सम्पादकीय

01 नवंबर हरियाणा दिवस विशेष: नारों से सिर्फ सत्ता बदल सकती है, व्यवस्था परिवर्तन के लिए चाहिए साफ नीयत और सही नीति

Gulabi
1 Nov 2021 1:14 PM GMT
01 नवंबर हरियाणा दिवस विशेष: नारों से सिर्फ सत्ता बदल सकती है, व्यवस्था परिवर्तन के लिए चाहिए साफ नीयत और सही नीति
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01 नवंबर हरियाणा दिवस विशेष

लंबे संघर्ष के बाद एक नवंबर, 1966 को पंजाब से अलग होकर बना हरियाणा आज 55 साल का हो गया। यह परिपक्वता की उम्र है। जाहिर है, इस लंबी अवधि में कई सरकारें आई गईं। सभी सरकारों ने अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार काम भी किए होंगे, लेकिन असल ये सवाल है कि क्या वे आम हरियाणवी की आकांक्षाओं पर खरी उतरीं? जिन सपनों को लेकर पृथक हरियाणा राज्य के लिए संघर्ष किया गया था, उन्हें किस हद तक पूरा कर पाईं?


सपने सिर्फ सपने नहीं होते, जीवन की जिजीविषा का आधार होते हैं। कुछ अलग कुछ बेहतर करने की प्रेरणा होते हैं, इसलिए राज्य निर्माण दिवस का यह अवसर इस आत्मविश्लेषण के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है कि पृथक हरियाणा के रूप में जो सपना देखा था, वह कितना पूरा हुआ? जो मंजिल चुनी थी, उस दिशा में कितना सफर तय हुआ?
हरियाणा द्वापर युग में अधर्म के विरुद्ध धर्म के लिए लड़े गए महाभारत की धरती है। और गीता संदेश की भी। देश की राजधानी दिल्ली के तीन ओर बसे होने की भौगोलिक विशिष्टता भी उसे प्राप्त है।

ऐसे में सर्वांगीण विकास के मानकों पर उसे अद्वितीय और शेष देश के लिए अनुकरणीय उदाहरण होना ही चाहिए, पर 2014 से पहले ऐसा नहीं हो पाया, क्योंकि संकीर्ण सोचवाली सरकारें विभाजनकारी वोट बैंक राजनीति से ऊपर उठ कर हरियाणा एक, हरियाणवी एक की दृष्टि ही विकसित नहीं कर पाईं।

हरियाणा की विकास यात्रा
2014 से पहले भाजपा को हरियाणा की सरकारों में कनिष्ठ भागीदार के रूप में सीमित अवसर ही मिले और अधिकाशं समय कांग्रेस की ही सरकारें रहीं। इस सच से मुंह नहीं चुराया जा सकता कि वोट बैंक केंद्रित सत्ता राजनीति के उस दौर में समृद्ध आध्यात्मिक-सांस्कृतिक विरासतवाले हरियाणा की छवि निखरने के बजाय धूमिल ही हुई। आयाराम-गयाराम के मुहावरे के साथ हरियाणा की राजनीति देश दुनिया में बदनाम हुई तो देसां मां देस हरियाणा, जित दूध-दही का खाना की कहावत पर कदम-कदम पर खुले शराबखानों ने प्रश्नचिन्ह लगाया।
द्रौपदी के चीरहरण के परिणामस्वरूप जिस धरती पर महाभारत का युद्ध लड़ा गया, वहां कोख में बेटियों की हत्या के चलते लिंगानुपात 876 के शर्मनाक आंकड़े तक गिर गया, पर सत्ताधीशों अपने सत्ता के खेल में मस्त रहे। खासकर लोकतंत्र में राजनीति को सेवा का माध्यम माना गया है, लेकिन पूर्ववर्ती सत्ताधीशों ने इसे मेवा का माध्यम बना लिया।

भ्रष्टाचार सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही गया, मानों इस मामले में सत्ताधीशों में एक-दूसरे से आगे निकले ही होड़ लगी हो। सत्ता पाना और फिर उसे बनाए रखना ही जैसे राजनीति का एकमात्र उद्देश्य रह गया। लोकतंत्र को परिवारतंत्र में बदलने में भी संकोच नहीं किया गया। स्वाभाविक ही इन हालात में विकास पिछड़ता है और अपराध फूलता-फलता है। जाहिर है, यह न तो देश की आजादी के सपने के अनुरूप था और न ही पृथक हरियाणा के लिए चले लंबे संघर्ष के।

