित रही है।


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