सम्पादकीय

सुंदरता के साथ खिलता है विकास : संस्कृति का अभिन्न अंग है सौंदर्य, बुद्धि और भावना के साथ तर्कसंगतता का मेल

Neha Dani
4 Sep 2022 1:40 AM GMT
सुंदरता के साथ खिलता है विकास : संस्कृति का अभिन्न अंग है सौंदर्य, बुद्धि और भावना के साथ तर्कसंगतता का मेल
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सुंदरता जीवन के आनंद का सार है और जीवंत सौंदर्य संस्कृति मानव जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है।

मनुष्य के भौतिक, बौद्धिक, नैतिक, भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक विकास के लिए सौंदर्य से ओत-प्रोत परिवेश अनिवार्य है और ऐसे परिवेश का सृजन और पोषण करती है एक सौंदर्य संस्कृति। सौंदर्य के बिना हम अपने संपूर्ण विकास से वंचित रह जाते हैं। यह संकुचन सभ्यता के विभिन्न रोगों में, अवसाद, उदासीनता और निराशा की स्थिति में प्रकट होता है, जो संयुक्त रूप से हमारे अस्तित्व की जड़ों को कुतरते हैं। सौंदर्य जीवन के सामंजस्य की अभिव्यक्ति है।




पिछली सहस्राब्दियों की महान कला को अद्भुत ऊर्जाओं की शक्ति और उसमें निहित जीवन-वर्धक सुसंगतता के कारण महान माना गया है। सौंदर्य एक शक्तिशाली पहलू है। प्लेटो ने तो सौंदर्य को ईश्वर कहा है। प्राकृतिक विकास नकली और स्थूल चीजें नहीं गढ़ता। जब भी सौंदर्य खिलता है, विकास खिलता है। जब सुंदरता हमारे अंदर रहती है, तो कृपा, करुणा और प्रफुल्लता का समावेश और कलाकरण होता है।


परंतु ऐसा नहीं है कि केवल प्राकृतिक विकास ही उसकी सुंदरता का सृजन कर रहा है, और हमें इस सुंदरता का आनंद लेना है। मनुष्य को इस सुंदरता का सह-सृजन करना है। उसे सुंदरता की रक्षा, संरक्षण और वृद्धि करनी है। उसे कर्म के माध्यम से सुंदरता का वरण करना है। सुंदरता के अस्तित्व के लिए हमारे दर्शन को सौंदर्य मूल्यों से युक्त होना चाहिए।

मानवता की विकासवादी क्षमताओं की पूर्ण प्राप्ति के लिए सौंदर्य संस्कृति भी जरूरी है। कोई भी संस्कृति अधूरी होगी, यदि सौंदर्य संस्कृति उसका अभिन्न अंग न हो। यह हमें मानव जीवन के उच्चतम शिखर तक पहुंचने में मदद करती है। सौंदर्य संस्कृति हमें अपने विकासवादी शिशु के रूप में पूरे ब्रह्मांड के साथ सुशोभित करती है।

स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी, बुद्धिजीवी और दार्शनिक हरदयाल 'सर्वश्रेष्ठ कला की प्रशंसा और आनंद' को सौंदर्य संस्कृति का मुख्य उद्देश्य मानते हैं। वह कहते हैं, 'कला हमारी भावनाओं को उत्तेजित करती है। भावनाएं इसका डोमेन हैं। बुद्धि का इससे कोई लेना-देना नहीं है, या बहुत कम है। विज्ञान बुद्धि से संबंधित है, जबकि कला भावनाओं को आकर्षित करती है। सौंदर्य बुद्धि के द्वार से नहीं गुजरता है। आत्मा के लिए इसका अपना शॉर्टकट है।'