यह स्थिति बदली, जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर हरियाणावासियों ने पहली बार भाजपा को राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत दिया। आम राजनीति की भाषा में वह सत्ता परिवर्तन था, लेकिन अलग तरह की राजनीतिक संस्कृति के प्रति प्रतिबद्ध भाजपा, जनसंघ काल से ही सत्ता नहीं, व्यवस्था परिवर्तन में विश्वास करती रही है।

दरअसल, हमारे लिए सत्ता उपभोग नहीं, सेवा और समर्पण का माध्यम है, इसीलिए केंद्र में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भारत श्रेष्ठ भारत की सोच के साथ व्यवस्था बदलने का काम शुरू किया। हरियाणा में भी भाजपा सरकार हरियाणा एक, हरियाणवी एक की व्यापक समावेशी सोच के साथ निवासियों की चिर प्रतीक्षित आकांक्षाओं को पूरा करने में जुट गई।
हरियाणा का आम आदमी और व्यवस्था
आम आदमी के सपने आकांक्षाएं बहुत ज्यादा नहीं होते। उसे बस बिना भेदभाव सम्मान के साथ रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सुरक्षा और जीवन स्तर ऊंचा उठाने के समान अवसर चाहिए, पर इसके लिए सत्ता संग व्यवस्था परिवर्तन पहली अनिवार्य शर्त है।

नारों से सत्ता तो बदल सकती है, पर व्यवस्था परिवर्तन के लिए बेदाग नेतृत्व, साफ नीयत और सही नीति चाहिए। जब देश और हरियाणा को ये तीनों चीजें मिल गईं तो व्यवस्था परिवर्तन का काम भी शुरू हो गया।

देश में आम आदमी सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार से त्रस्त है, जो जन्म प्रमाण-पत्र से शुरू हो कर मृत्यु प्रमाण-पत्र तक उसकी पीछा नहीं छोड़ता। तबादलों और तैनाती को तो भ्रष्ट राजनेताओं ने मोटी कमाईवाला उद्योग ही बना दिया था। हरियाणा भी इस मामले में अछूता नहीं था।

2014 तक शिक्षकों से लेकर हर स्तर के सरकारी कर्मचारी अपने तबादले-तैनाती के लिए राजधानी चंडीगढ़ के ही चक्कर लगाते रहते थे। इससे उनका समय नष्ट होता और सरकारी कामकाज भी प्रभावित होता। जुगाड़ लगाते-लगाते अक्सर वे दलालों के चंगुल में भी फंसते और मोटा पैसा भी देते।

यही हाल सरकारी नौकरियों का था। चतुर्थ श्रेणी तक की नौकरियां भी जातिवाद, क्षेत्रवाद, सिफारिश और भ्रष्टाचार के आधार पर मिलती थीं। इससे खासकर युवाओं में निराशा गहराने लगी थी, जिसके हताशा में बदलने से स्थिति विस्फोटक हो सकती थी, लेकिन हमारी सरकार ने भर्तियों से लेकर तबादले-तैनाती तक में पारदर्शी ऑनलाइन व्यवस्था शुरू की है।

इसके सुखद परिणाम भी सामने आने लगे हैं। जिन क्षेत्रों, वर्गों के युवाओं की सरकारी नौकरियों तक पहुंच नहीं थी, उन्हें भी प्रतिभा क्षमता के आधार पर अवसर मिल रहे हैं, तो तबादले-तैनाती के लिए मंत्रियों-विधायकों के आवास और सचिवालय में भीड़ भी नहीं जुटती।
सात साल के शासनकाल में 83 हजार से अधिक युवाओं को बिना पर्ची-खर्ची पारदर्शी तरीके से मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरियां मिल चुकी हैं। निजी क्षेत्र में स्थानीय युवाओं के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण का कानून हरियाणा में बेरोजगारी उन्मूलन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

यह आम अनुभव है कि अगर जरूरी सेवाओं के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ें तो भ्रष्टाचार पनपता है। इसीलिए हमने लगभग 20 हजार अटल सेवा केंद्रों और 117 अंत्योदय एवं सरल केंद्रों के माध्यम से 42 विभागों की 573 योजनाएं और सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध करवाई हैं। कभी हरियाणा में राइट टू करप्शन की चर्चाएं आम थीं, लेकिन हमने राइट टू सर्विस देते हुए ऑटो अपील सॉफ्टवेयर शुरू किया है, जिससे 546 सेवाओं को जोड़ा गया है। इन सेवाओं के आवेदकों को यदि निर्धारित अवधि में सेवा नहीं मिलती है तो उसकी अपील स्वत: ही उच्चाधिकारी को, और अंतत: राइट टू सर्विस कमीशन को पहुंच जाएगी। इस व्यवस्था से जनता के प्रति प्रशासन की जवाबदेही तय होगी।

