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त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही राज्य के विधायक और मंत्री अधिकारियों से परेशान रहने लगे थे
उत्तराखंड (Uttarakhand) की त्रिवेंद्र सरकार पर कुर्सी जाने का खतरा मंडरा रहा है. दिल्ली से देहरादून तक राजनीतिक हलचल तेज है. उत्तराखंड की सियासत में त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए मुसीबत अब बढ़ती दिख रही है. जिस तरह की खबरे अंदर से आ रही हैं उससे साफ जाहिर है कि उत्तराखंड को नया सीएम अब कभी भी मिल सकता है. हाल ही में सोमवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) दिल्ली पहुंचे थे और यहां कई बड़े केंद्रीय नेताओं से मिलें.
अभी 6 मार्च को ही उत्तराखंड के बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक हुई थी, जिसमें CM त्रिवेंद्र सिंह रावत, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और बीजेपी महासचिव ने ऑब्जर्वर के रूप में भाग लिया था. इस बैठक में रावत सरकार के खिलाफ उन्हीं के विधायकों और कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई थी कि उनकी सुनी नहीं जाती है. उनका कहना है कि रावत सरकार जन नेताओं से ज्यादा अधिकारियों की सुनते हैं. इसी वजह से अब छोटे-छोटे अधिकारी भी विधायकों और कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुन रहे हैं.
जनता और नेताओं के बीच 'अधिकारी'
त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही राज्य के विधायक और मंत्री अधिकारियों से परेशान रहने लगे थे. जन प्रतिनिधियों का कहना है कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते हैं. जब भी वह कोई काम उन्हें सौंपते हैं तो अधिकारी उसे अनसुना कर देते हैं. विधायकों और मंत्रियों का आरोप है कि इसके पीछे की मुख्य वजह है, रावत सरकार का अधिकारियों को खुली छूट देना, जिससे जनता और जनप्रतिनिधि दोनों परेशान हैं. साथ ही जनप्रतिनिधियों का आरोप है कि जब वह इन अधिकारियों की शिकायत मुख्यमंत्री या उनके सीनियर अफसरों से करते हैं तब भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है. इस वजह से जनता के बीच से बीजेपी कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों का विश्वास कम होता जा रहा है.
त्रिवेंद्र सरकार गई तो होंगे कई तबादले
जब से त्रिवेंद्र सरकार पर तलवार लटकी है तब से त्रिवेंद्र रावत से ज्यादा परेशान उत्तराखंड के वह अधिकारी हैं जिन्हें उनकी तरफ से आज तक खुली छूट मिली हुई थी. अधिकारियों को पता है कि अगर रावत की कुर्सी गई तो कई अधिकारियों के तबादले होने तय हैं. इसीलिए अधिकारियों की पूरी फौज इस वक्त बीजेपी में चल रही इस सियासी उठापटक पर पैंनी नजर बनाए हुए है. अधिकारियों पर रावत सरकार इतनी ज्यादा निर्भर हो गई थी कि उस पर आरोप लग रहे थे कि बिना अधिकारियों की सलाह के राज्य का एक भी फैसले नहीं होता था.
इन अधिकारियों की वजह से अपने ही विधायकों-मंत्रियों के निशाने पर CM रावत
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए कहा जाने लगा है कि वह जनता के नहीं अधिकारियों के मुख्यमंत्री हैं और यह कहने वाले बीजेपी के भी कई कार्यकर्ता हैं जो खुले तौर पर तो कुछ कहने से बचते हैं, लेकिन जनता के बीच यही संदेश जा रहा है. मुख्यमंत्री रावत अपने कुछ अधिकारियों की वजह से हमेशा से बीजेपी कार्यकर्ताओं और विधायकों-मंत्रियों के निशाने पर रहे हैं. उनमें सबसे बड़ा नाम राज्य के चीफ सेक्रेटरी ओम प्रकाश का है, इनकी नियुक्ती को लेकर उत्तराखंड बीजेपी में खूब घमासान मचा. कईयों ने विरोध किया, लेकिन उसके बाद भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उन्हें राज्य की चीफ सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त किया. इसी के साथ राज्य में एक महिला अफसर हैं जिन्हें मुख्यमंत्री रावत के आलोचक 'सुपर सीएम' कहते हैं. कहा जाता है कि राज्य में बिना उनकी सलाह के एक पत्ता नहीं हिलता.
बीजेपी का कोई मुख्यमंत्री नहीं कर सका है अपना कार्यकाल पूरा
उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार जब भी रही है तब एक बात हमेशी कॉमन रही है कि वहां एक मुख्यमंत्री कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. त्रिवेंद्र रावत के 4 साल के कार्यकाल को मिला दिया जाए तो उत्तराखंड में बीजेपी का कुल कार्यकाल 10 साल से ज्यादा का है, हालांकि इस दौरान राज्य को पांच मुख्यमंत्री मिल चुके हैं. जिस तरह का राजनीतिक माहौल बन रहा है उसे देख कर लग रहा है कि राज्य को अब जल्द अपना छठां मुख्यमंत्री भी मिल जाएगा.
शाम को राज्यपाल से मिल सकते हैं मुख्यमंत्री रावत
सियासी उलटफेर के बाद जो सबसे बड़ी खबर है, वह यह है कि दिल्ली से लौटे सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत आज शाम चार बजे राज्यपाल बेबी रानी मौर्या से मुलाकात कर सकते हैं. आशंका है कि वह राज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं, अगर ऐसा हुआ तो उत्तराखंड की राजनीति और ब्यूरोक्रेसी में बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा. साथ ही यह भी देखने वाली बात होगी की राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा. हालांकि जहां तक ज्यादा चर्चा है वह नाम राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का हो सकता है या फिर धन सिंह रावत को कमान मिल सकती है.
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