यह एक भ्रम है कि कला बुद्धि को आकर्षित नहीं करती, कि यह केवल भावनाओं का मामला है। वास्तव में, कला में बुद्धि के साथ-साथ भावनाओं का समग्र आकर्षण होता है। इसके अलावा, बुद्धि, जैसा कि हरदयाल तर्क देते हैं, केवल विज्ञान का क्षेत्र नहीं है। बुद्धि मनुष्य के भीतर विकास की शक्ति है और इसे जीवन और ब्रह्मांड के विभिन्न पहलुओं के बीच भेदभाव के साथ नहीं देखा जा सकता।

बुद्धि और भावनाएं मन की अलग-अलग क्षमताएं हैं, लेकिन वे दोनों मन द्वारा निर्देशित होती हैं और अविभाज्य हैं। बुद्धि और भावना, दोनों मन की एक और क्षमता का अनुकूलन करते हैं : तर्कसंगतता का। विज्ञान केवल बुद्धि की अपील करता है, जबकि कला मन के अन्य सभी संकायों पर शासन करती है। बुद्धि केवल विज्ञान का विषय नहीं है, क्योंकि यह विकास द्वारा मानवता को दिया गया एक अंतर्निहित गुण है।

कला सहित जीवन के सभी पहलू मानव बुद्धि की असंख्य अभिव्यक्तियां हैं। सभी सत्य, सभी वास्तविकताएं और सभी मिथक मानव बुद्धि द्वारा की गई खोज हैं। यहां तक कि विज्ञान भी बुद्धि द्वारा सुगम कला के अनेक आयामों में से एक है। हालांकि, यह एक अलग कहानी है, जो कहती है कि विज्ञान प्राकृतिक मानवीय घटनाओं से दूर हो गया है और इसके बजाय अपना अहंकार ओढ़कर रखता है।

यदि सौंदर्य बौद्धिक क्षमताओं को स्पर्श न कर सके और केवल हमारे भावों को छाया दे, तो हमारी बुद्धि सुंदरता और कुरूपता के प्रति उदासीन हो जाएगी। फिर, जीवन वृद्धि के लिए सौंदर्य की अनिवार्यता संदिग्ध होगी। हरदयाल का सिद्धांत बुद्धि और सुंदरता को एक-दूसरे से काट देता है; इसलिए, यह ग्रहण करने योग्य नहीं। जीवन संकुचन करने वाले किसी भी सिद्धांत को स्पष्ट रूप से तिलांजलि देनी चाहिए। सत्य का सार है : सौंदर्य जीवन-वृद्धि के लिए अपरिहार्य है। सौंदर्य जीवन में अपना अर्थ प्रदान करता है। सौंदर्य विकास का उद्देश्य है।
सोर्स: अमर उजाला
विकास सुंदरता के पुष्प के साथ खिलता है। कुरूपता के रास्ते में हमारे पांव नर्क की ओर खिसक जाते हैं। सुंदरता के पथ पर, आप अपने भीतर स्वर्ग का गुंजन पाते हैं। सौंदर्य सत्य, प्रकाश, अच्छाई, नैतिकता और अमृत्व के समान है तथा कुरूपता असत्य, अंधकार, बुराई, अनैतिकता और मृत्यु के समान है। प्रकृति की आत्मस्पर्शी और ममता भरी सुंदरता के बीच मन की सभी रचनात्मक क्षमताएं सक्रिय हो जाती हैं। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं-महाकाव्य, कविता, नाटक, कला-प्रकृति के सौंदर्य के बीच खिली हैं।

एक कलाकार अपनी कला को प्रसन्नता और शाश्वत आनंद के रंगों से भर देता है। कलाकारों के काम में सम्मिलित रचनात्मकता कल्पनाओं को मूर्त रूप देती है और प्रकृति से प्रेरणा लेती है। प्रकृति शाश्वत सुंदरता से निषेचित है, इसलिए कला के काम परमानंद युक्त कल्पनाओं और प्रकृति से प्रेरणा पर आधारित हैं। कला अपने आप में आनंद का उत्कर्ष है। मानव के नैसर्गिक स्वभाव की सबसे गहरी जड़ आनंद के साथ जीना है। सुंदरता जीवन के आनंद का सार है और जीवंत सौंदर्य संस्कृति मानव जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है।


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