बदलता हरियाणा और चुनौतियां
जन साधारण की शिकायतों के त्वरित समाधान के लिए सीएम विंडो पोर्टल शुरू किया गया है, जिसके माध्यम से अभी तक आठ लाख से अधिक शिकायतों का समाधान किया जा चुका है।

अंतर जिला परिषद गठित कर पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त किया गया है तो लोकतंत्र की मजबूती के लिए वहां राइट टू री कॉल भी लागू किया गया है। समाज के अंतिम छोर पर मौजूद व्यक्ति का भी जीवन स्तर सुधारने की सोच से अंत्योदय के सपने को साकार करने के लिए हरियाणा सरकार ने परिवार पहचान पत्र के जरिए मुख्यमंत्री अंत्योदय परिवार योजना शुरू की है, जिसमें सबसे गरीब परिवारों की पहचान कर रोजगार और कौशल विकास के जरिए उनकी न्यूनतम वार्षिक आय पहले एक लाख रुपये और फिर वर्ष 2025 तक एक लाख 80 हजार रुपये करने का लक्ष्य रखा गया है।

पिछले साल मार्च में कोरोना की दस्तक के बाद का समय सभी के लिए अप्रत्याशित चुनौतियों वाला रहा है। देश के बड़े शहरों की बात करें तो दिल्ली और मुंबई में कोरोना का कहर सबसे ज्यादा बरपा हरियाणा, दिल्ली के तीन ओर बसा है और देश की राजधानी से निरंतर संपर्क भी रहता है। पड़ोसी राज्यों के मरीजों का दबाव भी हरियाणा के स्वास्थ्य तंत्र पर पड़ा। उसके बावजूद दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सभी के सहयोग से चुनौतियों से निपटा गया। गांवों में घर-घर टेस्टिंग के लिए पांच हजार से भी अधिक टीमें भेजी गईं। सभी जरूरतमंदों तक चिकित्सा सेवाओं का विस्तार करते हुए गरीबों को हरसंभव आर्थिक एवं अन्य मदद भी दी गईं।
न सिर्फ कोरोना के कहर से निपटने में, बल्कि टीकाकरण में भी हरियाणा ने मिसाल पेश की है। परिणाम सामने है। अभी सितंबर में हुए सीरो सर्वे के तीसरे चरण में राज्य के लोगों में सीरो पॉजिटिविटी रेट 76 प्रतिशत से भी ज्यादा पाया गया है, जो सुरक्षा का अहसास कराता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रेरक मार्गदर्शन में हरियाणा सरकार द्वारा पिछले सात सालों में व्यवस्था में बदलाव के लिए की गई अनूठी पहलों का ही परिणाम है कि शिक्षा, खेल, कारोबार से लेकर सीमा पर देश की रक्षा तक हर क्षेत्र में हरियाणवी अपनी प्रतिभा व क्षमता का लोहा मनवा रहे हैं।
हरियाणा सही मायने में जय जवान, जय किसान का जीवंत उदाहरण है। इसके बावजूद कृषि क्षेत्र में लंबित सुधारों की सोच से बनाए गए तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों को भरमाने के लिए दुष्प्रचार से विपक्षी दल बाज नहीं आ रहे, जबकि हरियाणा सच का मुंह बोलता प्रमाण है।

दुष्प्रचार किया जा रहा है कि इन नए कृषि कानूनों के बाद मंडियां और एमएसपी समाप्त हो जाएंगे, लेकिन सच यह है कि हरियाणा में मंडियां बढ़ी हैं तो देश में सर्वाधिक 14 फसलें हरियाणा में ही एमएसपी पर खरीदी जा रही हैं और 72 घंटों में किसानों के खातों में सीधा भुगतान भी किया जा रहा है।

सात सालों में व्यवस्था परिवर्तन के लिए हमारी सरकार द्वारा की गई पहलों से हमारी दशा-दिशा स्पष्ट हो जाती है। संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन से सही अर्थों में लोकतंत्र को मजबूत कर विकास का लाभ समाज के अंतिम छोर पर मौजूद व्यक्ति तक पहुंचाने की हमारी यह संकल्प यात्रा आनेवाले सालों में भी पूरी प्रतिबद्धता के साथ जारी रहेगी।

(नोट: लेखक हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री हैं।)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है

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