सम्पादकीय

सवाल भरोसे का

Subhi
8 July 2022 5:39 AM GMT
सवाल भरोसे का
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पिछले दिनों पूर्वी और पश्चिमी दिल्ली के दो अस्पतालों के चिकित्सकों को स्वास्थ्य विभाग ने निलंबित कर दिया। उन पर आरोप था कि वे दवा कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए बाजार की दवा लिख रहे थे, जबकि वे दवाएं अस्पताल में भी उपलब्ध थीं।

Written by जनसत्ता: पिछले दिनों पूर्वी और पश्चिमी दिल्ली के दो अस्पतालों के चिकित्सकों को स्वास्थ्य विभाग ने निलंबित कर दिया। उन पर आरोप था कि वे दवा कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए बाजार की दवा लिख रहे थे, जबकि वे दवाएं अस्पताल में भी उपलब्ध थीं। किसी शिकायत पर कार्रवाई होना और समस्या का समाधान होने में अंतर होता है। क्या उपलब्ध दवाओं की गुणवत्ता भी सरकार सुनिश्चित कर पा रही है? क्या सरकार निजी अस्पताल और गैर-सरकारी चिकित्सकों पर भी शिकंजा कस पा रही है?

सच्चाई अब भी यही है कि सामान्य नागरिक का सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल और सरकारी दवाओं की गुणवत्ता पर अभी तक विश्वास नहीं जम पा रहा है। पहले सरकारें शिक्षा और चिकित्सा विभाग की गुणवत्ता सुनिश्चित करें, तभी इन कार्रवाइयों का कुछ औचित्य होगा। अन्यथा वे सिर्फ खानापूर्ति ही साबित होती रहेंगी।

लगता है विवादों का दूसरा नाम ही भारत है। तरक्की के तराने कम, विवादों का शोर उसकी नियति बनता जा रहा है। एक झंझट से निकलो तो दूसरी सामने आ जाती है। अभी नूपुर शर्मा और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर शोर थमा भी नहीं था कि फिल्मकार लीना मणिमेकलाई की फिल्म काली के पोस्टर पर विवाद पैदा हो गया है। ऊपर से तृणमूल की सांसद महुआ मोइत्रा ने टिप्पणी कर आग में घी डाल दिया है।

आखिर कब तक हिंदू देवी-देवताओं को लक्ष्य कर इस प्रकार की उटपटांग हरकतें की जाएंगी। यह कोई सुनियोजित षड्यंत्र तो नहीं है, जो हिंदू भावनाओं को आहत करने तथा देश की एकता, अखंडता और सौहार्द को खंडित करना चाहता हैं।

इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। ऐसी हीन, कुत्सित हरकत करने वालों पर सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। क्यों कुछ लोगों को प्रचार पाने के लिए देश में आग लगाने दिया जाए।

घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत में एक बार फिर से पचास रुपए की बढ़ोतरी हुई है। सरकार इस पर मौन है। सरकार ने जोर का झटका आमजन को धीरे से रसोई गैस सिलेंडर की कीमत में बढ़ोतरी कर दे दिया है। समृद्ध लोगों के लिए पचास रुपए मामूली रकम हो सकती है, लेकिन एक दिहाड़ीदार से पूछो कि रसोई गैस सिलेंडर की कीमत में पचास रुपए बढ़ोतरी से उसे कितनी परेशानी हुई।

बेशक सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत गरीबों को मुफ्त गैस सिलेंडर उपलब्ध कराए, लेकिन गैस की बढ़ती कीमतों की वजह से शयद ही सभी जरूरतमंदों को इसका लाभ मिलता होगा। आखिर सरकार क्यों गरीब और मध्यवर्गीय परिवार के लोगों के चूल्हे को ठंडा करना चाहती है? एक तरफ सरकार गरीबों को मुफ्त का राशन बांट रही है, वहीं रसोई गैस सिलेंडर की कीमत में बढ़ोतरी की जा रही है, मंहगी रसोई गैस से कैसे कोई गरीब राशन पका सकेगा? अगर इसकी कीमत में ऐसे ही बढ़ोतरी होती रही, तो वह दिन दूर नहीं, जब रसोई गैस का सिलेंडर खरीदना दिहाड़ीदार और अन्य गरीब लोगों के लिए मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हो जाएगा। सवाल है कि क्या ऐसे ही होगा सबका विकास, ऐसे ही आएंगे सभी के अच्छे दिन? आखिर सरकार क्यों नाकाम है रसोई गैस की बढ़ती कीमत पर लगाम कसने में?

हमारे देश के गांवों में आज भी लोग खाना बनाने के लिए चूल्हे में लकड़ी और गोबर के उपले जलाने की विधि अपनाते हैं। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, खासकर खाना बनाने वाली महिलाओं पर। वर्ष 2010 में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन आफ डिजीज में बताया गया था कि हमारे देश में घरेलू वायु प्रदूषण दूसरा सबसे बड़ा जानलेवा कारण है। क्या सरकार को अब महिलाओं के स्वास्थ्य की चिंता नहीं रही है?


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